अवध के रंगीले नवाब थे वाजिद अली शाह. 378 बीवियां थीं. उनकी रखैलों और प्रेमिकाओं की तो कोई संख्या ही तय नहीं, क्योंकि वो खुद भी उनकी गिनती भूल गए थे. उनके परीखाने में सैकड़ों महिलाएं थीं. कहा जाता है कि नवाब के हकीम उनके लिए एक यूनानी हकीमी शक्तिवर्धक पेस्ट बनाते थे. इसे इश्किया मजून भी कहा जाता था. ये उनकी मर्दानगी बढ़ाता था. इसके बाद उनकी पूरी रात महिलाओं की सोहबत में गुजरा करती थी. क्या है इस पेस्ट की कहानी. कैसे बनता था ये
मजून-ए-इश्क एक किस्म का यूनानी हकीमी शक्तिवर्धक पेस्ट था, जिसे अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह के लिए खासतौर पर तैयार किया जाता था. इसे इश्किया मजून, मजून-ए-मुहब्बत या मजून-ए-जुनून भी कहा जाता था. यह एक किस्म की महंगी, दुर्लभ और मर्दानगी व यौन शक्ति बढ़ाने वाली दवा थी, जो खास नवाब के निजी इस्तेमाल के लिए बनाई जाती थी.
इसमें क्या-क्या होता था?
इस मजून में तमाम दुर्लभ जड़ी-बूटियां, मेवे और कामोत्तेजक तत्व होते थे. इसे बनाने में जिन प्रमुख चीजों का उल्लेख मिलता है, वो हैं –
अंबर (Ambergris) – ये ब्लू व्हेल की उल्टी होती थी, जो जमकर कठोर हो जाती है, ये वो दुर्लभ पदार्थ है, जिसका इस्तेमाल कामोत्तेजना बढ़ाने वाला माना जाता है.
कस्तूरी (Musk) – कस्तूरी मृग की नाभि से प्राप्त सुगंधित और उत्तेजक तत्व.
जाफरान (केसर) – ताजगी व उष्णता देने वाला.
मजून ए इश्क पेस्ट, जो कई जड़ी बूटियों और स्वास्थ्यवर्धक चीजों को मिलाकर हकीम लोग बनाते थे, उसको मर्दानगी बढ़ाने के लिए नवाब वाजिद अली शाह को दिया जाता था. (news18)
शिलाजीत – हिमालय की गुफाओं से निकली जड़ी बूटी, मर्दाना शक्ति का बूस्टर.
अखरोट, बादाम, पिस्ता – ऊर्जा और शुक्राणु वृद्धि के लिए.
गिलोय, अश्वगंधा, शतावरी – बल, वीर्य और स्तंभन शक्ति वर्धक.
मुनक्का, खजूर, इलायची, दालचीनी – पाचन और रक्त संचार के लिए
शहद व गुलाब जल – मिठास और स्वाद के लिए.
कभी-कभी इसमें सोने और चांदी का वर्क भी मिलाया जाता था. इन सबको महीनों तक शहद और गुलाब जल में घोंटकर एक विशेष पेस्ट बनाया जाता था.
नवाब वाजिद अली शाह रंगीले नवाब कहे जाते थे. उनकी रातें तवायफों के बीच रासरंग के साथ गुजरती थीं. (news18)
ये कितना असर करता था?
उस दौर के यूनानी हकीम मानते थे कि मजून-ए-इश्क पुरुष की कामेच्छा, स्तंभन शक्ति और वीर्य को बहुत बढ़ा देता है. शरीर में ताजगी, गर्मी और उत्तेजना भर देता है. नसों की दुर्बलता दूर करता है. शारीरिक थकावट मिटाता है.
कहा जाता है कि वाजिद अली शाह इसकी कुछ मात्रा इत्र सुंघने वाले रूमाल में भी छिड़कवाते थे, ताकि इसकी गंध से भी उत्तेजना और मनोभाव बढ़ें.
वाजिद अली शाह इसका सेवन कर क्या करते थे?
वह रात को इसकी कुछ मात्रा दूध के साथ लेते थे. इसके बाद कव्वाली, मुजरा, नृत्य और शायरी की महफिलें होती थीं. वो अपने हरम (महल) की तवायफों और रक़ासाओं के साथ राग-रंग की महफिलें सजाते. अवध में कहा जाता था, “शामे अवध मजून-ए-इश्क से शुरू होती और इश्क-ओ-आशिकी में डूब जाती.”
