Last Updated:July 16, 2025, 19:39 IST
Bihar Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर मुस्लिम वोट बैंक सियासी दलों की जंग का केंद्र में है. तेजस्वी यादव इस्लाम के मुद्दों से, असदुद्दीन ओवैसी इंतकाम की रणनीति से, नीतीश कुमार अपनी उदारवादी छवि से और ...और पढ़ें

बिहार में मुस्लिम वोट बैंक प्रशांत किशोर, तेजस्वी यादव, असदुद्दीन ओवैसी और नीतीश कुमार की रणनीतियों को लेकर असमंजस में.
हाइलाइट्स
तेजस्वी यादव वक्फ और एनआरसी मुद्दों से मुस्लिम वोटरों को लुभाने में जुटे. असदुद्दीन ओवैसी राजद से इंतकाम की राह, 45 सीटों पर चुनाव की तैयारी. CM नीतीश कुमार की उदारवादी छवि और पीके का गरीबी को लेकर रणनीति.पटना. प्रशांत किशोर अक्सर यह बात कहते हैं कि मुसलमानों में गुरबत के लिए वही खुद जिम्मेदार हैं, क्योंकि इस समुदाय ने अपना प्रतिनिधि चुनने में गलती की और बीजेपी से डर के कारण राजद को वोट किया. वह मुसलमानों के ईमान (न्याय) दुरुस्त करते हुए इस बार अपनी गरीबी दूर के लिए वोट करने का आह्वान करते हैं. इसी प्रकार तेजस्वी यादव वक्फ कानून, एनआरसी और वोटर एसआईआर जैसे मुद्दों को उठाकर इस्लाम (धार्मिक पहचान) की बात पर मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में करने की रणनीति पर चल रहे हैं. जबकि, असदुद्दीन ओवैसी राजद से इंतकाम (सियासी बदला) की बात कह रहे हैं, क्योंकि 2020 के विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम के पांच में से चार विधायक आरजेडी ने तोड़ लिए थे. इस बार महागठबंधन से एआईएमआईएम के गठबंधन का ऑफर देकर बीजेपी की ‘बी टीम’ होने का दाग भी काफी हद तक छुड़ा लिया है. इसके साथ ही वह अब आरजेडी से सियासी इंतकाम की बात कह रहे हैं. वहीं, नीतीश कुमार के चेहरे पर उदारवादी मुसलमानों को अपने पाले में करने की रणनीति लेकर एनडीए भी चल रहा है. अब सवाल उठता है कि ईमान, इस्लाम और इंतकाम की बात पर आगे बढ़ रही मुस्लिमों की दुविधा क्या है, और वह कहां जाएंगे? क्या मुसलमान बिखर जाएंगे या अंदर ही अंदर कोई बड़ा खेल कर जाएंगे?
दरअसल, बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव 2025 से पहले मुस्लिम वोट बैंक सियासी दलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. राज्य की लगभग 17.80% आबादी (1.8 करोड़ मतदाता) वाले इस समुदाय को लेकर तेजस्वी यादव, असदुद्दीन ओवैसी, प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार की रणनीतियां आमने-सामने हैं. तेजस्वी यादव वक्फ कानून और एनआरसी जैसे मुद्दों से इस्लाम की बात कर रहे हैं, जबकि असदु्द्दीन ओवैसी राजद से इंतकाम की बात कहकर अलग राह अपना रहे और राजद से अलग अपनी सियासी जमीन पुख्ता करने में लगे हैं. नीतीश उदारवादी छवि से मुसलमानों को एनडीए में लाने की कोशिश में हैं. जबकि, प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी मुस्लिमों की गुरबत को उनकी अपनी गलती करार दे रही है, जिसने बहस को और दिलचस्प बना दिया है. सवाल यह है कि क्या यह वोट बैंक बिखर जाएगा या कोई एक दल इसे अपने पक्ष में कर पाएगा? सवाल यह भी है कि ईमान, इस्लाम और इंतकाम के बीच फंसा यह वोट बैंक कहां जाएगा? क्या यह बिखर जाएगा या कोई एक दल इसे अपने पाले में कर लेगा? सीमांचल से लेकर मिथिलांचल तक मुस्लिम वोटरों की दुविधा चुनावी समीकरणों को और भी उलझाऊ बना रही है.
