11 बच्चे मरे, 1644 संक्रमित, इजरायल में फिर 'दबे पांव' लौट आया खसरा! आखिर क्यों आई ये आफत

17 minutes ago

Why measles outbreak increased in Israel: इजरायल इन दिनों हेल्थ सेक्टर के दो मोर्चों पर एक साथ लड़ रहा है. एक तरफ खसरे के बढ़ते मामलों का खतरा है तो दूसरी तरफ लोगों में वैक्सीन के प्रति बढ़ती झिझक है. जिस देश ने वर्षों तक अपने बच्चों को नियमित टीकाकरण में लगभग बेहतरीन रिकॉर्ड कायम रखा था. वहीं अब कोविड-19 महामारी के बाद पैदा हुई वैक्सीनेशन के प्रति अरुचि ने उस भरोसे को कमजोर कर दिया है.

खसरे का टीका लगवाने से इनकार कर रहे लोग

'बार-इलान यूनिवर्सिटी' के अध्ययन ने बताया कि महामारी के बाद इजरायल में बच्चों की रूटीन वैक्सीन्स खासकर MMR यानी मीजल्स (खसरा), मम्प्स और रुबेला डीपीटी को लगवाने से लोग इनकार कर रहे हैं. जिन माता-पिता ने पहले बिना सवाल पूछे अपने बच्चों को टीके लगवाए थे, वे भी अब अधिक सतर्क, संशयग्रस्त और कुछ मामलों में विरोधी दिखने लगे हैं.

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रिसर्च में पाया गया कि जिन 6.6 फीसदी अभिभावकों ने महामारी से पहले अपने बड़े बच्चे को वैक्सीन लगवाई थी, उन्होंने अब छोटे बच्चे को वैक्सीन नहीं लगवाने का फैसला किया. ऐसे में मौजूदा बीमारी को महामारी बनाने के लिए काफी है.

मई से अब तक 11 बच्चों की गई जान

शोध के ये नतीजे तब सामने आए हैं, जब मई से अब तक इजरायल में खसरे से 11 बच्चों की मौत हो चुकी है. इनमें से ज्यादातर को टीका नहीं लगा था. विभाग के मुताबिक, अक्टूबर के आखिर तक संक्रमण के 1,644 मामले सामने आए. जिसमें से 577 पीड़ित अस्पताल में भर्ती हुए.

रिसर्चर ने पाया कि इजरायल में बच्चों के MMR टीकाकरण में महामारी से पहले की तुलना में लगभग 3 प्रतिशत की गिरावट आई है. यह बदलाव दिखने में भले ही मामूली लगता है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि खसरे जैसी बीमारी के लिए यह गिरावट बहुत मायने रखती है. वो भी तब जब इजरायल इस बीमारी के पूरी तरह से खात्मे की बात कह चुका था.

सबसे संक्रामक बीमारियों में से एक है खसरा

हेल्थ एक्सपर्टों के मुताबिक, खसरा दुनिया की सबसे संक्रामक बीमारियों में से एक है. अगर एक व्यक्ति इस बीमारी से संक्रमित हो जाए तो आस-पास के लगभग 90 फीसदी बिना टीका लगे लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं. इसलिए किसी एक छोटे समूह में भी टीकाकरण दर में गिरावट पूरे देश के लिए खतरा बढ़ा सकती है. यही वजह है कि इजरायल के कुछ हिस्सों में खसरा तेजी से फैल रहा है. खासकर उन इलाकों में जहां टीकाकरण दर पहले से कम है.

कोविड महामारी के दौरान जिस तरह स्वास्थ्य निर्देशों में बार-बार बदलाव हुए, सोशल मीडिया पर गलत सूचनाएं फैलीं और कई लोगों ने वैक्सीन को लेकर अपनी राय बदली. इन सब वजहों ने मिलकर रूटीन टीकाकरण के प्रति लोगों का भरोसा कम कर दिया. इजरायल में कई माता-पिता कहते हैं कि कोविड वैक्सिनेशन के समय उन्हें स्पष्ट जानकारी नहीं मिली, जिससे उन्हें अब सामान्य टीकाकरण के बारे में भी सोचने पर मजबूर होना पड़ा है. 

लोगों की आखिर क्यों घट गई है रूचि?

इस बदले हुए मनोवैज्ञानिक माहौल ने 'टीके के प्रति घटती रुचि' को जन्म दिया है. यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें लोग टीकों को खतरनाक नहीं मानते, बल्कि उसे गैर-जरूरी समझने लगते हैं. ऐसे में यह सोच खसरे जैसे रोगों के लिए सीधा खतरा बन गई है.

इजरायल का स्वास्थ्य विभाग बार-बार यह कह चुका है कि एमएमआर की दो खुराकें खसरे को लगभग पूरी तरह रोक सकती हैं. फिर भी जिन समुदायों में कोविड के दौरान वैक्सीन विरोधी भावनाएं मजबूत हुईं, वे अब रूटीन टीकाकरण से भी दूर हो रहे हैं. यह गिरावट केवल आंकड़ों में नहीं, बल्कि अस्पतालों और क्लिनिकों में दिख रही है.

इजरायल में गंभीर हो रही स्वास्थ्य समस्याएं

अब डॉक्टरों के पास आने वाले माता-पिता पहले की तुलना में अधिक प्रश्न पूछते हैं. वे ज्यादा परेशान दिखाई देते हैं. कई बार खसरे का खतरा समझने के बावजूद टीके से बचना चाहते हैं. द टाइम्स ऑफ इजरायल ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों के हवाले से कहा कि कोविड के दौरान खोया भरोसा दोबारा बनाना आसान नहीं होगा. इजरायल में खासकर शहरी-धार्मिक समुदाय और कुछ प्रवासी समूहों में टीकाकरण दर पहले भी राष्ट्रीय औसत से कम थी. अब कोविड के बाद पैदा हुई संशयग्रस्त सोच ने इन क्षेत्रों को और संवेदनशील बना दिया है.

खसरे का यह उभार सिर्फ एक बीमारी से जुड़ा नहीं है, बल्कि भरोसे के संकट की एक चेतावनी है. इजरायल जैसे देश, जहां स्वास्थ्य व्यवस्था मजबूत मानी जाती है, वहां भी कोविड के बाद गलतफहमियों और डर ने वैक्सीन पर वर्षों से बने भरोसे को हिलाकर रख दिया है.

(एजेंसी आईएएनएस)

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