Last Updated:August 04, 2025, 14:59 IST
myopia risk in children: बच्चों का घर से बाहर निकलकर न खेलना उनके शरीर और ग्रोथ के लिए ही नहीं बल्कि उनकी आंखों के लिए भी नुकसानदेह हो सकता है. डॉक्टरों की मानें तो जो बच्चे दिन-रात घर में रहते हैं और लंब...और पढ़ें

हाइलाइट्स
बच्चों को रोजाना सूरज की रोशनी मिलनी चाहिए.मायोपिया से बचने के लिए बच्चों को बाहर खेलने दें.बच्चों की आंखों की नियमित स्क्रीनिंग कराएं.Eye diseases in children: अगर आपका बच्चा स्कूल से आने के बाद घर में ही घुसा रहता है और खेलने-कूदने या किसी भी एक्टविटी के लिए घर से बाहर नहीं निकलता तो आपके बच्चे की आंखों पर गहरा संकट आ सकता है. डॉक्टरों की मानें तो बच्चे को रोजाना सूरज की रोशनी न मिलने से आंखों को गंभीर नुकसान हो सकता है और रोशनी तक छिन सकती है. बच्चों में यह बीमारी मायोपिया के रूप में सामने आ रही है. इसमें बच्चों की आंख का नंबर तेजी से बढ़ता चला जाता है और उन्हें दूर की चीजें या तो दिखाई नहीं देती या धुंधली दिखाई देती हैं. दिल्ली-एनसीआर के आई हॉस्पिटल्स में ऐसे सैकड़ों मामले रोजाना आ रहे हैं.
आंख की इस बढ़ती बीमारी पर इंडियन सोसाइटी ऑफ कार्निया एंड केरोटोरेफ्ररेक्टिव सर्जन के सदस्य और जाने माने ऑप्थेल्मोलॉजिस्ट डॉ. नम्रता शर्मा, डॉ. राजेश सिन्हा, डॉ. राजीव मुखर्जी, डॉ. ऋषि मोहन और डॉ. अजय दबे ने चिंता जताई है. इस दौरान एम्स, आरपी सेंटर की प्रोफेसर डॉ. नम्रता शर्मा ने कहा कि मायोपिया की वजह से बच्चे दूर की चीजें साफ नहीं देख पाते, लेकिन सबसे ज्यादा चिंता की बात ये है कि बच्चों की स्क्रीनिंग न होने के चलते इस बीमारी का पता शुरुआत में नहीं लग पाता है. जब बच्चों को देखने में ज्यादा दिक्कत होती है, तब पेरेंट्स बच्चों की आंखों की जांच कराते हैं लेकिन तब तक बच्चों की आंखों का नंबर काफी बढ़ चुका होता है. यह बीमारी बढ़ते-बढ़ते लेजी आई का भी रूप ले सकती है जो आंख का गंभीर डिसऑर्डर है.
सनलाइट एक्सपोजर न मिल पाना बड़ा फैक्टर
ऑप्थेल्मोलॉजिस्ट डॉ. राजीव मुखर्जी ने कहा कि बच्चों की आंखों में मायोपिया होने की बड़ी वजह सिर्फ स्क्रीन टाइम का ज्यादा होना ही नहीं है, बल्कि बच्चों का घरों से बाहर न निकलना एक बड़ा फैक्टर है. जो बच्चे रोजाना घरों से बाहर नहीं निकलते, दूर तक नहीं देखते, उनकी आंखों का नंबर तेजी से बढ़ता चला जाता है और एक समय ऐसा आता है, जब वे पास की चीजें ही साफ देख पाते हैं और दूर की चीजें उन्हें धुंधली दिखाई देने लगती हैं. यह बीमारी बढ़ते-बढ़ते लेजी आई का रूप ले सकती है जो आंख का एक गंभीर डिसऑर्डर है. ऐसा होने पर बच्चा कभी साफ नहीं देख पाता.
डॉ. अजय दबे ने बताया कि हाल ही में एक ऑस्ट्रेलिया में हुई एक स्वतंत्र स्टडी जो खासतौर पर बच्चों के लिए ही की गई थी, उसमें बताया गया कि रोजाना एक निश्चित समय के लिए बच्चों को घर के बाहर रखना जरूरी है. ऐसा खेलने-कूदने के लिए नहीं, बल्कि इसलिए कि वे अनंत को देख सकें. वे जितनी देर तक और जितनी दूरी तक देखेंगे, उतना ही मायोपिया का रिस्क कम होगा. स्क्रीन और बल्ब की रोशनी से आंखों को हटाकर, दिन की, सूरज की रोशनी में आंखों को ले जाना बहुत जरूरी है.
