जस्टिस जी आर स्वामीनाथन के फैसले पक्षपाती थे? ये रही लिस्ट... आप खुद तय कर लें

1 hour ago

चेन्नई/नई दिल्ली. भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में ऐसे मौके कम ही आते हैं जब किसी हाई कोर्ट के जज के खिलाफ संसद में महाभियोग (Impeachment) का प्रस्ताव लाया जाए. लेकिन मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच के जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन इस वक्त इसी सियासी और कानूनी तूफान के केंद्र में हैं. मंगलवार को विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ ब्लॉक के 107 सांसदों ने उनके खिलाफ महाभियोग का नोटिस दिया है. यह पूरा विवाद मदुरै के पास तिरुपरनकुंड्रम पहाड़ी पर कार्तिगई दीपम का दीपक जलाने के उनके एक आदेश से शुरू हुआ.

आरोप है कि उनका फैसला एक खास विचारधारा से प्रेरित है और उन्होंने न्यायिक निष्पक्षता की लक्ष्मण रेखा पार की है. लेकिन उनके साथ सालों तक काम करने वाले लोग और कानूनी जानकार एक अलग ही तस्वीर पेश कर रहे हैं. उनका कहना है कि जस्टिस स्वामीनाथन के फैसले कानूनी तर्कों पर आधारित होते हैं, न कि उनकी निजी विचारधारा पर. यह मामला अब सिर्फ एक दीये या पहाड़ का नहीं रहा, बल्कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाम जवाबदेही की एक बड़ी बहस बन चुका है.

कार्तिगई दीपम और दरगाह का विवाद: असल जड़ इस पूरे विवाद की जड़ में मदुरै जिले की तिरुपरनकुंड्रम पहाड़ी है. यह जगह धार्मिक रूप से बेहद संवेदनशील है. यहां पहाड़ी की चोटी पर एक दरगाह है, जबकि नीचे उची पिल्लयार मंदिर है.

परंपरा: राज्य सरकार और डीएमके का कहना है कि यहां पिछले 100 सालों से एक परंपरा चली आ रही है. सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने के लिए कार्तिगई दीपम का त्योहार पहाड़ी की चोटी पर नहीं, बल्कि पहाड़ी के बीच में मनाया जाता है. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि चोटी पर दरगाह मौजूद है. हिंदू और मुस्लिम यहां शांति से रहते आए हैं.

जज का आदेश: जस्टिस स्वामीनाथन की बेंच ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया कि दीपक पहाड़ी की चोटी पर ही जलाया जाना चाहिए. उनके करीबियों का तर्क है कि तमिलनाडु के किसी भी अन्य मंदिर में कार्तिगई दीपम हमेशा पहाड़ी की सबसे ऊंची चोटी पर जलाया जाता है. तिरुवन्नामलाई के ‘महा दीपम’ का उदाहरण देते हुए कहा गया कि यहां भी ऐसा ही होना चाहिए.

टकराव: डीएमके सरकार ने कानून-व्यवस्था का हवाला देते हुए इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद ही मामला अदालत की अवमानना (Contempt) और फिर महाभियोग तक पहुंच गया.

‘हे पिता, इन्हें माफ करना…’: जब जज ने सरकार को घेरा जब राज्य सरकार ने जस्टिस स्वामीनाथन के आदेश की अवहेलना की, तो जज ने बाइबिल का एक प्रसिद्ध उद्धरण देते हुए अपनी हताशा व्यक्त की. उन्होंने कहा, “मैं यहां हाथ खड़े करके यह चिल्लाने के लिए नहीं बैठा हूं कि- ‘हे पिता, इन्हें माफ कर दो, क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं’.” जस्टिस स्वामीनाथन ने मुख्य सचिव और अन्य अधिकारियों को समन जारी कर दिया. उन्होंने एक व्यापक संदर्भ में सवाल उठाया कि क्या राज्य में ‘अल्पसंख्यक तुष्टिकरण’ चल रहा है? उनके करीबियों के मुताबिक, जज ने यह सख्त रुख तब अपनाया जब उन्हें पता चला कि संसद में उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी हो रही है.

क्या जज वाकई पक्षपाती हैं? पुराना रिकॉर्ड कुछ और कहता है विपक्ष का आरोप है कि जस्टिस स्वामीनाथन आरएसएस और बीजेपी की विचारधारा के करीब हैं. लेकिन उनके साथ काम कर चुके लोग उनके पुराने फैसलों का हवाला देकर इन आरोपों को खारिज करते हैं.

पेरुमल मुरुगन केस (2015): जब मशहूर तमिल लेखक पेरुमल मुरुगन को उनके उपन्यास ‘माधोरुबागन’ के लिए हिंदुत्ववादी समूहों के विरोध का सामना करना पड़ा था, तब जस्टिस स्वामीनाथन (उस समय वकील या न्यायपालिका से जुड़े) ने उनका साथ दिया था. बाद में बतौर जज उन्होंने नोट किया था कि साहित्यक स्वतंत्रता के मामले में जाति और धर्म का मिश्रण एक घातक कॉकटेल है.

तब्लीगी जमात केस (2020): कोरोना महामारी के दौरान जब तब्लीगी जमात के सदस्यों को देशभर में ‘कोरोना फैलाने वाला’ बताकर विलेन बनाया जा रहा था, तब जस्टिस स्वामीनाथन ने ही उन्हें रिहा करने का आदेश दिया था. उन्होंने कहा था कि ये अपराधी नहीं हैं, बल्कि ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें सहानुभूति की जरूरत है. उन्होंने उन्हें अपने घर लौटने की इजाजत दी थी.

