Last Updated:July 15, 2025, 13:13 IST
शुभांशु शुक्ला और तीन अन्य अंतरिक्ष यात्री जब क्रू ड्रैगन कैप्सूल से वापस धरती पर लौटेंगे तो ये सफर कतई आसान नहीं होगा. 18 घंटे की ये यात्रा बंद, छोटे, और कंट्रोल्ड माहौल में होती है.

हाइलाइट्स
18 घंटे की यात्रा अंतरिक्ष यात्रियों के लिए कठिन होती हैक्रू ड्रैगन कैप्सूल में अंदर जगह बहुत कम होती हैअंतरिक्ष यात्री पैक्ड स्पेस फूड खाते हैं, टॉयलेट की भी छोटी सी जगहलखनऊ के शुभांशु शुक्ला इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से चल चुके हैं. रास्ते में हैं. भारतीय समय के अनुसार शाम 3 बजे तक पहुंचेंगे. उनका यान अमेरिका के पैसिफिक सागर में उतरेगा. 18 घंटे की ये यात्रा सही मायनों में किसी भी एस्ट्रोनॉट के लिए कष्टदायक ही ज्यादा होती है. क्योंकि उन्हें आमतौर पर अपनी सीट पर बेल्ट के जरिए बंधे रहना होता है. ज्यादा मूवमेंट नहीं कर सकते. यान में अंदर जगह बहुत कम होती है. इस यान में वो कैसे इतनी लंबी और मुश्किल यात्रा करते हैं.
आपके दिमाग में भी हो सकता है कि इस यात्रा को लेकर सवाल उठ रहे होंगे कि ये अंतरिक्ष यान कैसा होता है. इसमें कितने लोग बैठ सकते हैं. ये कितना बड़ा होता है. अंतरिक्ष यात्री इसमें 18 घंटे का सफर कैसे करते होंगे. इन सब बातों का जवाब यहां है.
सफर कठिन होता है
जब अंतरिक्ष यात्री क्रू ड्रैगन कैप्सूल से जब अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) से पृथ्वी पर लौटते हैं, तो उनकी यात्रा करीब 17-20 घंटे की होती है. ये सफर हवाई जहाज जैसा आरामदायक नहीं होता बल्कि एक बंद, छोटे, और कंट्रोल्ड माहौल में होता है. कैप्सूल में अंदर का आकार केवल 7-8 घन मीटर का होता है. उसमें 4 सीटें होती हैं, जो लॉन्च और री-एंट्री के वक़्त सीटबेल्ट से बंधी रहती हैं.
सफर के दौरान क्या क्या होता है
आईएसएस से चलते समय और फिर पृथ्वी के वायुमंडल में घुसने से पहले करीब एक घंटे के दौरान सभी को अपनी सीट पर बंधे रहना पड़ता है. बाकी वक्त में, जब यान ऑर्बिट में तैर रहा होता है, तब एस्ट्रोनॉट्स अपनी सीटबेल्ट खोलकर यान के अंदर तैर (फ्लोट) सकते हैं. यान में जगह इतनी कम होती है कि इसमें ज़्यादा घूमना-फिरना मुमकिन नहीं, बस सीट से निकलकर थोड़ा हाथ-पैर ही फैला सकते हैं.
क्या इस यान में टॉयलेट होता है?
हां क्रू ड्रैगन में एक छोटा सा टॉयलेट होता है. इसे वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम कहते हैं. ये यान की छत की तरफ एक कोने में होता है. इसके ऊपर एक परदा या स्क्रीन होता है ताकि थोड़ी प्राइवेसी मिल सके. इसमें मल-मूत्र को एक वैक्यूम सिस्टम से खींचा जाता है ताकि वो जीरो ग्रैविटी में तैर न जाए.
क्या खाने-पीने की सुविधा होती है?
हां अंतरिक्ष यात्री अपने साथ पैक्ड स्पेस फूड पैकेट रखते हैं, जिसे वो सफर में खाते हैं. ये ड्राय फ्रूट्स, स्नैक्स, थर्मोस्टेबल मील्स होते हैं. क्योंकि ये ड्राई फूड होता है लिहाजा खाने से पहले इसमें पानी डालना पड़ता है और फिर पाउच से सीधे चूसकर या स्पून से खाया जाता है. हर यात्री को एक छोटा पर्सनल किट भी मिलता है जिसमें उनकी ज़रूरत का खाना-पीना और पानी होता है. कैप्सूल में गर्म खाना पकाने का सिस्टम नहीं होता.
