हाल ही मिस्र के एक शोधकर्ता ने सनसनीखेज दावा किया है. उन्होंने कहा कि मिस्र के सीनाई प्रायद्वीप में मौजूद सेराबीत एल-खादीम नाम की जगह पर एक प्राचीन शिलालेख (inscription) मिली है, जिसमें हिब्रू भाषा के शब्द 'zot m'Moshe' लिखे हो सकते हैं, जिसका मतलब है- 'यह मूसा की तरफ से है.' यह जगह मिस्र की एक प्राची खदान है, और अगर यह शिलालेख वास्तव में मूसा (अ.स.) यानी Moses से जुड़ा हुआ है, तो यह बाइबिल की किताब 'एक्सोडस' (Exodus) की तारीख को साबित कर सकता है. इससे यह भी संकेत मिल सकता है कि मूसा (अ.स.) एक असली तारीखी शख्सियत थे.
इस शिलालेख को एक्सपर्ट्स बार-रॉन कहते हैं, जो करीब 1800 ईसा पूर्व (12वीं राजवंश) के वक्त का माना जाता है और इसे प्रोटो-सिनैटिक लिपि (Proto-Sinaitic script) में लिखा गया है. वैज्ञानिकों का मानना है कि ये लेख सेमिटिक (Semitic) भाषा बोलने वाले वर्कर्स ने लिखे थे.
कौन हैं बार-रॉन?
रिसर्चर बार-रॉन ने इस शिलालेख को 8 साल तक गहराई से अध्ययन किया. उन्होंने इसके लिए हाई-रेज़ोलूशन इमेज और 3D स्कैन का इस्तेमाल किया. उनकी रिसर्च के मुताबिक, यह लेख किसी ऐसे शख्स के द्वारा लिखा हो सकता है जो मूसा को समर्पित कर रहा था, या शायद खुद मूसा (अ.स.) ने इसे लिखा हो.
धार्मिक ग्रंथ के मुताबिक, मूसा (अ.स.) ही वे शख्सियत थे, जिन्हें ईश्वर ने सिनाई के पहाड़ पर दस अहकामात (आज्ञाएं) दी थीं. उनका कहना है कि उनके नताईज (निष्कर्षों) से इस क्षेत्र में बरसों पहले धार्मिक तनाव की मौजूदगी का संकेत मिलता है. इसका एक मिसाल 'एल' नामक देवता का उल्लेख है, जिसका उल्लेख प्रारंभिक इस्राएली पूजा में भी मिलता है. साथ ही, मिस्र की देवी हथोर के नाम को डिस्टोर्ड किए जाने के भी संकेत मिलते हैं.
इतिहास की गलत व्याख्या: एक्सपर्ट्स की चेतावनी
बर-रॉन को उनके गाइड डॉ. पीटर वान डर वीन का सपोर्ट मिला है, जिन्होंने इस बात की पुष्टि की है कि उस शिलालेख में लिखा है – 'यह मूसा की तरफ से है.' उन्होंने कहा कि, 'आप बिल्कुल सही कह रहे हैं, मैंने भी ऐसा ही पढ़ा है, यह कोई कल्पना नहीं है!' लेकिन दूसरे कई एक्सपर्ट्स बार-रॉन की इस तशरीह ( व्याख्या ) से सहमत नहीं हैं.
'अप्रमाणित और भ्रामक'
उनका कहना है कि प्रोटो-सिनाइटिक लिपि सबसे पुरानी वर्णमाला मानी जाती है. इसे समझना बहुत मुश्किल है. एक एक्सपर्ट्स ने चेतावनी दी है कि इस तरह की व्याख्याएं तथ्यों को तोड़-मरोड़ सकती हैं और इतिहास को गलत ढंग से पेश कर सकती हैं. डॉ. थॉमस श्नाइडर, जो कि मिस्र के इतिहास के एक्सपर्ट और यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया में प्रोफेसर हैं, उन्होंने कहा कि मूसा (अ.स.) से जुड़ी ये बातें अप्रमाणित और भ्रामक हैं.
ये प्राचीन शिलालेख पुराने फिरौन एमेनएमहाट तृतीय के शासनकाल के वक्त के हैं. बार-रॉन ने ऐसे 22 शिलालेखों का विश्लेषण किया है. कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि यही फिरौन बाइबल की किताब 'एक्सोडस' में दर्ज राजा हो सकता है. यह किताब बनी इसराइल ( इस्राइलियों ) की इबतदा (उत्पत्ति ) की कहानी का पहला हिस्सा है, जिसमें बताया गया है कि वे कैसे मिस्र में गुलामी से मुक्त हुए और याहवे (ईश्वर) की मदद से आज़ादी पाई.
धार्मिक तनाव के संकेत
वहीं, इस शिलालेख का हार्वर्ड के सेमिटिक म्यूज़ियम में 3डी स्कैन और तस्वीरों का स्टडी किया गया. बार-रॉन ने शिलालेखों को पांच कैटेगरी में बांटा, जिनमें एक में देवी बालात को समर्पित लेख थे. लेकिन कुछ जगहों पर बालात के सम्मान में की गई नक्काशी को एल (El) नाम के देवता के अनुयायियों ने खरोंचकर खराब कर दिया था, जो धार्मिक विरोध का एक बड़ा संकेत है.
'बालात का जला हुआ मंदिर'
मिस्र के शासन के खिलाफ बगावत का एक और संकेत बालात का जला हुआ मंदिर है, जिसे अमेनेमहात तृतीय ने बनवाया था. इसके अलावा शापित द्वार (Gate of the Accursed One) का ज़िक्र भी मिला, जो शायद फिरौन के दरवाज़े की तरफ इशारा करता है. जबकि एक अन्य नक्काशी में 'मोशे' या मूसा (अ.स.) नाम का भी ज़िक्र हो सकता है, ऐसा बार-रॉन ने Patterns of Evidence को बताया.