क्या है तलाक-ए-हसन प्रथा, जिसकी SC कर रहा सुनवाई, कितने तरह के होते हैं तलाक

1 hour ago

Talaq-e-Hasan: सुप्रीम कोर्ट में ‘तलाक-ए-हसन’ की प्रथा को चुनौती दी गयी है. याचिकाकर्ताओं (मुख्य रूप से मुस्लिम महिलाओं) की दलील है कि यह प्रथा ‘एकतरफा’ (unilateral) और ‘भेदभावपूर्ण’ है, जिससे महिलाओं के मौलिक अधिकारों का हनन होता है. उन्होंने इसे भी ‘तीन तलाक’ (तलाक-ए-बिद्दत) की तरह ही असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है. जस्टिस सूर्यकांत शर्मा, जस्टिस उज्जल भुइयां और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ इन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों के एक वर्ग में तलाक के इस रूप पर सवाल उठाया है. शीर्ष अदालत ने पतियों के वकीलों द्वारा पत्नियों को तलाक के नोटिस भेजने के मुद्दे पर भी चिंता जतायी है. अदालत ने पूछा, “क्या एक सभ्य समाज को इस तरह की प्रथा की इजाजत देनी चाहिए?” अदालत पत्रकार बेनज़ीर हिना की एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी जिसमें इस तरह के तलाक की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी.

मुस्लिम समाज में एक ही बार में तीन बार ‘तलाक’ बोलकर वैवाहिक संबंध समाप्त करने, यानी ‘तीन तलाक’ के मुद्दे पर लंबी बहस चली है. केंद्र सरकार ने अब कानून बनाकर इस प्रथा को दंडनीय अपराध घोषित कर दिया है. लेकिन यह जानना भी आवश्यक है कि इस्लामी शरीयत के तहत विवाह विच्छेद की केवल एक ही नहीं, बल्कि कई पद्धतियां मौजूद हैं. इनमें से कुछ प्रक्रियाओं की पहल पति की ओर से होती है, जबकि कुछ में पत्नी भी अलगाव का कदम उठा सकती है. इस्लामी कानून के दायरे में विवाह विच्छेद के मुख्य तरीकों में ‘तलाक’ (शादी तोड़ना), ‘खुला’ (आपसी रजामंदी या पत्नी की मांग पर अलग होना) और ‘फस्ख’ (धार्मिक अदालत या काजी के माध्यम से विवाह रद्द करना) शामिल हैं.

पति और पत्नी दोनों ले सकते हैं तलाक
ऐतिहासिक रूप से ये नियम शरीयत द्वारा संचालित होते रहे हैं. हालांकि अलग-अलग फिरकों (संप्रदायों) में इनकी मान्यताओं और प्रथाओं में भिन्नता हो सकती है. इस्लाम में पति और पत्नी, दोनों को ही तलाक से जुड़े अधिकार प्रदान किए गए हैं. मुख्य रूप से तीन प्रकार के तलाक का उल्लेख मिलता है: तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-अहसन और तलाक-ए-बिद्दत, जिसे आम भाषा में तीन तलाक कहा जाता है. इसके अतिरिक्त, ‘निकाह हलाला’ की प्रथा का भी प्रावधान है, जिसकी आवश्यकता तब पड़ती है जब तलाकशुदा जोड़ा दोबारा आपस में निकाह करना चाहता है. अब अहम सवाल यह है कि तलाक की इन तीनों श्रेणियों की प्रक्रिया में क्या अंतर है, इनकी शुरुआत कौन करता है और पुनर्विवाह के लिए हलाला की अनिवार्यता के पीछे क्या कारण है?

खुला में तलाक की प्रक्रिया पति के बजाय पत्‍नी शुरू करती है.

क्या है तलाक-ए-हसन
तलाक-ए-हसन मुस्लिम कानून में तलाक का एक रूप है जो एक पुरुष को तीन महीने की अवधि में हर महीने एक बार ‘तलाक’ बोलकर अपनी पत्नी को तलाक देने की अनुमति देता है. पति को यह सुनिश्चित करना होगा कि जब वह तलाक कहे तो पत्नी मासिक धर्म में न हो. पहली बार तलाक कहने के बाद पुरुष को अपनी पत्नी के अगले मासिक धर्म चक्र तक इंतजार करना होगा. ये तीन महीने संयम की अवधि भी हैं. हालांकि, अगर 90 दिनों के दौरान दंपती के बीच सुलह हो जाती है तो तलाक की प्रक्रिया रद्द कर दी जाती है. यदि दंपती के बीच सुलह नहीं होती है और सहवास पुनः शुरू नहीं होता है तो तीसरे महीने में तीसरी बार तलाक शब्द का उच्चारण करने के बाद तलाक मान्य हो जाता है.