‘सव्कु’ शंकर मामला: यूट्यूबर और व्हिसलब्लोअर ‘सव्कु’ शंकर के मामले में भी उनका रुख मिश्रित रहा है. 2022 में उन्होंने शंकर को न्यायपालिका की छवि खराब करने के लिए अवमानना के आरोप में जेल भेजा था. लेकिन 2024 और 2025 में, उन्होंने शंकर को जमानत भी दी और उनके खिलाफ लगाए गए प्रिवेंटिव डिटेंशन (निवारक हिरासत) को रद्द भी किया.

उनके एक करीबी ने हिन्दुस्तान टाइम्स को बताया, “उन्होंने कभी किसी खास का पक्ष नहीं लिया. डेटा इस बात का गवाह है. सिर्फ इसलिए कि उनकी कुछ टिप्पणियों में एक वैचारिक स्वाद हो सकता है, इसका मतलब यह नहीं है कि उनके फैसले भी उसी से प्रभावित हैं.”

महाभियोग: न्यायिक स्वतंत्रता पर हमला? इस मामले पर कानूनी बिरादरी बंटी हुई है. एक दूसरे जज ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि महाभियोग का प्रस्ताव न्यायिक स्वतंत्रता पर एक ‘बेशर्म हमला’ है. उनका तर्क है कि अगर किसी को हाईकोर्ट के जज के फैसले से दिक्कत है, तो उसके पास खंडपीठ (Division Bench) या सुप्रीम कोर्ट जाने का रास्ता खुला है. महज एक फैसले के आधार पर महाभियोग चलाना एक खतरनाक मिसाल कायम कर सकता है. डीएमके सरकार ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, लेकिन साथ ही अपने सांसदों के जरिए संसद में भी मोर्चा खोल दिया है. यह 2026 के तमिलनाडु विधानसभा चुनावों से पहले एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनता जा रहा है.

विवादों से पुराना नाता: ‘कॉमेडी पीस’ और ‘वेद’ जस्टिस स्वामीनाथन पहले भी अपनी टिप्पणियों के लिए सुर्खियों में रहे हैं.

जातिवाद के आरोप: जुलाई में वकील एस. वांचीनाथन ने उन पर जातिवादी और सांप्रदायिक होने का आरोप लगाया था और सीजेआई (CJI) को शिकायत भेजी थी. इस पर जस्टिस स्वामीनाथन ने भरी अदालत में वकीलों को फटकार लगाते हुए कहा था, “मैं नहीं जानता कि आप लोगों को क्रांतिकारी किसने कहा. आप सब कॉमेडी पीस हैं.”

वेदों पर बयान: उनका एक भाषण भी काफी वायरल हुआ था जिसमें उन्होंने एक सड़क दुर्घटना का किस्सा सुनाते हुए कहा था, “उस दिन मुझे अहसास हुआ कि अगर हम वेदों की रक्षा करेंगे, तो वेद हमारी रक्षा करेंगे.” उनके समर्थकों का कहना है कि उन्होंने यह बात पाठशाला के बच्चों से कही थी और यह उनका निजी अनुभव था, जिसे गलत तरीके से पेश किया गया.

अमित शाह का समर्थन और भाजपा कनेक्शन
संसद में जब यह मुद्दा उठा, तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जस्टिस स्वामीनाथन का बचाव किया. शाह ने उनके तर्कों को सही ठहराया. इसके बाद विपक्ष को यह कहने का मौका मिल गया कि जज को भाजपा का समर्थन हासिल है. डीएमके और उसके सहयोगी दल इसे ‘आरएसएस के एजेंडे’ के तौर पर देख रहे हैं.

कौन हैं जस्टिस स्वामीनाथन?
जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन तमिलनाडु के तिरुवरूर से आते हैं. 1991 में उन्होंने वकील के तौर पर अपना रजिस्ट्रेशन कराया. फिर 1997 में पुडुचेरी में स्वतंत्र प्रैक्टिस शुरू की. 2004 में जब मदुरै में हाईकोर्ट की बेंच बनी, तो वे वहां शिफ्ट हो गए. 2017 में उन्हें मद्रास हाई कोर्ट का जज बनाया गया.

उनके एक पूर्व सहयोगी ने कहा, “सिर्फ इसलिए कि वह हिंदू हैं और ब्राह्मण समुदाय से आते हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि वह कानून के खिलाफ जाकर किसी धर्म का पक्ष लेंगे. अगर कानून कहता है तो वह अपने धर्म के खिलाफ भी फैसला देने से नहीं हिचकेंगे.”

तिरुपरनकुंड्रम के दीपक की लौ ने तमिलनाडु से लेकर दिल्ली तक की राजनीति को गरमा दिया है. एक तरफ ‘परंपरा और शांति’ का तर्क है, तो दूसरी तरफ ‘धार्मिक अधिकार और कानून’ की दलील. जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पास होना तकनीकी रूप से बहुत मुश्किल है, लेकिन इसने न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच के टकराव को एक नए स्तर पर पहुंचा दिया है. अब सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट पर हैं कि वह इस मामले में क्या रुख अपनाता है.

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