जिस चो-ला और डोक-ला में सेना ने चीन‍ियों को खदेड़ा था, वहां घूम सकेंगे सैलानी

7 hours ago

गंगटोक. इंडियन आर्मी के इतिहास में आज का दिन सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा. सिक्किम की उन बर्फीली चोटियों पर, जहां कभी बारूद की गंध और तोपों की गरज गूंजी थी, अब वहां पर्यटकों की हंसी और मोटरसाइकिलों की आवाज सुनाई देगी. भारत ने चीन को कड़ा और स्पष्ट संदेश देते हुए रणनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील चो-ला (Cho La) और डोक-ला (Dok La) को पर्यटकों के लिए खोल दिया है. चो-ला दर्रा हिमालय में स्थित एक महत्वपूर्ण पर्वतीय दर्रा है, जो भारत के सिक्किम राज्य और तिब्बत (चीन) के बीच स्थित है. यह दर्रा समुद्र तल से लगभग 4,300 मीटर की ऊंचाई पर है और ऐतिहासिक, सामरिक व रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है.

यह वही जगहें हैं जहां भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों के अहंकार को चकनाचूर किया था. यह वही डोकलाम का क्षेत्र है जहां 2017 में 73 दिनों तक भारतीय जांबाज चीन की आंखों में आंखें डालकर खड़े रहे थे. आज सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने गंगटोक के रिज पार्क से पर्यटकों के पहले जत्थे को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया, और इसके साथ ही ‘बैटलफील्ड टूरिज्म’ (Battlefield Tourism) के एक नए युग की शुरुआत हो गई.

अब वहां गूंजेगा ‘जय हिंद’

आमतौर पर सीमावर्ती इलाकों को ‘प्रतिबंधित क्षेत्र’ माना जाता है, लेकिन भारत सरकार का यह फैसला ड्रैगन (चीन) के लिए किसी मनोवैज्ञानिक हार से कम नहीं है. जिस जगह को लेकर चीन अक्सर गीदड़भभकियां देता रहता है, भारत ने वहां आम नागरिकों को भेजकर यह साफ कर दिया है कि यह जमीन हमारी है और यहां हम जब चाहें, जैसे चाहें आ-जा सकते हैं.

आखिर ‘चो-ला’ में हुआ क्या था.

यह साल 1967 की बात है. 1962 के युद्ध के बाद चीन को गलतफहमी थी कि वह भारतीय सेना को दबा सकता है. लेकिन 1967 में नाथू-ला और चो-ला में जो हुआ, उसने चीनी सेना (PLA) की रूह कंपा दी थी.1 अक्टूबर 1967 को चो-ला पास पर चीनी सैनिकों ने भारतीय चौकियों पर कब्जा करने की कोशिश की थी. उस समय 7/11 गोरखा राइफल्स और 10 जैक राइफल्स के जवानों ने जो पराक्रम दिखाया, वह आज भी मिलिट्री अकादमियों में पढ़ाया जाता है. बिना किसी डर के भारतीय जवानों ने चीनी सैनिकों के साथ ‘हैंड-टू-हैंड कॉम्बैट’ (गुत्थमगुत्था की लड़ाई) की थी. आसान भाषा में कहें तो उस दिन भारतीय वीरों ने चीनी सैनिकों को उनकी ही पोस्ट में घुसकर पीटा था. उस संघर्ष में चीन को भारी नुकसान उठाकर पीछे हटना पड़ा था. अब 58 साल बाद, आम भारतीय उस शौर्य गाथा की मिट्टी को नमन करने वहां जा सकेंगे.

डोकलाम: 2017 का वो तनातनी वाला मैदान

डोक-ला (जिसे डोकलाम के नाम से जाना जाता है) का नाम सुनते ही 2017 का वो मंजर याद आ जाता है जब भारत और चीन की सेनाएं 73 दिनों तक आमने-सामने डटी थीं. यह एक ऐसा ‘ट्राइ-जंक्शन’ है जहां भारत, भूटान और तिब्बत (चीन) की सीमाएं मिलती हैं. चीन वहां सड़क बनाने की कोशिश कर रहा था, जिसे भारतीय सेना ने रोक दिया था.

