केरल में इन दिनों एक अमीबा से लोग डरे हुए हैं. ये नाक के रास्ते शरीर में घुसता है. फिर दिमाग में चला जाता है. वहां लाखों अमीबा पैदा करता है, जो ब्रेन हर जगह से खा जाते हैं. अगर ये ब्रेन में पहुंच गया तो बचने का सवाल ही पैदा नहीं होता. इस बीमारी को अमीबिक मेनिंगोएन्सेफेलाइटिस कहते हैं. कहा जाता है कि ये समुद्र से लेकर हर जगह नदी, स्विमिंग पूल, झीलों और पानी के स्रोतों में पाया जाता है. आखिर ये अमीबा है क्या, क्यों इतना खतरनाक हो जाता है. जानेंगे इसके बारे में सबकुछ सवाल – जवाब के रूप में.
इसके कुछ सवाल शायद आपके भी दिमाग में उभर रहे होंगे
– क्या ये अमीबा हमारे आसपास के जल के स्रोतों में हो सकता है
– क्या ये किसी भी पीने के पानी में मिल सकता है
– क्या ये नल के जरिए भी आ सकता है
– क्या ये हमारे गीजर में पैदा हो सकता है
ऐसे ही हर सवाल के जवाब हम देने की कोशिश करेंगे.
इसी अमीबा से प्रभावित 11 लोगों का इलाज केरल के कोझिकोड मेडिकल कॉलेज अस्पताल में चल रहा है. एक की हालत गंभीर है. अमीबा से होने वाली बीमारी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफेलाइटिस दुर्लभ लेकिन घातक मस्तिष्क संक्रमण है जो मीठे पानी, झीलों और नदियों में पाए जाने वाले मुक्त-जीवित अमीबा के कारण होता है ये केरल में बड़ी स्वास्थ्य चिंता के रूप में उभरा है.
सवाल – वो अमीबा कौन सा होता है, जो दिमाग को खा जाता है?
– दिमाग को खाने वाले इस अमीबा का नाम नाएग्लेरिया फॉवलेरी है. ये कहीं भी रहने वाला मुक्त-जीवी अमीबा है. ये अमीबिक मेनिन्जोएन्सेफलाइटिस नाम की एक दुर्लभ लेकिन घातक बीमारी का कारण बनता है. यह अमीबा नाक के रास्ते से शरीर में प्रवेश करता है. फिर दिमाग तक पहुंचकर ऊतकों को नष्ट कर देता है.
सवाल – क्या ये हर जगह पाया जाता है?
– नहीं, यह हर जगह नहीं पाया जाता. नाएग्लेरिया फॉवलेरी मुख्य रूप से गर्म मीठे पानी के स्रोतों में पाया जाता है, जैसे झीलें, नदियां, गर्म झरने, और कभी-कभी मिट्टी में, लेकिन ये 30°C से ऊपर के तापमान वाले पानी में बढ़ता है.ठंडे या समुद्री पानी में नहीं पनपता. यह दुनियाभर में पाया जा सकता है. खासकर गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में जैसे अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, भारत आदि. हालांकि इसका संक्रमण बहुत दुर्लभ हैं. भारत में भी कुछ मामले रिपोर्ट हुए हैं, लेकिन यह सर्वव्यापी नहीं है.
सवाल – इसका पता कैसे लगाया जा सकता है?
– इसका पता लगाने का काम चिकित्सकीय या प्रयोगशाला स्तर पर किया जाता है, ऐसे इसका पता नहीं चल सकता. पानी के नमूने को माइक्रोस्कोप से देखकर अमीबा के गतिशील रूप ट्रोफोजोइट्स को पहचाना जा सकता है. कल्चरिंग यानि इसे विशेष माध्यम में उगाकर पहचाना जाता है. पीसीआर नाम का एक उपकरण है, वो भी पानी के नमूनों के जरिए तेज तरीके से अमीबा को डिटेक्ट कर सकता है. स्वास्थ्य विभाग या प्रयोगशालाएं पानी के नमूने लेकर इसकी जांच करती हैं. केरल में इन दिनों इसकी काफी मांग है.
