Last Updated:November 05, 2025, 17:07 IST
जोहरान ममदानी की जीत के बाद ट्रंपविरोधियों में उत्साह का संचार हुआ है. पहला असर अगले साल अमेरिकी संसद के चुनाव में दिखाई दे सकता है. डेमोक्रैटिक पार्टी नए जोश के साथ मैदान में होगी. लेकिन भारतीय मूल के होते हुए भी ममदानी की जीत हमारे लिए शुभ संकेत नहीं है.
ममदानी की जीत बनी ट्रंप के लिए सिरदर्दविवेक रामास्वामी लाख कह दें वो अमेरिकन हैं, भारतीय नहीं लेकिन हमारे प्यार में कोई कमी नहीं आती. एच-1 बी वीजा पर हजार तरह की शर्तें लग जाएं ताकि भारतीय युवा आसानी से अमेरिका न पहुंच पाएं और कोर्ट में अपर्णा दवे जमकर ट्रंप का सपोर्ट करें. हमें फर्क नहीं पड़ता. हम गर्व करना शुरू कर देते हैं. बस भारत से कनेक्शन होना चाहिए. काश पटेल एफबीआई के हेड हैं लेकिन चेन में बांधकर अवैध प्रवासियों को भारत वापस भेजने का समर्थन करते हैं. तब भी हम ताव देकर कहते हैं ट्रंप सरकार भारतीयों के भरोसे चल रही है. भारत से कोई भी कनेक्शन होना चाहिए. बाकी फर्क नहीं पड़ता. यहां तक कि तुलसी गबार्ड को भी हम अपना मानने लगे हैं जो सिर्फ हिंदू हैं, भारत से दूर-दूर तक कनेक्शन नहीं.जोहरान ममदानी अपवाद साबित हो सकते हैं. न्यूयॉर्क के नए मेयर बने हैं.भारत में उन्हें तमाम बुराइयां नजर आती है. ट्रंप के दोस्त मोदी से भी उन्हें नफरत है.
ममदानी फिल्ममेकर मीरा नायर और युगांडा बस गए भारतीय महमूद ममदानी के बेटे हैं. मंदिर जूता पहनकर जाते हैं. हिंदुफोबिया फैलाते हैं. गुरुद्वारा जाते हैं तो सिखों को भारत में सताया हुआ बताते हैं. ममदानी ने मोदी सरकार के नगारिकता संशोधन कानून (CAA) का भी विरोध किया था. न्यूयॉर्क सिटी में लगभग ढाई लाख भारतीय रहते हैं. इसमें कोई शक नहीं इनके वोट भी ममदानी को मिले होंगे. हालांकि कई प्रमुख भारतीय अमेरिकन संगठन ममदानी का पुरजोर विरोध करते आए हैं. इनमें Americans4Hindus, विश्व हिंदू परिषद ऑफ अमेरिका शामिल है.
जोहरान ममदानी को अश्वेत समूहों, लैटिन और अरब मूल के लोगों का जबरदस्त समर्थन मिला है. दुनिया को टेंशन में रखने वाले डोनाल्ड ट्रंप खुद टेंशन में थे कि ममदानी कहीं जीत न जाए. उनको दिक्कत इस बात से थी ममदानी कम्युनिस्ट है. दरअसल ट्रंप को दिक्कत तो लंदन के मेयर सादिक खान से भी है. उस पर इंग्लैंड में शरिया कानून फैलाने का आरोप लगा चुके हैं. यूएन के मंच से लताड़ चुके हैं. इंग्लैंड गए तो रॉयल डिनर में सादिक को बाहर करा दिया. अब खुद इस्लामी कट्टरपंथ और अवैध प्रवासियों के खिलाफ मुहिम चला रहे. ऐसे में ममदानी को बर्दाश्त कैसे कर सकते हैं. ऊपर से कम्युनिस्ट. पूंजीवाद के पुजारी अमेरिका में कोई सोशलिस्ट – कम्युनिस्ट न्यूयॉर्क जैसी ग्लोबल सिटी का मेयर बन जाए तो ट्रंप का परेशान होना लाजिमी है. धमकी ट्रंप ने पहले ही दे दी थी कि अगर ममदानी जीता तो फेडरल फंडिंग रोक देंगे.