कैप्सूल में मौजूद पेय पदार्थ पानी और जूस का इस्तेमाल कर सकते हैं. हल्का खाना खाया जाता है. ज़्यादा हैवी खाना नहीं दिया जाता क्योंकि री-एंट्री के वक़्त जी मचलने की आशंका बढ़ जाती है.
कैप्सूल के अंदर कैसा लगता है?
– बहुत छोटा और कसा हुआ माहौल
– हर चीज़ अपने-अपने कंपार्टमेंट में होती है
– जीरो ग्रेविटी में हर चीज़ तैरती है, इसलिए हर चीज़ वेल्क्रो, मैग्नेट या स्ट्रैप से बंधी रहती है.
– पृथ्वी में री-एंट्री के वक़्त कैप्सूल गरम होता है, जोर का कंपन होता है और जी मचलता है
क्या क्रू ड्रैगन कैप्सूल में इंटरनेट चलता है?
हां, लेकिन धीरे और बहुत सीमित तरीके से. इसमें नासा की खास तकनीक के जरिए कैप्सूल और पृथ्वी के बीच डेटा ट्रांसमिशन होता है. इससे टेक्स्ट मैसेजिंग, ईमेल, कॉल और कभी-कभी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग मुमकिन होती है. लेकिन ये एकदम हाई-स्पीड इंटरनेट जैसा नहीं, बल्कि मिशन-कंट्रोल से कनेक्शन और ज़रूरी फाइल/डेटा ट्रांसफर तक सीमित होता है. वीडियो स्ट्रीमिंग या इंटरनेट ब्राउज़िंग नहीं की जा सकती.
क्या कोई इंटरटेनमेंट का साधन होता है?
हां, हर क्रू सदस्य के पास अपने टैबलेट या डिवाइस होता है. उसमें पहले से कुछ मूवीज़, डॉक्यूमेंट्रीज़, ई-बुक्स या म्यूज़िक अपलोड करके भेजा जाता है. वह अपने पसंद के गाने पहले से अपलोड करने के लिए रिक्वेस्ट कर सकते हैं, जिन्हें इस यात्रा में सुन सकते हैं. हालांकि इसकी सुविधा भी सीमित ही रहती है.ई-बुक पढ़ते हैं. मूवी या डॉक्यूमेंट्री अपने टैबलेट पर देखते हैं. पृथ्वी को विंडो से देखते हैं. आपस में हल्की-फुल्की बातचीत करते हैं.
18-20 घंटे की यात्रा में अंतरिक्ष यात्री क्या करते हैं?
सफर का टाइमटेबल इस तरह होता है –
– अनडॉकिंग और क्रू सिस्टम चेक (पहले 1-2 घंटे)
– रूटीन हेल्थ मॉनिटरिंग
– मिशन रिपोर्टिंग और पृथ्वी से कॉन्टैक्ट
– हल्का खाना-पीना
– इंटरटेनमेंट (अगर समय मिले)
– टॉयलेट ब्रेक
– कैप्सूल के सिस्टम की निगरानी (क्रू की शिफ्ट बनती है)
– थोड़ी नींद (कैप्सूल के अंदर सीट पर सीटबेल्ट ढीली करके)
क्या यान में खिड़की होती है जिससे बाहर देखें
हां, इस यान में यही सबसे ज्यादा राहत की बात होती है. इसमें 4 विंडो होती हैं. जिसके जरिए पृथ्वी की ओर देख सकते हैं. अंतरिक्ष का रोमांचक नजारा ले सकते हैं. कुछ और छोटी विंडो भी होती हैं जो अंतरिक्ष और पृथ्वी दोनों तरफ़ का व्यू देती हैं. अंतरिक्ष का व्यू बिलकुल काला, एकदम स्याह, और तारों से भरा होता है. पृथ्वी का वायुमंडलीय ग्लो (नीली-नीली रेखा) बेहद शानदार दिखाई देती है.
यान से कई बार सूर्योदय-सूर्यास्त देख सकते हैं. फोटो खींच सकते हैं. कैप्सूल में खास DSLR कैमरे और HD वीडियो रिकॉर्डर्स भी मौजूद होते हैं. हर यात्री की सीट के पास एक पर्सनल विंडो होती है. हर 90 मिनट में एक नया नजारा दिखाई देता है.
संजय श्रीवास्तवडिप्टी एडीटर
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...और पढ़ें
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...
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