जमने लगा सेना का खून, नहीं रुकी जोरावर की तलवार, कहलाए ‘भारत का नैपोलियन’

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Last Updated:December 12, 2025, 17:13 IST

इतिहास में अभी तक किसी ने भी उस दिशा में हमला करने की नहीं सोची थी. शून्‍य से भी कम तापमान और बर्फीला इलाका यहां पर किसी सुरक्षा कवच की तरह था. बावजूद इसके जनरल जोरावर ने हिम्‍मत नहीं हारी और वहां परचम लहारा दिया, जहां तक पहुंचने के बारे में किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था. जोरावर की बहादुरी की वजह से भारत को अपना वह छोर मिला, जिसकी सीमा तिब्‍बत है. जोरावर सिंह को दुनिया अब ‘भारत के नैपोलियन’ के तौर पर जानती है.

जमने लगा सेना का खून, नहीं रुकी जोरावर की तलवार, कहलाए ‘भारत का नैपोलियन’

Himalaya’s Alexander General Zorawar Singh: 1930 के दशक का यह वह दौर था, जहां एक तरफ ब्रिटिश हुकूमत तेजी से अपने साम्राज्‍य को फैला रही थी, वहीं दूसरी तरफ उत्‍तर भारत में हर तरफ सिख राजाओं का परचम लहरा रहा था. इसी दौर में महाराज गुलाब सिंह को ऐसा सेनापति मिला, जिसने अपनी बहादुरी और युद्ध कौशल से डोगरा साम्राज्‍य को उसका स्‍वर्णिम काल दिखाया. जी हां, यहां पर हम बात कर रहे हैं जनरल जोरावर सिंह कहलुरिया की.1786 में बिलासपुर (अब हिमाचल प्रदेश) के एक राजपूत परिवार मेंजन्‍में इन्‍हीं जोरावर सिंह कहलुरिया को बाद में दुनिया ने ‘भारत का नैपोलियन’ का नाम दिया.

जम्मू दरबार में शामिल होने से पहले जोरावर सिंह पुनालट वंश की सेना के सैनिक दल में थे. उनकी नेतृत्व क्षमता और साहसिक सोच ने जल्द ही महाराजा गुलाब सिंह का ध्यान खींच लिया. गुलाब सिंह ने उन्हें अपनी सेना में शामिल किया और जल्द ही लद्दाख और तिब्बत जैसे दुर्गम इलाकों की जिम्मेदारी सौंप दी. इसके बाद, 1834 में जोरावर सिंह ने इतिहास का वह अध्याय लिखा, जिसने डोगरा राज्य की नया भविष्‍य लिख दिया. दरअसल, अपनी छोटी-सी सेना के साथ निकले जरावर सिंह ने ज़ंस्कार और लद्दाख के उस इलाके को अपने काबू में किया, जहां कभी किसी भारतीय राजवंश की स्थायी सत्ता नहीं रह पाई थी.

उस समय लद्दाख में राजा त्सेपल नमग्याल का शासन था. बेहद मुश्किल पर्वतीय इलाका और खून जमा देने वाली ठंड इस इलाके के लिए किसी सुरक्षा कवच की तरह काम करता था. जम्मू के डोगरा सैनिक, पहाड़ी राजपूत और बाल्टी सिपाहियों के साथ लद्दाख में अपना परचम लहाराने निकले जोरावर सिंह के कदम न ही इलाके के ऊंचे दुर्गम रास्‍ते रोक पाए और ना बर्फीला इलाका. उनकी रणनीति और युद्ध कौशल ने त्सेपल नमग्याल को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया. राजा नमग्‍याल के आत्‍मसमर्पण करते ही लद्दाख का विलय डोगरा साम्राज्य में हो गया. जम्मू के इतिहास में यह बड़ा राजनीतिक परिवर्तन था, अब डोगरा सरहदें हिमालय की गोद तक पहुंच गई थीं.

लद्दाख के बाद बाल्टिस्तान में लहराया डोगरा शासन का परचम
लद्दाख के बाद जोरावर सिंह की नजर बाल्टिस्तान की तरफ गई. 1840 में उन्होंने गिलगित और बाल्टिस्तान के जार, अहमद शाह के खिलाफ अपनी मुहिम छेड़ दी. इस मुहिम मे उन्‍होंने कई छोटी घाटियों को जीतकर रणनीतिक दर्रों पर अपना नियंत्रण कर लिया. बाल्टिस्तान की यह विजय न सिर्फ सैन्य दृष्टि से, बल्कि वाणिज्यिक रूप से भी महत्वपूर्ण थी. इस जीत ने सिल्क रूट पर डोगरा के प्रभुत्व सुनिश्चित किया और जम्मू दरबार की धाक पूरे हिमालयी उत्तर-पश्चिम में बैठ गई. समय के साथ जोरावर सिंह ने इस इलाके में किले और सड़के बनवाईं, जिनका फायदा बाद में ब्रिटिश शासको ने भी उठाया. जोरावर सिंह की देखरेख में जिस तरह इलाके में किले का निर्माण कर रसद व्यवस्था की गई थी, वह उस युग में किसी भी आधुनिक सैन्य कमांडर के लिए प्रेरक थी.

जोरावर से पहले कोई नहीं कर पाया था त‍िब्‍बत में हमले की हिम्‍मत
लद्दाख को अपने कब्‍जे में लेने के बाद 1841 में जोरावर सिंह ने अपने कदम तिब्‍बत की तरफ बढ़ा दिए. यह कदम शायद अपने जीवन का सबसे साहसिक कदम था. उस समय तक कोई भारतीय सेना इतनी ऊंचाई पर युद्ध छेड़ने की कल्पना भी नहीं कर सकती थी. वे लद्दाख से मानसरोवर झील पार करते हुए गूगे और रूपशु के रास्ते तिब्बत में दाख़िल हुए. उनकी सेना ने सैकड़ों मील का सफर तय किया. तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे होने के बावजूद जोरावर सिंह हिम्‍मत नहीं टूटी. शुरू में तिब्बती सैनिक उनकी शक्ति के आगे टिक नहीं पाए. लेकिन बाद में तिब्बती और चिंग (चीनी) सैनिकों ने एक साथ मिलकर कर पलटवार किया. 12 नवंबर 1841 में तोयु अंतर्गुड़ नामक स्थान पर हुए युद्ध में जोरावर सिंह ने अंतिम सांस ली. वे दुश्मनों से घिरे हुए और अपनी आखिरी सांस तक वह लड़ते रहे.

अमर सेनापति कहलाए जोरावर और भारत को मिली नई पहचान
जोरावर सिंह की मृत्यु के बाद तिब्बत और डोगरा सेनाओं में 1842 की लद्दाख-तिब्बत संधि हुई, जिसने दोनों के बीच सीमाएं तय कीं. यह वही सीमा रेखा है जो आधुनिक भारत की लद्दाख सीमा के रूप में आज भी ऐतिहासिक संदर्भों में उल्लिखित है. गुलाब सिंह ने उन्हें ‘राज्य का अमर सेनापति’ कहा और उनके पराक्रम की स्मृति में लद्दाख की कई जगहों पर स्मारक स्थापित करवाए. डोगरा सैनिकों ने तिब्बत से उनका शरीर वापस लाकर लद्दाख में अंतिम संस्कार किया.

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Anoop Kumar MishraAssistant Editor

Anoop Kumar Mishra is associated with News18 Digital for the last 6 years and is working on the post of Assistant Editor. He writes on Health, aviation and Defence sector. He also covers development related to ...और पढ़ें

First Published :

December 12, 2025, 17:13 IST

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