Last Updated:July 16, 2025, 23:04 IST
Sawan Yatra 2025: सावन के महीने में देवघर कावरिया पथ पर तरह-तरह के और अनोखा कावड़ देखने को मिल रहा है. वही बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के रहने वाले मिथिलेश की मन्नत पूरी होने पर कमर में लकड़ी की गाड़ी बांध कर निकल...और पढ़ें

मिथिलेश का कहना है कि "बेटियां घर की लक्ष्मी होती हैं.
देवघरः सावन का पवित्र महीना चल रहा है और चारों ओर कांवड़ यात्रा की धूम है. देश के कोने-कोने से श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर भागलपुर के अजगैबीनाथ धाम से 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर देवघर के बाबा धाम पहुंच रहे हैं. इस दौरान एक से बढ़कर एक अनोखी कांवड़ देखने को मिल रही है, लेकिन इन सबके बीच मुजफ्फरपुर के मिथिलेश कुमार की कांवड़ यात्रा ने सबका ध्यान खींचा है. मिथिलेश अपनी भतीजी की तस्वीर एक लकड़ी की गाड़ी में रखकर, उसे खींचते हुए 105 किलोमीटर का सफर तय कर बाबा धाम पहुंचे हैं.
बेटी प्रेम में 105 KM का सफर, लकड़ी की गाड़ी में भतीजी की तस्वीर
बाबा भोलेनाथ की महिमा अपरंपार है और कांवड़िया पथ पर ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल रहे हैं, जो आस्था और अटूट प्रेम की मिसाल पेश करते हैं. इन्हीं में से एक है मिथिलेश कुमार की यह यात्रा, जो उनके बेटी प्रेम को दर्शाती है. मिथिलेश चार भाई हैं और सभी के घर में बेटे तो हैं, लेकिन कोई बेटी नहीं. मिथिलेश ने बाबा भोलेनाथ से अपने छोटे भाई के लिए एक बेटी की कामना की थी और भोले ने उनकी यह मनोकामना पूरी की.
मिथिलेश चाहते थे कि इस कांवड़ यात्रा में उनकी भतीजी उनके साथ चले, लेकिन छोटे भाई ने अगले साल आने को कहा. ऐसे में, मिथिलेश ने अपनी भतीजी की तस्वीर एक खास लकड़ी की गाड़ी में रखी और अपने अन्य भतीजों को भी उसमें बैठाकर यह 105 किलोमीटर की कांवड़ यात्रा पूरी की.
रास्ते में टूटी गाड़ी का पहिया, फिर भी नहीं डिगा हौसला
यह यात्रा मिथिलेश के लिए आसान नहीं थी. रास्ते में उनकी गाड़ी का पहिया भी टूट गया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी. वह 20 किलोमीटर पीछे जाकर नया पहिया लाए, गाड़ी की मरम्मत की और फिर उसे अपनी कमर से रस्सी बांधकर खींचते हुए बाबा धाम पहुंचे. इस पूरी यात्रा में उन्हें 10 दिन का समय लगा.
बढ़ई मिथिलेश की बाबा से मन्नत: “बेटियां घर की लक्ष्मी होती हैं”
मिथिलेश कुमार पेशे से बढ़ई हैं और मुजफ्फरपुर के रहने वाले हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें अगले साल कांवड़ यात्रा पर आने का भरोसा नहीं था, इसलिए इस साल भतीजी के न मिल पाने पर उसकी तस्वीर लेकर ही यात्रा पूरी की. मिथिलेश का मानना है कि “परिवार बेटियों से बनता है, जब तक बेटी नहीं होगी बहू कहां से आएगी. उनका कहना है कि “बेटियां घर की लक्ष्मी होती हैं.
यही कारण है कि उन्होंने बाबा भोलेनाथ से यह मनोकामना मांगी है कि अगर उन्हें बेटे की जगह बेटी हुई, तो वह उसे पालकी में लेकर बाबा धाम आएंगे. इसी मनोकामना के पूर्ण होने पर आज वह यह अनोखी कांवड़ यात्रा कर रहे हैं. मिथिलेश की यह यात्रा सिर्फ आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि बेटी के प्रति उनके गहरे प्रेम और समाज को एक महत्वपूर्ण संदेश देने का माध्यम भी है.
मैंने अपने 12 वर्षों के करियर में इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और डिजिटल मीडिया में काम किया है। मेरा सफर स्टार न्यूज से शुरू हुआ और दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर डिजिटल और लोकल 18 तक पहुंचा। रिपोर्टिंग से ले...और पढ़ें
मैंने अपने 12 वर्षों के करियर में इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और डिजिटल मीडिया में काम किया है। मेरा सफर स्टार न्यूज से शुरू हुआ और दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर डिजिटल और लोकल 18 तक पहुंचा। रिपोर्टिंग से ले...
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Location :
Deoghar,Jharkhand