उस समय पूरी दुनिया को लगा था कि युद्ध होकर रहेगा. लेकिन भारतीय नेतृत्व और सेना के अडिग हौसले ने चीन को अपने कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर दिया. आज उस डोक-ला को पर्यटकों के लिए खोलना भारत की रणनीतिक आत्मविश्वास (Strategic Confidence) का प्रतीक है. यह कदम बताता है कि भारत अब अपनी सीमाओं पर ‘डिफेंसिव’ (रक्षात्मक) नहीं, बल्कि ‘असर्टिव’ (मुखर) नीति अपना रहा है.

बैटलफील्ड टूरिज्म: सिर्फ सैर-सपाटा नहीं, एक रणनीति

सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग ने जब आज 25 मोटरसाइकिलों और पर्यटक वाहनों को हरी झंडी दिखाई, तो यह सिर्फ पर्यटन को बढ़ावा देने की बात नहीं थी. इसके पीछे एक गहरी कूटनीति छिपी है. रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि जब सीमावर्ती इलाकों में आम नागरिक और पर्यटक जाने लगते हैं, तो उस क्षेत्र पर देश का दावा और मजबूत हो जाता है. चीन अक्सर उन इलाकों में घुसपैठ की कोशिश करता है जो वीरान होते हैं. पर्यटकों की आवाजाही से वहां हमेशा हलचल रहेगी, जो एक ‘अनौपचारिक निगरानी’ (Informal Surveillance) का काम करेगी. पर्यटन शुरू होने का मतलब है कि चो-ला और डोक-ला तक जाने वाली सड़कों को ‘वर्ल्ड क्लास’ बनाया जाएगा. सेना के लिए लॉजिस्टिक्स पहुंचाना और आसान होगा. यानी, बहाना पर्यटन का है, लेकिन तैयारी सुरक्षा की है. जब देश का युवा वहां जाकर देखेगा कि किन विषम परिस्थितियों में, माइनस तापमान में हमारे जवान तैनात रहते हैं, तो सेना और जनता के बीच का रिश्ता और मजबूत होगा. यह पर्यटन नहीं, बल्कि एक ‘तीर्थयात्रा’ होगी.

सफर चुनौतियों भरा, लेकिन रोमांचक

चो-ला पास: गंगटोक से इन इलाकों तक का सफर किसी एडवेंचर से कम नहीं होगा. यह समुद्र तल से लगभग 14,500 फीट की ऊंचाई पर है. यहां पहुंचने के लिए बादलों को चीरकर ऊपर जाना होता है.

डोक-ला: यह भी अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित है. यहां का मौसम पल भर में बदलता है. कभी तेज धूप, तो अगले ही पल बर्फीली आंधी.

पर्यटकों के पहले जत्थे में शामिल एक बाइक राइडर ने कहा, हमने बचपन में कहानियों में सुना था कि कैसे हमारे दादा-परदादाओं की उम्र के सैनिकों ने 1967 में चीनियों के दांत खट्टे किए थे. आज हम उस जमीन को चूमने जा रहे हैं. यह सिर्फ एक राइड नहीं है, यह हमारे लिए गर्व का क्षण है.

भारत ने नीति पूरी तरह बदल दी

जाहिर है, भारत के इस कदम से बीजिंग में खलबली मचना तय है. चीन हमेशा से अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के सीमावर्ती इलाकों में भारतीय गतिविधियों का विरोध करता रहा है. लेकिन 2020 के गलवान संघर्ष के बाद से भारत ने अपनी नीति पूरी तरह बदल दी है. अब भारत चीन की ‘आपत्तियों’ की परवाह नहीं करता. बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइजेशन (BRO) ने पिछले कुछ सालों में यहां सड़कों का जाल बिछा दिया है. जहां पहले सेना की गाड़ियों को पहुंचने में घंटों लगते थे, वहां अब सरपट गाड़ियां दौड़ती हैं. इन्ही सड़कों का लुत्फ अब पर्यटक उठाएंगे.

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