दूर तक देखना क्यों जरूरी
डॉ. राजीव कहते हैं कि साधारण भाषा में समझें तो जब कोई दूर तक देखता है तो उसकी आंख यह संकेत उसके ब्रेन तक भेजती है. ऐसे में जैसा भी संकेत आंख से ब्रेन तक जाता है, वह ब्रेन की मेमोरी में भी दर्ज होता चला जाता है. अगर कोई छोटा बच्चा धुंधला देखता है और लंबे समय तक इसी तरह देखता रहता है, तो एक समय के बाद ऐसा होगा कि वह उससे ज्यादा साफ देख ही नहीं पाएगा. यही वजह है कि बहुत पास से स्क्रीन या किताब देखने वाले बच्चों की आंखों के लिए जरूरी है कि वे घर से बाहर निकलकर दूर तक देखें.
रोक सकते हैं मायोपिया की ग्रोथ
एम्स नई दिल्ली, आरपी सेंटर के प्रोफेसर और सोसायटी के महासचिव डॉ. राजेश सिन्हा का कहना है, ‘हम मायोपिया की ग्रोथ को रोक सकते हैं. बच्चों को चश्मा लगाकर आंखों के तेजी से बढ़ते नंबर को रोका जा सकता है. मायोपिया की शुरआती स्टेज में दवाएं भी दी जा सकती हैं, इससे भी आंख का नंबर कम हो सकता है लेकिन जो सबसे जरूरी है, वह यह है कि इसका जितना जल्दी हो सके पता चल जाए. इसके लिए बच्चों की स्क्रीनिंग कराना बेहद जरूरी है.
4 साल की उम्र में हो स्क्रीनिंग
डॉ. राजीव कहते हैं कि बच्चों में मायोपिया को रोकने के लिए सबसे अहम है कि कम से कम हर 4 साल के बच्चे की बेसिक स्क्रीनिंग कराई जाए, ताकि पता चले कि बच्चे को कितना दिखाई दे रहा है. अगर उसको देखने में थोड़ी सी भी दिक्कत है तो उसे एक साधारण चश्मा देकर उसकी नजर को बचाने की कोशिश की जा सके और उसकी आंखों में लेजी आई की परेशानी होने से रोका जा सके.
स्कूलों में स्क्रीनिंग का है बड़ा फायदा
डॉ. ऋषि मोहन कहते हैं कि जब भी स्कूलों में स्क्रीनिंग करते हैं तो वहां बहुत सारे बच्चे मिलते हैं, जिनकी विजन पूरी नहीं होती. होता क्या है कि अगर बच्चे को क्लास में ब्लैकबोर्ड पर लिखा हुआ दिखाई नहीं दे रहा तो वह आगे आकर बैठ जाता है और इस तरह उसका काम चलता रहता है लेकिन जांच के अभाव में उसको मायोपिया हो जाता है, जिसका पता नहीं चल पाता है. हालांकि जिन स्कूलों में रोटेशन के हिसाब से कक्षा में बैठाते हैं, तो वहां बच्चों में मायोपिया को पहचानना थोड़ा आसान है.
क्या करें पेरेंट्स
डॉ. नम्रता कहती है कि साल में एक बार बच्चों की आंखों की स्क्रीनिंग जरूर करानी चाहिए. वहीं अगर बच्चे को मायोपिया है और उसके चश्मा लगा हुआ है तो सबसे जरूरी है कि उसका फॉलोअप जारी रखें, उसे नियमित रूप से डॉक्टर के पास ले जाएं और उसकी आंखों की जांच कराते रहें, ताकि उसकी आंखों पर पड़ रहे असर के बारे में पता चलता रहे. बच्चे को बाहर एक्सपोजर दें, घर से बाहर फिजिकल एक्टिविटी जरूर कराएं.
प्रिया गौतमSenior Correspondent
अमर उजाला एनसीआर में रिपोर्टिंग से करियर की शुरुआत करने वाली प्रिया गौतम ने हिंदुस्तान दिल्ली में संवाददाता का काम किया. इसके बाद Hindi.News18.com में वरिष्ठ संवाददाता के तौर पर काम कर रही हैं. हेल्थ और रियल एस...और पढ़ें
अमर उजाला एनसीआर में रिपोर्टिंग से करियर की शुरुआत करने वाली प्रिया गौतम ने हिंदुस्तान दिल्ली में संवाददाता का काम किया. इसके बाद Hindi.News18.com में वरिष्ठ संवाददाता के तौर पर काम कर रही हैं. हेल्थ और रियल एस...
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Location :
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
First Published :
August 04, 2025, 14:51 IST