Last Updated:July 16, 2025, 12:53 IST
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने 2011 के दोहरे हत्याकांड में दोषी ठहराए गए शख्स को सबूतों की कमी और खराब जांच के चलते बरी किया. कोर्ट ने मुआवजा देने की बात कही और DNA जांच के लिए नए नियम भी बनाए.

मौत की सजा दिए जाने वाले आरोपी को कोर्ट ने बेगुनाह माना.
हाइलाइट्स
HC ने पुलिस की जांच पर भरोसा करके फांसी की सजा सुनाई थी.सुप्रीम कोर्ट ने पाया जांच गलत हुई, जिसके बाद आरोपी बेगुनाह साबित हुआ.SC ने कहा कि न्याय नहीं अन्याय है.नई दिल्ली: किसी को बिना किसी पक्के सबूत के सिर्फ शक की बिनाह पर मौत की सजा दे दी जाए और वो शख्स सालों-साल जेल में सड़ता रहे. फिर एक दिन कोर्ट कहे-“ये तो बेगुनाह है, इसे रिहा करो!” कुछ ऐसा ही हुआ केरल के एक शख्स के साथ, जिसे एक प्रेमी जोड़े की हत्या और बलात्कार के मामले में दोषी ठहराया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने अब उसे बेकसूर बताते हुए बरी कर दिया है और कहा है कि पुलिस ने इस मामले में बेहद गैरजिम्मेदाराना जांच की थी. कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया कि ऐसे मामलों में बेगुनाहों को मुआवजा भी मिलना चाहिए. और साथ ही, डीएनए जांच के लिए देशभर की पुलिस को नई गाइडलाइन भी दी है.
कैसे फंसा देवाकर?
इस केस में जिस शख्स को दोषी ठहराया गया था, उसका नाम कत्तावेल्लई उर्फ देवाकर है. 2011 में एक युवा लड़का-लड़की अपने घर से भागे थे, कुछ दिन बाद दोनों की लाश मिली. पुलिस ने जल्दीबाजी में जांच की और बिना पुख्ता सबूतों के देवाकर को पकड़ लिया. आरोप लगाया गया कि उसने लड़की का बलात्कार कर दोनों की हत्या कर दी.
केरल की ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने भी पुलिस की जांच पर भरोसा कर लिया और देवाकर को मौत की सजा सुना दी. लेकिन जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो असलियत सामने आई.
जांच में निकलीं ढेरों गलतियां
सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों को एक बार फिर गौर से देखा और पाया कि जांच में बहुत बड़ी-बड़ी गड़बड़ियां हुई थीं. हत्या में जिस हथियार का जिक्र हुआ था, उस पर खून का कोई निशान नहीं मिला. न ही डॉक्टरों ने ये कहा कि चोटें उसी हथियार से आई थीं.
सबसे चौंकाने वाली बात ये थी कि कपड़ों पर न तो खून मिला, न सीमेन, और न ही ये पता था कि कपड़े किसने, कब और कैसे संभाले. यानी सबूतों की हालत ऐसी थी कि उस पर किसी को फांसी देना पूरी तरह गलत था.
कोर्ट ने कहा– ये इंसाफ नहीं, अन्याय है
फैसला सुनाते हुए जस्टिस संजय करोल ने कहा कि “जिस केस की कोई बुनियाद ही नहीं थी, उस पर एक इंसान को सालों तक जेल में डाल दिया गया. यह इंसाफ नहीं, बल्कि एक बड़ा अन्याय है.” कोर्ट ने अमेरिका और बाकी देशों का ज़िक्र करते हुए कहा कि वहां अगर कोई शख्स लंबे वक्त तक जेल में रहने के बाद बरी हो जाता है, तो उसे सरकार की तरफ से मुआवजा दिया जाता है.
भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने संसद से अपील की है कि वह इस दिशा में सोचे और ऐसा कानून बनाए जिससे बेगुनाहों को न्याय मिल सके.
डीएनए जांच को लेकर पुलिस को मिली सख्त हिदायत
इस केस में डीएनए जांच के साथ पुलिस ने जो लापरवाही की, उसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों की पुलिस के लिए नए नियम बनाए हैं. अब पुलिस को सैंपल इकट्ठा करने से लेकर उसे संभालने और जांच के लिए भेजने तक हर कदम पर पूरी सावधानी बरतनी होगी.
कोर्ट ने कहा कि पुलिस की ट्रेनिंग में भी बदलाव लाना जरूरी है. उन्हें वैज्ञानिक सबूतों को संभालने और डीएनए जैसे आधुनिक जांच तरीकों की पूरी जानकारी दी जानी चाहिए. ताकि भविष्य में ऐसा कोई और बेगुनाह न फंसे.
Location :
New Delhi,Delhi