सवाल – अगर ये किसी मानव को संक्रमित करता है तो उसका पता कैसे लगा सकते हैं?
– इसके लिए सीएसएफ टेस्ट होता है, जिसमें रीढ़ की हड्डी से निकाले गए तरल पदार्थ में अमीबा को वेट माउंट माइक्रोस्कोपी से देखा जाता है, जहां इसकी गति दिखती है, लेकिन ये बहुत दर्दनाक टेस्ट होता है. साइटोसेंट्रीफ्यूगेशन के बाद स्टेन करके अमीबा को पहचाना जाता है. पीसीआर टेस्ट तो है ही.
सवाल – इसके लक्षण क्या हैं?
– अमीबा संक्रमण के लक्षण सिरदर्द, बुखार, उल्टी, गर्दन में अकड़न हैं. ये दिखने पर डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें, क्योंकि यह तेजी से घातक हो सकता है. निदान अक्सर संक्रमण के बाद ही होता है. इसके लिए जरूरी है कि नाक में गर्म पानी नहीं जाने दें. अक्सर जब हम नदी में नहाते हैं या स्विमिंग पूल में नहाते हैं तो ये नाक के जरिए घुस सकते हैं.
सवाल – क्या ये अमीबा दवा से चला जाता है?
– इस अमीबा के कारण होने वाली बीमारी प्राइमरी अमीबिक मेनिन्जोएन्सेफलाइटिस बहुत गंभीर है. ये ज्यादातर मामलों में घातक होती है. इसका इलाज करना बहुत मुश्किल है, हालांकि कुछ दवाओं और उपचारों का उपयोग इसमें होता है, जो कुछ मामलों में प्रभावी हो सकते हैं, बशर्ते बीमारी का निदान जल्दी हो जाए. अगर इस संक्रमण का पता शुरुआती चरण में चल जाए तो ठीक होने की संभावना हो सकती है, लेकिन सफलता दर बहुत कम है. ज्यादातर मामले घातक होते हैं, क्योंकि यह अमीबा तेजी से मस्तिष्क को नष्ट करता है.
सवाल – इसका पता कब लगता है कि अमीबा ब्रेन तक पहुंच चुका है?
– अमीबा के मस्तिष्क में पहुंचने के बाद लक्षण आमतौर पर 1 से 9 दिन के भीतर शुरू हो जाते हैं. एक बार मस्तिष्क में पहुंचने के बाद अमीबा बहुत तेजी से मस्तिष्क के ऊतकों को नष्ट करता है. यह कुछ दिनों में गंभीर मस्तिष्क क्षति या मृत्यु का कारण बन सकता है. अमीबा मस्तिष्क के न्यूरॉन्स को “खाता” है. सूजन (एन्सेफलाइटिस) पैदा करता है, जिससे मस्तिष्क की कार्यक्षमता तेजी से बिगड़ती है. बिना इलाज के ज्यादातर मरीज लक्षण शुरू होने के 1-2 सप्ताह के भीतर मृत्यु का शिकार हो जाते हैं.
सवाल – जब ये ब्रेन को खाता है तो क्या इसका आकार बड़ा होने लगता है?
– इस अमीबा का आकार ऐसा होता है कि नंगी आंखों से देखना संभव ही नहीं. ये करीब 10-25 माइक्रोमीटर का होता है. दरअसल ये अकेले मस्तिष्क के ऊतकों को नहीं खाता बल्कि ब्रेन में पहुंचते ही लाखों अमीबा तेजी से पैदा करने लगता है, मस्तिष्क का माहौल इसके लिए अनुकूल होता है, वहां इसे खुराक के तौर पर पोषक तत्व न्यूरॉन्स मिलते हैं तो अनुकूल गर्म वातावरण भी.