नवाब वाजिद अली शाह के हरम में करीब 400-500 तवायफें और प्रेमिकाएं थीं. इसके अलावा उनके बीवियों की संख्या भी कोई कम नहीं थी. बताया जाता है कि उनकी 378 बीवियां थीं. (news18)
हरम में कितनी तवायफें और प्रेमिकाएं
उनके हरम में करीब 400-500 तवायफें और प्रेमिकाएं थीं. इसके अलावा उनके बीवी-बच्चों की संख्या भी सैकड़ों में थी. लखनऊ के इतिहासकार अब्दुल हलीम शरर और वीरेन्द्र नाथ चंद्रा की किताबों में दर्ज है कि उनका हरम दुनिया के सबसे बड़े हरमों में एक था.
वो कामुक कला, संगीत और शायरी के बड़े कद्रदान थे. उनका ये मजून दरअसल सिर्फ यौन शक्ति ही नहीं, बल्कि रचनात्मक और सौंदर्यात्मक अनुभव को भी उभारने वाला मिश्रण माना जाता था.
कहां मिलता था?
इसे हकीम मोहम्मद शाह, हकीम अब्दुल हमीद और हकीम लुक़मान जैसे हकीम तैयार करते थे. इसकी रेसिपी पीढ़ियों तक हकीमों के घरानों में सीक्रेट रही. आज भी लखनऊ और हैदराबाद में कुछ यूनानी दवाखानों में इसके नाम पर दवाएं मिलती हैं, पर वो असल वाली बात नहीं रही.
नवाब वाजिद अली शाह की मज़ार आज भी कोलकाता के मेटियाब्रुज़ इलाके में है, जिसे स्थानीय लोग ‘शाह का मक़बरा’ कहते हैं. (फाइल फोटो)
कैसी होती थीं फिर उनकी रातें
पहले मुजरा, कव्वाली और शायरी की महफिल होती थी. इसके बाद वो अपनी पसंद की तवायफों या रक़ासाओं को चुनते थे. एक रात में कई महिलाओं के साथ समय बिताते थे – कभी संगीत-संवाद में, कभी प्रेम-लीला में. किताबों और लोककथाओं के मुताबिक़, वह आमतौर पर 2 से 4 महिलाओं के साथ रात गुज़ारते थे. कुछ विशेष अवसरों, त्योहारों या जश्न में 8-10 महिलाओं तक का भी उल्लेख मिलता है. कहा जाता है, उनकी प्रिय तवायफ गौहर जान और मुश्तरी बाई अक्सर उनके साथ रहती थीं.
ब्रिटिश अधिकारी स्लेईमैन और विलियम हडसन ने भी अपनी रिपोर्ट्स में वाजिद अली शाह की महिलाओं और भोग विलास का ज़िक्र किया है, हालांकि वे रिपोर्ट्स भी कभी-कभी अतिशयोक्ति से भरी रहीं.
अब्दुल हलीम शरर लिखते हैं, “नवाब साहब की शाम होते ही मयखाने और हरम के दरवाज़े खुल जाते. हर शाम वे नई तवायफ या पुरानी पसंदीदा को बुलाते. कई बार पूरी रात 3-4 औरतों के साथ एक-एक घड़ी बिताते.”
कब और कहां हुई मृत्यु
उनकी मृत्यु 31 अगस्त 1887 को कलकत्ता में हुई. उस समय उनकी उम्र 65 साल थी. उनकी मौत लंबे समय की उम्रजनित बीमारियों और दमा के साथ फेफड़ों की कमजोरी के कारण हुई.
1856 में जब अंग्रेज़ों ने अवध छीन लिया तो उन्हें कलकत्ता (मेटियाब्रुज़) में नज़रबंद कर दिया गया. वहां उन्होंने 31 साल तक अपना एक छोटा सा दरबार और हरम बसाए रखा. उम्र के आख़िरी वर्षों में दमा, पेशाब की दिक्कत और ज्वर ने उन्हें घेर लिया. उनके आख़िरी दिनों में कहा जाता है, वो रातों को सांस लेने में तकलीफ के कारण घंटों जागते थे. उनकी मज़ार आज भी कोलकाता के मेटियाब्रुज़ इलाके में है, जिसे स्थानीय लोग ‘शाह का मक़बरा’ कहते हैं. वहीं उनकी कई बेगमें और हरम की तवायफें भी दफन हैं.
साल में एक बार योगी का वेश धारण करते थे
साल में एक बार नवाब योगी का वेश धारण करते थे. तब वह भगवा वस्त्र धारण करते. चेहरे और शरीर पर भस्म लगाते. गले में मोतियों की माला और हाथ में जपमाला रखते. इस भव्य सार्वजनिक आयोजन को जोगिया जश्न के नाम से जाना जाता था. इसमें वह लखनऊ के लोगों को चाहे वे किसी भी धर्म या जाति के हों. उसमें योगी और योगिनियों का वेश धारण करने के लिए आमंत्रित करते थे.