Last Updated:July 03, 2025, 17:14 IST
Wildlife News : राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में स्थित सीतामाता अभ्यारण्य से खुश खबर सामने आई है। यहां उड़न गिलहरियों की संख्या बढ़ गई है। यह गिलहरी महुए के पेड़ पर रहती है। यह रात को ही अपने घरौंदे से बाहर निकलत...और पढ़ें

उड़न गिलहरी की खासियत यह है कि यह 60 मीटर तक ग्लाइडिंग कर लेती है.
हाइलाइट्स
सीतामाता अभ्यारण्य में उड़न गिलहरियों की संख्या बढ़ी.उड़न गिलहरी 60 मीटर तक ग्लाइडिंग कर सकती है.रात को ही उड़न गिलहरी अपने घर से बाहर निकलती है.प्रतापगढ़. क्या आपने कभी उड़ने वाली गिलहरी देखी है? नहीं तो चौंकिए मत क्योंकि राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के सीतामाता अभयारण्य में यह दुर्लभ प्रजाति आपको खुले आसमान में दिख सकती है. इनको देखने के लिए अलसुबह या देर शाम समय सही है. उस समय ये गिलहरियां एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर फुर्ती से उड़ती नजर आती है. भूरे रंग वाली यह प्रजाति राजस्थान के साथ गुजरात में भी देखने को मिलती है. यह महुए के पेड़ के साथ तेंदु आदि बड़े पेड़ों पर रहना पसंद करती है. महुए के पेड़ के फूलों से शराब बनती है. इस अभयारण्य में ये काफी ज्यादा संख्या में है. यही कारण है कि यह गिलहरी यहां आसानी से देखी जा सकती है. 2018-19 से इनकी संख्या में काफी कमी आने के कारण सभी चिंतित थे. लेकिन इस साल संख्या बढने से वन विभाग ने राहत की सांस ली है.
धरियावद रेंज वनखंड में वनकर्मी और वन सुरक्षा प्रबंध समिति की ओर से हाल ही में वाटर हाल पॉइंट तथा ऊंचे मचान पर बैठकर वन्य जीव गणना की गई. इस गणना में धरियावद के आरमपुरा में 6 उड़न गिलहरियां दिखाई दी. वन्यजीव प्रेमी मंगल मेहता ने बताया कि उड़न गिलहरी राजस्थान के दक्षिणी हिस्से के घने जंगलों में पाई गई है. सीतामाता अभयारण्य में यह दुर्लभ जीव आसानी से देखे जा सकते हैं. ये उन क्षेत्रों में पाई जाती है जहां महुए के पेड़ ज्यादा हो.
60 मीटर तक ग्लाइडिंग कर लेती है
राजस्थान के सिर्फ सीतामाता अभ्यारण और फुलवारी की नाल में ही बहुत ज्यादा संख्या में महुए के पेड़ हैं. यह इन्हीं पेड़ों पर घर बनाकर रहती है और उसके टहनी के गुदे, फल, पत्ते, कोपल खाती है. इसकी खासियत यह है कि 60 मीटर तक ग्लाइडिंग कर लेती है. उड़न गिलहरी रात को ही अपने घर से बाहर निकलना पसंद करती है. यह 50 से 60 मीटर की दूरी तक ग्लाइडिंग करती है. यह पेड़ के शिखर पर जाकर दूसरे पेड़ के बीच में बैलेंस बनाकर ग्लाइड करती है. इस दौरान वह उसके शरीर पर लगी झिल्लियों को फैला देती है जो उसे ग्लाइड में मदद करती है.
सुबह 4-5 बजे अपने घर लौट आती है
यह बाज, लंगूर और दूसरे जानवरों से डरती है. सुबह 4-5 बजे अपने घर लौट आती है और यहीं इन्हें देखने का सबसे अच्छा समय होता है. यह गर्मियों में ज्यादा एक्टिव रहती है जबकि सर्दियों में यह अपने घर में रहना पसंद करती हैं. जंगलों में यह सिर्फ 4 से 5 साल जीवित रहती है. इनका वजन सिर्फ 1.5 किलो का होता है. पूंछ को मिलाकर इनकी लंबाई 2.5 फीट की होती है. 2017-18 में उड़न गिलहरी की संख्या 80 पाई गई थी. लेकिन उसके बाद उसकी संख्या लगातार घटती जा रही थी. यह देखकर वन्य जीव प्रेमी चिंतित थे. 2018-19 में 78 और 2019-20 में सीतामाता अभ्यारण में यह संख्या और ज्यादा घटकर 58 रह गई थी.
2020-21 की गणना में 138 उड़न गिलहरियों की काउंटिंग हुई है
प्रतापगढ़ उपवन संरक्षक हरिकिशन सारस्वत ने बताया कि खुशी की बात है कि 2020-21 की गणना में सीतामाता अभ्यारण में 138 उड़न गिलहरियों की काउंटिंग हुई है. यानी एक साथ 80 गिलहरियों की बढ़ोतरी हुई है. हालांकि इस साल वन्यजीव गणना में सीता माता अभ्यारण्य में हुई गिनती की गणना अभी तक पूरी तरह से सामने नहीं आई है. लेकिन टेरिटोरियल क्षेत्र (धरियावद) की गणना में इस बार इनकी संख्या 3 से बढ़ कर 6 दर्ज की गई है. वन्य जीव प्रेमियों का मानना है कि लगातार कटते जंगल इनकी कमी का प्रमुख कारण है.
संदीप ने 2000 में भास्कर सुमूह से पत्रकारिता की शुरुआत की. कोटा और भीलवाड़ा में राजस्थान पत्रिका के रेजीडेंट एडिटर भी रह चुके हैं. 2017 से News18 से जुड़े हैं.
संदीप ने 2000 में भास्कर सुमूह से पत्रकारिता की शुरुआत की. कोटा और भीलवाड़ा में राजस्थान पत्रिका के रेजीडेंट एडिटर भी रह चुके हैं. 2017 से News18 से जुड़े हैं.
Location :
Pratapgarh,Pratapgarh,Rajasthan