गोरखा के सामने गिड़गिड़ाने लगे थे पाक सैनिक, कारगिल में चटाई थी धूल

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Last Updated:July 14, 2025, 13:49 IST

KARGIL VIJAY DIVAS: 26 साल पहले परवेज़ मुशर्रफ के सियाचिन के क़ब्ज़े के प्लान पर गोरखा रेजिमेंट ने पानी फेर दिया था. पूरी दुनिया को ये दिखा दिया था कि विषम परिस्थियों में भारतीय सेना न सिर्फ लड़ सकती है बल्की ज...और पढ़ें

गोरखा के सामने गिड़गिड़ाने लगे थे पाक सैनिक, कारगिल में चटाई थी धूल

कारगिल शहीदों को सम्मान

हाइलाइट्स

गोरखा रेजिमेंट ने कारगिल में पाक सैनिकों को हराया था.भारतीय सेना ने नेपाल जाकर गोरखा सैनिकों को सम्मानित किया.गोरखा रेजिमेंट का इतिहास 200 साल पुराना है.

KARGIL VIJAY DIVAS: कारगिल की लड़ाई वो पहली लड़ाई थी जिसे देश के लोगों ने टीवी के जरिए देखा था. अमूमन सब जगह तक कैमरे पहुंचे थे लेकिन कुछ इलाके ऐसे थे जहां कैमरे नहीं पहुंच सके थे, वो जगह थी बटालिक. जहां पाकिस्तान 13 किलोमीटर अंदर तक आ चुका था और उनका मकसद था बटालिक गांव पर कब्जा कर सियाचिन पर दबाव बनाना. इस मोर्चे पर पाकिस्तानियों को खदेड़ने के लिए भारतीय सेना की 1/11 गोरखा बटालियन को भेजा गया. परमवीर चक्र से सम्मानित कैप्टन मनोज पांडे ने खालूबार की चोटी को पाकिस्तानी सेना से मुक्त कराया था, पूरे कारगिल युद्ध के दौरान 18 गोरखा सैनिकों ने अपनी जान गंवाई थी. उन्हीं जवानों की बहादुरी को याद करते हुए 26वीं विजय दिवस से पहले सेना के अधिकारी नेपाल में उनके घर पहुंचे और उन्हें सम्मान दिया. इनमें कारगिल युद्ध में बहादुरी के लिए वीर चक्र (मरणोपरांत) से नवाजे गए हवलदार भीम बहादुर दीवान के परिवार से मिलने ईस्टर्न नेपाल के कोशी पहुंचे. तो सेना मेडल से सम्मानित राइफलमैन पृथ्वी बहादुर के परिजन वेस्टर्न नेपाल के कुशमा में पहुंचे.

हर शहीद के घर पहुंच रही सेना
कारगिल की जंग में 545 सैनिक शहीद हो गए थे. वैसे तो हर साल कारगिल वॉर मेमोरियल पर सैनिकों के परिवार को न्योता दिया जाता है, इस बार सेना उन शहीदों के घर जाकर उन्हें सम्मान देने का अभियान शुरू किया. इस अभियान में सेना के अधिकारी शहीदों के घर जाकर उनके परिजनों से मुलाकात कर रहे हैं. साथ ही उन्हें धन्यवाद पत्र और स्मृति चिन्ह भी प्रदान कर रहे हैं. इस पूरे अभियान में सेना की टीमें देश के 25 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में सैनिकों के घरों के अलावा भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट में शामिल नेपाली गोरखा सैनिकों के घर भी पहुंची. इस आउटरीच प्रोग्राम में परिवार वालों की दिक्कतों और परेशानियों की जानकारी ली जा रही है. हर संभव मदद भी की जा रही है.

गोरखा रेजिमेंट का 200 साल का इतिहास
गोरखा रेजिमेंट का इतिहास 200 साल पुराना है. शायद ये दुनिया की इकलौती ऐसी रेजिमेंट है जो एक नहीं, दो नहीं बल्कि कई देशों की सेना में अपनी बहादुरी के परचम लहरा रही है. सबसे ज्यादा गोरखा भारतीय सेना का हिस्सा हैं. उसके बाद नेपाल और फिर ब्रिटिश सेना में गोरखा शामिल हैं. ब्रिटिश और नेपाल की सेना में तो सिर्फ नेपाल के गोरखा ही भर्ती होते हैं जबकि भारतीय सेना के इस रेजिमेंट में नेपाली गोरखा और भारतीय गोरखा दोनों शामिल हैं. लेकिन अब नेपाल अपने गोरखा को भारतीय सेना नहीं भेज रहा है. इसकी वजह है सेना में भर्ती के लिए लाए गए अग्निपथ स्कीम. जब से यह स्कीम आई है उसके बाद से नेपाल ने एक भी भर्ती रैली आयोजित नहीं करने दी है. 2019 से एक भी नेपाली गोरखा भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट को नहीं मिला और हर साल गोरखा सैनिक रिटायर हो रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले 10-12 साल में भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट में एक भी नेपाली गोरखा नहीं रहेगा.

समय के साथ कैसे बदली ये रेजिमेंट?
यूके नेपाल में अपनी भर्ती रैली में सबसे पहले सबसे बेहतर गोरखा को भर्ती करता है. उसके बाद नंबर भारत का आता है जहां भारतीय सेना भी सबसे बहादुर सैनिकों का चयन कर ले जाती है और जो बाकी बच जाते हैं वो नेपाल की सेना में शामिल हो जाते हैं. आजादी से पहले तक गोरखा रेजिमेंट में करीब 90 फीसदी गोरखा सैनिक नेपाल के होते थे और 10 फीसदी भारतीय गोरखा. लेकिन जैसे-जैसे समय बीता इस प्रतिशत को 80:20 किया गया और बाद में इसे 60:40 तक कर दिया गया. यानी कि 60 फीसदी नेपाली डोमिसाइल गोरखा और 40 फीसदी भारतीय डोमिसाइल गोरखा. भारतीय सेना में गोरखा की सात रेजिमेंट की 43 से ज्यादा बटालियन हैं.

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