तेजस्वी यादव मुसलमानों के धार्मिक ध्रुवीकरण के आसरे
तेजस्वी यादव ने हाल की रैलियों में वक्फ कानून और एनआरसी जैसे संवेदनशील मुद्दों को भुनाने की रणनीति अपनाई है. राजद नेता का दावा है कि महागठबंधन मुस्लिम समुदाय की आवाज उठाएगा और इन कानूनों को रद्द करेगा. यह रणनीति सीमांचल जैसे मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में उनकी पकड़ मजबूत करने की कोशिश है. हालांकि, तेजस्वी की यह रणनीति तब सवालों के घेरे में आ जाती है जब उनके चार विधायक एआईएमआईएम से तोड़ लिए गए, जिसने ओवैसी को नाराज कर दिया.
असदुद्दीन ओवैसी बैक टू पवेलियन, फिर इंतकाम की आग
दूसरी ओर असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम महागठबंधन में शामिल होने की पेशकश कर रही है, लेकिन राजद की अनिच्छा ने उन्हें अलग रास्ता अपनाने को मजबूर किया है. ऐसा लगता है ओवैसी अब इंतकाम की राह पर आगे बढ़ेंगे. बता दें कि उन्होंने हाल ही में लालू यादव को पत्र लिखकर गठबंधन की पेशकश की, लेकिन जवाब न मिलने पर 45 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है. ओवैसी का दावा है कि बीजेपी की बी-टीम होने का आरोप अब धूमिल हो गया है और वे मुस्लिम वोटों को एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं. सीमांचल में उनकी मौजूदगी महागठबंधन के लिए चुनौती बन सकती है.
सबसे मुखर प्रशांत किशोर, मुस्लिमों को बता रहे ईमान!
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने मुस्लिमों की गरीबी को उनके प्रतिनिधि चुनने की गलती से जोड़ा है. उनका तर्क है कि बीजेपी से डर के कारण मुसलमानों ने राजद को वोट दिया जिससे उनकी स्थिति नहीं सुधरी. प्रशांत किशोर का कहना है कि आज अगर मुस्लिम गुरबत की जिंदगी जी रहा है तो इसके लिए यह समुदाय खुद जिम्मेदार है. वह राजद के चंगुल से मुस्लिमों को निकलने की बात कहते हैं और ईमान के अनुसार काम करने का आह्वाहन करते हैं. बता दें कि प्रशांत किशोर 75 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार उतारने की बात कह चुके हैं. हालांकि, उनकी पार्टी की नई शुरुआत और सीमित संगठन बड़ी चुनौती है और इसकी परीक्षा होनी बाकी है.
नीतीश कुमार की सेकुलर छवि के भरोसे एनडीए
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की रणनीति थोड़ी अलग है. जेडीयू के साथ एनडीए मुस्लिमों को उदारवादी छवि और विकास के नाम पर आकर्षित करने की कोशिश में है. नीतीश सरकार ने पिछले 20 साल में मुस्लिम समुदाय के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं, लेकिन वक्फ कानून और SIR जैसे मुद्दों पर उनकी चुप्पी सवाल उठाती है. एनडीए को 2024 के लोकसभा चुनाव में 30 सीटें मिलीं, जिसमें मुस्लिम वोटों का हिस्सा सीमित रहा. लेकिन, नीतीश कुमार की सेकुलर छवि अभी भी कुछ हद तक प्रभावी है.
क्या मुस्लिम वोट बैंक में बिखराव तय है या कोई खेल होगा?
वहीं, मुस्लिम वोटरों की दुविधा स्पष्ट है. ईमान (न्याय), इस्लाम (धार्मिक पहचान) और इंतकाम (सियासी बदला) के बीच वे फंसे हैं. 2020 में महागठबंधन ने 76% मुस्लिम वोट हासिल किए थे, लेकिन एआईएमआईएम की मौजूदगी ने वोट बंटवारे का खतरा बढ़ा दिया. अगर ओवैसी अलग लड़ते हैं तो सीमांचल में महागठबंधन को नुकसान हो सकता है, जबकि नीतीश की उदारवादी छवि एनडीए को फायदा पहुंचा सकती है. राजनीति के जानकारों का मानना है कि अगर प्रशांत किशोर, असदुद्दीन ओवैसी और तेजस्वी यादव एक गठबंधन में नहीं आए तो मुस्लिम वोट बैंक का बिखराव तय है, लेकिन इसका प्रतिफल किसी एक दल को नहीं, बल्कि क्षेत्रीय समीकरणों पर निर्भर करेगा.
पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट...और पढ़ें
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