केजरीवाल स्टाइल घोषणापत्र
ममदानी ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया. ममता बनर्जी और स्टालिन जैसे नेता मोदी सरकार पर पैसा रोकने का आरोप लगाते हैं, उसी तरह ममदानी ने इसे हथियार बना लिया. फिर नीतीश कुमार, रेवंत रेड्डी, केजरीवाल स्टाइल में घोषणापत्र भी जारी कर दिया. जीते तो बस की सवारी फ्री, हाउस रेंट पर फ्रीज और किराना के सरकारी दुकान. बिल्कुल केंद्रीय भंडार जैसा. ममदानी ने एक झटके में वर्कर क्लास को अपने पाले में कर लिया. कॉरपोरेट अमेरिकन्स अलग-थलग पड़ गए. दरअसल ममदानी डेमोक्रैटिक सोशलिस्ट ऑफ अमेरिका से जुड़े हैं. समाजवादी विचारधारा वाला ये संगठन वियतनाम वॉर के समय काफी फोकस में आया था. लेहमन ब्रदर्स के दिवालिया होने के बाद जो आर्थिक संकट आया उसके बाद डीएसए फिर से जड़ें फैलाने लगा. ये संगठन गरीबी-अमीरी के बीच बढ़ती खाई को बड़ा मुद्दा बनाता आया है.
लेकिन ममदानी की राय फलस्तीन जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी ट्रंप से अलग है. वो इजरायल की मजम्मत करते हैं. कुछ लोग उन्हें इस्लामी जिहादी बताते हैं. फिर भी वो जीत जाते हैं. जीत के बाद वो कहते हैं..डोनाल्ड ट्रंप, मुझे पता है आप ये शो देख रहे होंगे. जरा साउंड सिस्टम का वॉल्युम बढ़ा लीजिए.अगर न्यूयॉर्क में किसी भी शख्स की तरफ नजर डाली तो आपको हम सबके ऊपर से गुजरना होगा. दरअसल वो अवैध तरीके से अमेरिका में आए लोगों को निकालने पर ट्रंप को चैलेंज कर रहे हैं.
ट्रंप ने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि बैलट पेपर पर उनका नहीं होना और शटडाउन दो ऐसे मुद्दे रहे जिसके कारण रिपब्लिकन पार्टी हार गई.उनका डर इससे कहीं बड़ा है. ट्रंप को डर है डेमोक्रैटिक पार्टी कहीं अगले साल संसद के चुनाव में न बाजी मार जाए.यही नहीं अचानक ट्रंप विरोधियों में ममदानी एक विकल्प के रुप में नजर आ सकते हैं. जोहरान की जीत भारत में जश्न लायक कतई नहीं है. सिर्फ उनकी सोच के कारण नहीं जिनकी चर्चा ऊपर कर चुका हूं बल्कि ट्रंप के कारण. पहले ही भारत पर टैरिफ लगा चुके हैं. रूस से तेल न लेने का दबाव बना रहे. पाकिस्तान के साथ सीजफायर का क्रेडिट न मिलने से झल्लाए हैं. अब ममदानी के बाद कहीं भारतीय अमेरिकन पर और भड़ास न निकाल दें.
आलोक कुमारEditor
आलोक कुमार न्यूज 18 में हिंदी डिजिटल के संपादक हैं. इनके जिम्मे कई स्पेशल प्रोजेक्ट्स हैं. पिछले दो दशकों में यूनीवार्ता, बीबीसी, सहारा, टीवी 9, टाइम्स नेटवर्क और जी ग्रुप में अलग-अलग भूमिकाओं में रहे हैं.
आलोक कुमार न्यूज 18 में हिंदी डिजिटल के संपादक हैं. इनके जिम्मे कई स्पेशल प्रोजेक्ट्स हैं. पिछले दो दशकों में यूनीवार्ता, बीबीसी, सहारा, टीवी 9, टाइम्स नेटवर्क और जी ग्रुप में अलग-अलग भूमिकाओं में रहे हैं.
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First Published :
November 05, 2025, 17:01 IST

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