Last Updated:November 26, 2025, 20:16 IST
Husband Wife Marital Dispute: आज के युग में पति-पत्नी के बीच छोटी-छोटी बातों पर अलगाव देखने को मिलता है. कई मौकों पर यह भी देखा गया कि रोज-रोज के झगड़ों से तंग आकर पति या पत्नी एक दूसरे से अलग रहने लगते हैं. क्या लंबे वक्त तक एक दूसरे से अलग रहने के आधार पर तलाक दिया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट के ताजा जजमेंट में इसपर कई अहम टिप्पणी की गई.
पति-पत्नी के बीच विवाद पर कोर्ट ने अहम टिप्पणी की.नई दिल्ली. रिश्ते की किताब के पन्ने मुड़े हैं, मगर कहानी खत्म नहीं हुई. दूरियां दरवाजे पर दस्तक देती हैं, पर अदालत कहती है कि अभी इंतजार करो. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में वैवाहिक विवादों से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में यह स्पष्ट किया है कि केवल इस आधार पर तलाक नहीं दिया जा सकता कि पति और पत्नी अलग-अलग रह रहे हैं और उनका विवाह अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुका है. न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में इस प्रवृत्ति पर गहरी चिंता व्यक्त की है, जहां निचली अदालतें और हाईकोर्ट अलगाव को ही विवाह के टूटने का निर्णायक प्रमाण मान लेते हैं.
जिम्मेदारी तय करना अनिवार्य
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक इरादतन परित्याग या यौन संबंध से इनकार करने का ठोस सबूत न हो तब तक विवाह को टूटा हुआ मानकर तलाक नहीं दिया जा सकता. न्यायमूर्ति सूर्यकांत (जो अब भारत के मुख्य न्यायाधीश हैं) और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की बेंच ने 14 नवंबर को दिए अपने आदेश में कहा कि किसी भी विवाह को मरम्मत से परे घोषित करने से पहले अदालतों के लिए यह निर्धारित करना अनिवार्य है कि:
1. अलगाव का दोषी कौन है: दोनों में से वह कौन सा पक्ष है जो वैवाहिक संबंध तोड़ने और दूसरे पक्ष को अलग रहने के लिए मजबूर करने के लिए जिम्मेदार है.
2. इरादतन परित्याग: क्या किसी एक पक्ष ने जानबूझकर दूसरे को छोड़ दिया है.
3. परिस्थितिजन्य अलगाव: क्या किसी पक्ष को उन परिस्थितियों के कारण अलग रहने के लिए मजबूर होना पड़ा जो उसके नियंत्रण से बाहर थीं.
बच्चों पर पड़ने वाला विनाशकारी प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि इस सवाल का महत्व तब और भी बढ़ जाता है जब इस मामले में बच्चे शामिल होते हैं. बेंच ने आदेश में कहा, “जब तक जानबूझकर परित्याग या यौन संबंध से इनकार करने का ठोस सबूत न हो तब तक विवाह के अपरिवर्तनीय रूप से टूट जाने के निष्कर्ष के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं, खासकर बच्चों पर.” कोर्ट ने कहा कि ऐसा निष्कर्ष देने से पहले अदालतों पर यह कठोर दायित्व आ जाता है कि वे पूरे सबूतों का गहन विश्लेषण करें, पक्षों की सामाजिक परिस्थितियों और पृष्ठभूमि पर विचार करें और अन्य महत्वपूर्ण कारकों को ध्यान में रखें.
उत्तराखंड हाई कोर्ट का फैसला पलटा
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी एक ऐसे मामले में की जहां पति ने 2010 में क्रूरता के आधार पर तलाक का मुकदमा दायर किया था, जिसे बाद में वापस ले लिया. 2013 में उसने दोबारा पत्नी पर परित्याग का आरोप लगाते हुए याचिका दायर की. ट्रायल कोर्ट ने 2018 में साक्ष्य के अभाव में याचिका खारिज कर दी, लेकिन 2019 में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए पति को तलाक की मंजूरी दे दी थी. पत्नी ने इसके खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया. सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि उत्तराखंड हाई कोर्ट पति के मौखिक बयानों को स्वीकार करते हुए पत्नी के इस दावे को नजरअंदाज कर दिया कि उसे ससुराल से बाहर निकाल दिया गया था और वह अकेले बच्चे की परवरिश कर रही थी.
महज अलगाव के आधार पर तलाक नहीं
कोर्ट ने पुराने केस वापस लेने जैसे कानूनी सवालों पर भी ध्यान न देने के लिए हाई कोर्ट को फटकार लगाई. शीर्ष अदालत ने तलाक के आदेश को रद्द करते हुए मामले को नए सिरे से विचार के लिए हाई कोर्ट को वापस भेज दिया. इस फैसले ने यह सुनिश्चित किया गया कि वैवाहिक मामलों में भावनाओं या मात्र अलगाव के आधार पर नहीं बल्कि गहन न्यायिक जांच के आधार पर ही कोई अंतिम निष्कर्ष निकाला जाए.
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...
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First Published :
November 26, 2025, 20:16 IST

17 minutes ago