तलाक-ए-बिद्दत या तीन तलाक
‘तलाक-ए-बिद्दत’ वह प्रक्रिया है जिसे सामान्य तौर पर ‘तीन तलाक’ के नाम से जाना जाता है. इस प्रथा के अंतर्गत पति एक ही बैठक या समय में तीन बार ‘तलाक’ शब्द का उच्चारण करता है, जिसके फलस्वरूप वैवाहिक संबंध तत्काल प्रभाव से समाप्त हो जाता है. इसे ‘इंस्टेंट तलाक’ भी कहा जाता है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने एक कानून पारित कर इस प्रथा को अब पूर्णतः अवैध घोषित कर दिया है. नए प्रावधानों के मुताबिक यदि कोई पति तीन तलाक देता है तो पीड़ित पत्नी उसके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही या मुकदमा दर्ज करवा सकती है.

क्या होती है ‘हलाला’ की प्रक्रिया
इस्लामी शरीयत के अनुसार यदि तलाक के बाद पति अपनी पूर्व पत्नी के साथ फिर से घर बसाना चाहता है, तो महिला के लिए ‘हलाला’ की प्रक्रिया से गुजरना अनिवार्य है. इस नियम के तहत महिला को पहले किसी अन्य पुरुष से विवाह करना होता है और फिर उससे तलाक लेना पड़ता है। इसके उपरांत ही वह अपने पहले पति के पास लौटने के योग्य मानी जाती है. साथ ही उन्हें आपस में दोबारा निकाह भी करना पड़ता है. जहां तक आर्थिक अधिकारों का प्रश्न है तो तलाक की स्थिति में पत्नी को आमतौर पर गुजारा भत्ता (मेंटेनेंस) नहीं मिलता, लेकिन पति को ‘मेहर’ की राशि अनिवार्य रूप से चुकानी पड़ती है. वर्तमान में भारत में कोई ऐसा केंद्रीय कानून नहीं है जो विशेष रूप से और स्पष्ट शब्दों में सिर्फ ‘निकाह हलाला’ को प्रतिबंधित करता हो (जैसा कि तीन तलाक के लिए है). इसका मतलब यह है कि पर्सनल लॉ के तहत हलाला की प्रथा अभी भी अस्तित्व में है.

‘खुला’ में पत्नी करती है पहल
‘खुला’ इस्लामी कानून में विवाह विच्छेद का वह स्वरूप है जहां पत्नी अलगाव की प्रक्रिया की पहल करती है. इस प्रावधान के माध्यम से एक महिला अपने पति (शौहर) से वैवाहिक संबंध समाप्त करने का निर्णय ले सकती है, और इसका उल्लेख कुरान तथा हदीस जैसे धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है. हालांकि, जब कोई महिला ‘खुला’ लेती है, तो उसे पति से प्राप्त कोई लाभ या मेहर (Dower) की कुछ राशि पति को वापस करनी पड़ सकती है. यह ध्यान रखना आवश्यक है कि ‘खुला’ की प्रक्रिया तभी पूर्ण मानी जाती है जब पति और पत्नी दोनों की रजामंदी प्राप्त हो.

सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मामला
पत्रकार हिना द्वारा तलाक-ए-हसन के खिलाफ दायर मुख्य याचिका में दावा किया गया है कि उनके पति ने उन्हें 19 अप्रैल को स्पीड पोस्ट के माध्यम से तलाक का पहला नोटिस भेजा था. लाइव लॉ के अनुसार, दूसरा और तीसरा नोटिस बाद के महीनों में वितरित किया गया. हिना ने तर्क दिया कि तलाक की यह प्रथा अतार्किक, मनमानी है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करती है. हिना ने सर्वोच्च न्यायालय को अपनी पीड़ा बताई क्योंकि उनके पति ने अपने वकील के जरिए तलाक का नोटिस भेजा था. महिला ने कहा कि चूंकि वह यह साबित नहीं कर पायी है कि वह तलाकशुदा है, इसलिए उसके चार साल के बच्चे को स्कूल में दाखिला नहीं दिया गया है और वह अपना पासपोर्ट पाने के लिए भी संघर्ष कर रही है. उनके वकील के अनुसार हिना के पति ने उन्हें केवल 17,000 रुपये की एकमुश्त राशि दी थी. पत्रकार ने यह भी कहा कि उनके पति ने दूसरी शादी कर ली है और आगे बढ़ गए हैं, जबकि उन्हें तलाक साबित करने में मुश्किल हो रही है. वकील ने कहा, “वह अपने पति की वजह से बहुपतित्व में लिप्त हो जाएगी. 11 पन्नों के तलाक नोटिस में पति का नाम नहीं है. तलाक पति के वकील ने सुनाया है.”

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