ये साथ में एंजाइम्स और विषाक्त पदार्थ भी छोड़ते हैं. इस प्रक्रिया से मस्तिष्क में सूजन और रक्तस्राव होता है, जिससे नुकसान बढ़ता है. तो मतलब ये है कि अमीबा का खुद का आकार तो नहीं बढ़ता है लेकिन उसकी संख्या ब्रेन में आने के बाद बहुत तेजी से बढ़ती है.
सवाल – क्या यह सभी नदियों, तालाबों या झीलों में होता है?
– नहीं, यह हर जगह नहीं पाया जाता. ये गर्म मीठे पानी के वातावरण में पनपता है. उन गर्म झीलों, तालाब और नदियों में मिलता है, जहां पानी का तापमान 25°C से 40°C या उससे अधिक) होता है. यह गर्म मौसम या गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में अधिक आम है. गर्म झरने इसके लिए आदर्श वातावरण हैं. अगर स्विमिंग पूल का पानी ठीक से क्लोरीनेटेड नहीं है तो वहां भी हो सकता है. कभी-कभी पानी के पास की मिट्टी में भी मिल सकता है.
सवाल – ये कहां नहीं पाया जाता है?
– समुद्र या खारे पानी में नहीं मिलता, 15 डिग्री से नीचे तापमान के पानी में जीवित नहीं रह पाता. अच्छी तरह से क्लोरीनेटेड पानी में नहीं मिलेगा.
सवाल – क्या हर नदी, तालाब, या झील इसके होने के जोखिम से भरी है?
– नहीं, सभी जल स्रोत जोखिम भरे नहीं हैं. ये बहुत दुर्लभ है. इसके कारण होने वाला संक्रमण और भी दुर्लभ है.
सवाल – क्या गीजर के स्टोर गर्म पानी में ये पैदा हो सकता है?
– गीजर में स्टोर किया गया पानी आमतौर पर इससे कहीं अधिक गर्म 50°C से 70°C या अधिक तापमान का होता है, जो इस अमीबा के लिए अनुकूल नहीं है. 46 डिग्री सेंटीग्रेड से ज्यादा तापमान पर ये अमीबा जिंदा नहीं रहता. अगर गीजर का तापमान कम (30°C-40°C) रखा गया हो और पानी लंबे समय तक स्टोर रहे, तो यह अमीबा के लिए अनुकूल वातावरण बन सकता है, खासकर अगर पानी पहले से दूषित हो.
सवाल – क्या पीने से संक्रमण हो सकता है?
– पेट में पहुंचकर ये कोई खतरा पैदा नहीं करता. ये पेट के अम्लीय वातावरण में नष्ट हो जाता है. ये तभी खतरनाक है जब यह नाक के रास्ते मस्तिष्क तक पहुंचता है, जैसे तैरते समय या नाक की सफाई (नेटी पॉट) के दौरान. पीने के पानी से संक्रमण का जोखिम तभी होता है, अगर दूषित पानी नाक में चला जाए.
सवाल – क्या ये अमीबा नल के पानी में हो सकता है?
– ये नल के पानी में तभी मौजूद हो सकता है, अगर पानी का स्रोत दूषित हो और उसे ठीक से ट्रीट नहीं किया गया हो. ये अमीबा गर्म मीठे पानी यानि 25°C से लेकर 40°C में पनपता है. नल का पानी आमतौर पर ट्रीटेड यानि क्लोरीनेटेड होता है, जो इसे मार देता है.
अगर नल का पानी प्राकृतिक स्रोत जैसे नदी, तालाब या कुआं से आता है और क्लोरीनेशन या फ़िल्टरेशन ठीक से नहीं हुआ हो तो अमीबा मौजूद हो सकता है. अगर पानी की पाइपलाइन पुरानी, गंदी या जैविक पदार्थ से भरी हो तो यह अमीबा के लिए अनुकूल वातावरण बना सकती है.गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में, अगर नल का पानी गर्म (30°C-40°C) है और ट्रीटेड नहीं है, तो जोखिम बढ़ सकता है.
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