खुद नहीं पढ़ीं, हजारों को बनाया शिक्षक… तुलसी ने गांवों में जलाए शिक्षा के दीप

8 hours ago

Last Updated:July 15, 2025, 05:01 IST

Tulasi Munda Birthday: तुलसी मुंडा का आज जन्‍मदिन है। उन्‍होंने देश में 20 हजार से ज्‍यादा बच्‍चों को शिक्षित किया। पद्म श्री से सम्मानित तुलसी को प्‍यार से बच्‍चे तुलसी आपा भी बोलते हैं। उनकी जिंदगी साहस, समर्...और पढ़ें

खुद नहीं पढ़ीं, हजारों को बनाया शिक्षक… तुलसी ने गांवों में जलाए शिक्षा के दीप

तुलसी मुंडा का आज जन्‍मदिन है. (News18)

हाइलाइट्स

तुलसी मुंडा का जन्‍म 15 जुलाई 1947 में हुआ था.तुलसी ने 20 हजार बच्‍चों को शिक्षा दी है.तुलसी मुंडा को सरकार पद्म श्री से सम्मानित कर चुकी है.

ओडिशा के केओंझर जिले के छोटे से गांव कैंशी में 15 जुलाई 1947 को जन्मी तुलसी मुंडा, जिन्हें प्यार से ‘तुलसी आपा’ कहा जाता है, एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने बिना औपचारिक शिक्षा के आदिवासी बच्चों की जिंदगी को रोशनी से भर दिया. तुलसी ने अपने दृढ़ निश्चय और समाज को बदलने की जिद से हजारों बच्चों को अज्ञानता के अंधेरे से निकालकर शिक्षा का उजाला दिखाया. उनकी कहानी साहस, समर्पण और संघर्ष का जीवंत प्रतीक है. बचपन में तुलसी खुद केओंझर की खदानों में बाल मजदूर थीं. उस दौर में उनके आदिवासी समुदाय में लड़कियों की पढ़ाई पर कोई महत्व नहीं दिया जाता था, लेकिन तुलसी के मन में शिक्षा की ललक थी.

घर में शुरू किया स्‍कूल

साल 1963 में भूदान आंदोलन के दौरान आचार्य विनोबा भावे से मुलाकात ने उनके जीवन को नई दिशा दी. विनोबा के विचारों से प्रेरित होकर तुलसी ने अपने समुदाय में साक्षरता का दीप जलाने का फैसला किया. 1964 में तुलसी ने सेरेंडा गांव में अपने घर के बरामदे पर एक छोटा सा स्कूल शुरू किया. खनन क्षेत्र में बसे इस गांव में बच्चे खदानों में काम करने को मजबूर थे. तुलसी ने गांव वालों को शिक्षा का महत्व समझाने की ठानी, जो आसान नहीं था. उन्होंने रात में कक्षाएं शुरू कीं ताकि दिन में काम करने वाले बच्चे पढ़ सकें. धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाई और ‘आदिवासी विकास समिति स्कूल’ की नींव पड़ी. आज यह स्कूल 10वीं कक्षा तक लगभग 500 बच्चों को शिक्षा देता है, जिनमें अधिकांश लड़कियां हैं.

20,000 से बच्चों को किया शिक्षित

तुलसी की सबसे बड़ी उपलब्धि है 20,000 से अधिक बच्चों को शिक्षित करना और सरकार के साथ मिलकर 17 प्राथमिक व माध्यमिक स्कूल स्थापित करना. उनकी कोशिशों ने न केवल शिक्षा का प्रसार किया, बल्कि केओंझर के सामाजिक-आर्थिक हालात को भी बेहतर किया. खास बात यह है कि तुलसी स्वयं निरक्षर हैं, फिर भी उन्होंने शिक्षा को अपना हथियार बनाया. उन्होंने कहा, “मैं चाहती थी कि मेरे समुदाय के बच्चे मेरी तरह निरक्षर न रहें. शिक्षा ही वह रास्ता है जो हमें गुलामी से आजादी दिलाती है.”तुलसी ने बच्चों में आत्मविश्वास और स्वावलंबन की भावना जगाई. उनकी प्रेरणा से कई युवा शिक्षक बने, जो अब उनके मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं.

पद्म श्री से सम्मानित

उनकी उपलब्धियों के लिए 2001 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया. इसके अलावा, उन्हें ओडिशा लिविंग लीजेंड अवार्ड (2011), कादंबिनी सम्मान (2008) और लक्ष्मीपत सिंहानिया-आईआईएम लखनऊ नेशनल लीडरशिप अवार्ड जैसे सम्मान भी मिले. 2017 में उनके जीवन पर आधारित ओडिया फिल्म ‘तुलसी आपा’ ने उनकी कहानी को दुनिया तक पहुंचाया. तुलसी मुंडा आज भी शिक्षा के प्रचार में जुटी हैं, जो उनके अटल संकल्प का प्रमाण है.

Sandeep Gupta

पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें

पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्‍त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्‍कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...

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