Last Updated:December 15, 2025, 22:40 IST
Global Teacher Prize 2026: ग्लोबल टीचर प्राइज 2026 के लिए भारत के तीन शिक्षकों को टॉप-50 में जगह मिली है. मेरठ, कश्मीर और देशभर के स्लम-ग्रामीण इलाकों में शिक्षा के जरिए बदलाव लाने वाले ये शिक्षक 9 करोड़ रुपए के प्रतिष्ठित अवॉर्ड की दौड़ में हैं. जानिए कौन हैं ये तीन टीचर और क्यों है उनकी कहानी खास.
ग्लोबल टीचर प्राइज 2026 के टॉप-50 में भारत के तीन शिक्षक शामिल. (फोटो AI)Global Teacher Prize 2026: भारत के लिए शिक्षा के मोर्चे पर एक बड़ी और गर्व की खबर सामने आई है. दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित शिक्षकों के सम्मान ग्लोबल टीचर प्राइज 2026 के लिए भारत के तीन शिक्षकों को टॉप-50 में जगह मिली है. यह वही अवॉर्ड है जिसकी इनामी राशि करीब 9 करोड़ रुपए (1 मिलियन डॉलर) है और जिसे अकसर ‘शिक्षा का नोबेल’ भी कहा जाता है.
इस सम्मान के लिए चुने गए तीनों भारतीय शिक्षक सिर्फ क्लासरूम तक सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने शिक्षा को समाज बदलने का औजार बनाया है. कोई स्लम और गांवों में पढ़ा रहा है. कोई कश्मीर जैसे संघर्ष क्षेत्र में बच्चों को नई राह दिखा रहा है. तो कोई तकनीक, योग और कला के जरिए पढ़ाई को जिंदगी से जोड़ रहा है.
क्या है ग्लोबल टीचर प्राइज?
ग्लोबल टीचर प्राइज की शुरुआत शिक्षकों के योगदान को वैश्विक मंच पर पहचान देने के लिए की गई थी. इसे यूके स्थित वार्की फाउंडेशन द्वारा आयोजित किया जाता है. इसमें यूनेस्को भी सहयोग करता है. इस साल प्रतियोगिता के 10वें संस्करण में 139 देशों से 5,000 से ज्यादा नामांकन आए.
इस अवॉर्ड का मकसद ऐसे शिक्षकों को सामने लाना है, जो:
पढ़ाने के पारंपरिक तरीकों से आगे बढ़ते हैं. समाज और समुदाय पर गहरा असर डालते हैं. बच्चों को ग्लोबल सिटीजन बनने के लिए तैयार करते हैं.क्यों खास है भारत के तीन शिक्षकों का चयन?
वार्की फाउंडेशन के संस्थापक सनी वार्की ने कहा कि ये शिक्षक न सिर्फ दिमाग गढ़ते हैं, बल्कि आत्मविश्वास जगाते हैं और भविष्य के दरवाज़े खोलते हैं. भारतीय शिक्षकों का चयन यह दिखाता है कि भारत में शिक्षा सिर्फ सिलेबस नहीं, बल्कि समाधान और संवेदना का माध्यम बन रही है.
कैसे बदली इन शिक्षकों ने पढ़ाई की परिभाषा?
प्रोजेक्ट-बेस्ड और आर्ट-इंटीग्रेटेड लर्निंग. संघर्ष और हिंसा से जूझते इलाकों में शिक्षा के जरिए उपचार. स्लम और ग्रामीण इलाकों तक शिक्षा को घर-घर पहुंचाना. क्लासरूम से बाहर जाकर समुदाय निर्माण.कौन हैं ये तीन भारतीय शिक्षक?
सुधांशु शेखर पांडा: मेरठ के केएल इंटरनेशनल स्कूल में अर्थशास्त्र और भूगोल पढ़ाने वाले पांडा को उनकी इनोवेटिव टीचिंग के लिए चुना गया है. उन्होंने टेक्नोलॉजी, योग और कला को पढ़ाई से जोड़ा. उन्होंने ‘फुहार’ नाम की पहल भी शुरू की, जो वंचित परिवारों को शिक्षा और जरूरी संसाधन मुहैया कराती है.
मेहराज खुर्शीद मलिक: जम्मू-कश्मीर के संघर्षग्रस्त इलाकों में पढ़ाने वाले मलिक ने माइक्रोसॉफ्ट की नौकरी छोड़कर शिक्षा को चुना. वे शांति, भावनात्मक उपचार और डी-रेडिकलाइजेशन पर काम कर रहे हैं. उनके बनाए ‘इंसानियत करिकुलम’ और ‘सही रास्ता’ मॉडल को खास पहचान मिली है.
रूबल नागी: रूबल नागी आर्ट फाउंडेशन के जरिए वे स्लम और ग्रामीण इलाकों में शिक्षा को कला, स्वच्छता और सामुदायिक विकास से जोड़ती हैं. मिसाल मुंबई और मिसाल इंडिया जैसे प्रोग्राम 100 से ज्यादा बस्तियों और गांवों में चल रहे हैं.
आगे की प्रक्रिया क्या है?
टॉप-50 में से टॉप-10 फाइनलिस्ट चुने जाएंगे. ग्लोबल टीचर प्राइज अकादमी विजेता तय करेगी. फरवरी में दुबई वर्ल्ड गवर्नमेंट्स समिट में विजेता की घोषणा.क्यों मायने रखता है यह सम्मान?
यह उपलब्धि बताती है कि भारतीय शिक्षक:
वैश्विक स्तर पर असर डाल रहे हैं. शिक्षा को सामाजिक बदलाव से जोड़ रहे हैं. भारत की सॉफ्ट पावर को मजबूत कर रहे हैं.About the Author
सुमित कुमार News18 हिंदी में सीनियर सब एडिटर के तौर पर काम कर रहे हैं. वे पिछले 3 साल से यहां सेंट्रल डेस्क टीम से जुड़े हुए हैं. उनके पास जर्नलिज्म में मास्टर डिग्री है. News18 हिंदी में काम करने से पहले, उन्ह...और पढ़ें
First Published :
December 15, 2025, 22:40 IST

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