Last Updated:December 16, 2025, 02:50 IST
Vijay Diwas: 16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना ने पाकिस्तान को हराकर बांग्लादेश को आज़ादी दिलाई. इस दौरान शेख मुजीबुर रहमान, अवामी लीग और मुक्ति वाहिनी की भूमिका ऐतिहासिक रही. 1974 में मजबूरी में पाकिस्तान को बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देनी पड़ी.
भारतीय सेना के सामने 90 हजार से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों ने सरेंडर किया था.नई दिल्ली. 16 दिसंबर का दिन भारत और बांग्लादेश के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है. यह वही तारीख है जब 1971 में भारतीय सेना के अदम्य साहस के आगे पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए थे. इस युद्ध ने न केवल पाकिस्तान के दो टुकड़े किए बल्कि दुनिया के नक्शे पर एक नए देश ‘बांग्लादेश’ को जन्म दिया. पश्चिमी पाकिस्तान के अहंकार और पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) पर हो रहे अत्याचारों का अंत भारत ने अपनी ताकत से किया. आज हम विजय दिवस मना रहे हैं, जो भारतीय सैनिकों के शौर्य और बलिदान की गाथा है. पाकिस्तानी सेना के हजारों सैनिकों का सरेंडर आज भी दुनिया की सबसे बड़ी सैन्य जीतों में गिना जाता है. आइए जानते हैं इस ऐतिहासिक जीत और बांग्लादेश के बनने की पूरी कहानी.
धर्म के नाम पर बंटवारा और भाषा का विवाद
इस युद्ध की नींव 1947 में ही पड़ गई थी. पाकिस्तान धर्म के आधार पर भारत से अलग हुआ था. उसके दो हिस्से थे- पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान. पूर्वी पाकिस्तान में 56 फीसदी आबादी थी और उनकी भाषा बांग्ला थी. वहीं पश्चिमी पाकिस्तान में पंजाबी, सिंधी और पश्तो बोली जाती थी. पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं को बांग्ला भाषा और वहां के लोगों से नफरत थी. उन्हें लगता था कि बांग्ला पर हिंदुओं का असर है. उन्होंने बांग्ला को सरकारी कामकाज से बाहर कर दिया. यहीं से विद्रोह की चिंगारी भड़की.
शेख मुजीबुर रहमान और 1970 का चुनाव
पूर्वी पाकिस्तान के लोगों का अपमान बढ़ता गया. 1952 में भाषा को लेकर आंदोलन शुरू हुआ. अवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर रहमान पूर्वी पाकिस्तान की आवाज बनकर उभरे. 1970 के आम चुनाव में एक बड़ा उलटफेर हुआ. शेख मुजीबुर रहमान की अवामी लीग ने 162 में से 160 सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की. यह जीत पश्चिमी पाकिस्तान के हुक्मरानों को हजम नहीं हुई. उन्होंने मुजीबुर रहमान को सत्ता सौंपने से साफ इनकार कर दिया. यह लोकतंत्र की हत्या थी.
पाकिस्तानी सेना का ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ और नरसंहार
जब मुजीबुर रहमान ने हक मांगा, तो उन पर देश तोड़ने का आरोप लगाया गया. 25 मार्च 1971 को पाकिस्तानी सेना ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं. उन्होंने निर्दोष नागरिकों पर दमनकारी अभियान चलाया. इसे रोकने के लिए कोई नहीं था. भारी तादाद में शरणार्थी अपनी जान बचाने के लिए भारत भागने लगे. बांग्लादेश में मुक्ति संग्राम शुरू हो चुका था. पाकिस्तानी सैनिकों ने 25 मार्च से 16 दिसंबर तक जमकर नरसंहार किया.
भारत की एंट्री और पाकिस्तान का सरेंडर
भारत अब चुप नहीं बैठ सकता था. 4 दिसंबर 1971 को भारत ने आधिकारिक तौर पर पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया. भारतीय सेना ने मुक्ति वाहिनी के साथ मिलकर पाकिस्तानी सेना को घेर लिया. यह युद्ध महज 13 दिन चला. 16 दिसंबर को पाकिस्तानी सेना ने हार मान ली. यह भारत की बहुत बड़ी जीत थी.
पाकिस्तान के करीब 82 हजार सैनिकों को भारत ने बंदी (Prisoner of War) बना लिया.
इसके अलावा करीब 11 हजार पाकिस्तानी नागरिक भी पकड़े गए.
कुल मिलाकर 93,000 के करीब लोगों ने सरेंडर किया.
आखिरकार बांग्लादेश को मिली मान्यता
इस युद्ध के बाद पाकिस्तान पूरी तरह टूट चुका था. दिसंबर 1971 में ही मजबूरी में पाकिस्तान को बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देनी पड़ी. इसके बाद ही भारत ने उन युद्धबंदियों को रिहा किया. आज भी यह दिन भारतीय सेना के पराक्रम की याद दिलाता है.
About the Author
राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h...और पढ़ें
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
December 16, 2025, 02:44 IST

8 hours ago
