US Army Latest Defence Technology News: दुनिया में जिस तरह युद्ध क्षेत्र में नई-नई तकनीक सामने आ रही हैं. उसे देखकर अमेरिका को खुद के पिछड़ने का डर सता रहा है. अपनी सेना को चीन-रूस समेत दुनिया के तमाम मुल्कों से आगे रखने के लिए अब वह एक नए युद्ध संचार नेटवर्क को विकसित करने की तैयारी कर रहा है. हालांकि इस परियोजना के पूरा होने से पहले ही उसकी सफलता को लेकर सेना के भीतर ही शंकाएं उठने लगी हैं.
डिफेंस सिस्टम पर सेना ने उठाई उंगली
सिलिकॉन वैली की दिग्गज कंपनियां Palantir और Anduril इस सिस्टम को तैयार कर रही हैं, जिसे NGC2 प्लेटफॉर्म नाम दिया गया है. इस प्लेटफॉर्म का उद्देश्य सैनिकों, कमांडरों, सेंसर और वाहनों को रियल-टाइम डेटा से जोड़ना है. लेकिन अमेरिकन आर्मी इस प्लेटफॉर्म को लेकर आशंकित है.
सेना के चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर गैब्रिएल चिउली ने हाल ही में आंतरिक मेमो जारी कर कहा है कि यह प्लेटफॉर्म बहुत बड़ा जोखिम साबित हो सकता है. उन्होंने चेतावनी दी कि यह सिस्टम सुरक्षा के लिहाज से कमजोर है और दुश्मन देशों के हैकर इसे लगातार और बिना पकड़े इस्तेमाल कर सकते हैं.
'सभी डेटा तक पहुंच सकते हैं यूजर'
अपने मेमो में उन्होंने साफ कहा, 'हम इस बात को कंट्रोल नहीं कर पा रहे कि कौन क्या देख रहा है. न ही यह जान पा रहे कि इस प्लेटफार्म के यूजर क्या कर रहे हैं. यह भी पक्का नहीं कि खुद सॉफ्टवेयर सुरक्षित है.'
अपनी रिपोर्ट में उन्होंने कहा कि NGC2 सिस्टम इस तरह डिजाइन किया गया है कि कोई भी अधिकृत यूज़र सभी एप और डेटा तक पहुँच सकता है. इससे खतरा है कि संवेदनशील और गुप्त जानकारियों का गलत इस्तेमाल हो सकता है, क्योंकि इसमें लॉगिंग सिस्टम (रिकॉर्ड रखने का तरीका) भी कमजोर है.
800 करोड़ रुपये में दिया गया ठेका
सेना की यह चेतावनी ऐसे समय आई है जब मार्च में इस सिस्टम को कोलोराडो के फोर्ट कार्सन में तोपखाना अभ्यास के दौरान आजमाया गया था. उस समय एंडुरिल ने दावा किया था कि यह सिस्टम पुराने सिस्टम से तेज़ और भरोसेमंद है. एंडुरिल को इस परियोजना के लिए हाल ही में 100 मिलियन डॉलर (करीब 800 करोड़ रुपये) का कॉन्ट्रेक्ट मिला था. इसमें पलान्टिर और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां भी सहयोगी हैं.
हालांकि, सेना के चीफ इन्फॉर्मेशन ऑफिसर लियोनेल गार्सिगा ने कहा कि यह रिपोर्ट साइबर सिक्योरिटी कमजोरियों की पहचान और उनके समाधान की प्रक्रिया का हिस्सा है. यानी इसे तुरंत खारिज करने के बजाय सुधार के कदम उठाए जाएंगे.
ट्रंप के करीबी हैं दोनों कंपनियों के मालिक
दिलचस्प बात यह है कि पलान्टिर और एंडुरिल, दोनों कंपनियों के प्रमुख अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के करीबी माने जाते हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि इसी राजनीतिक समीकरण के चलते उन्हें बड़े-बड़े रक्षा अनुबंध आसानी से मिल रहे हैं.
पारंपरिक रक्षा कंपनियों की तुलना में पलान्टिर और एंडुरिल का वादा है कि वे सेना को सस्ती और ज्यादा एडवांस तकनीक उपलब्ध कराएंगी. लेकिन अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या सस्ती तकनीक सुरक्षा से समझौता किए बिना दी जा सकती है?
अब आगे क्या करेगी अमेरिकी सेना?
विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला केवल एक सैन्य तकनीक का नहीं है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का बड़ा सवाल है. अगर दुश्मन देश इस सिस्टम में सेंध लगा लेते हैं, तो न सिर्फ गुप्त योजनाएं बल्कि पूरे सैन्य अभियान खतरे में पड़ सकते हैं.
अब सबकी नजर इस पर है कि अमेरिकी सेना इन तकनीकी खामियों को सुधारने के लिए क्या कदम उठाती है. फिलहाल, सेना ने कंपनियों को सुरक्षा स्तर मजबूत करने का निर्देश दिया है, लेकिन यह देखना बाकी है कि क्या यह सिस्टम जंग के मैदान में भरोसेमंद साबित हो पाएगा या नहीं.