Last Updated:May 05, 2025, 09:08 IST
Rahul Gandhi admits Congress mistakes: राहुल गांधी ने अमेरिका में सार्वजनिक रूप से कबूल किया कि 80 के दशक में कांग्रेस राज में गलतियां हुई हैं. उन्होंने यह भी कबूल किया कि 1984 के सिख दंगों की जिम्मेवारी लेने क...और पढ़ें

राहुल गांधी कांग्रेस पार्टी को नई शक्ल देने की कोशिश में हैं.
हाइलाइट्स
अपनी छवि बदलने लगी है कांग्रेसकांग्रेस ने ट्रैक बदल लिया है ट्रैकराहुल ने गांधी ने गलतियां कबूलींकहते हैं, स्वीकारोक्ति में सुधार की संभावनाएं छिपी रहती हैं. कांग्रेस के स्थायी पीएम फेस और लगातार तीसरी बार नाकाम रहने का रिकार्ड बनाने वाले राहुल गांधी की एक स्वीकारोक्ति से कांग्रेस के रिवाइवल की उम्मीद जगती है. कांग्रेस में राहुल के कद के किसी भी नेता ने ऐसी बात अब तक नहीं कही है. राहुल ने अमेरिका में सार्वजनिक रूप से कबूल किया कि 80 के दशक में कांग्रेस राज में गलतियां हुई हैं. उन्होंने यह भी कबूल किया कि 1984 के सिख दंगों की जिम्मेवारी लेने को वे तैयार हैं. यह कांग्रेस की किसी बड़ी सियासी रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है. पर, इसे कांग्रेस का अद्भुत बदलाव तो मानना ही पड़ेगा. संयोग देखिए. राहुल ने कांग्रेस की गलतियां स्वीकारने की समझदारी अब दिखाई है, जब शून्य से शुरुआत करने की स्थिति में पार्टी खड़ी है.
नए अवतार में कांग्रेस
केंद्र की सत्ता में 2014 से ही लौटने का प्रयास कांग्रेस कर रही है. इसमें लगातार तीसरी बार कांग्रेस को नाकामी हाथ लगी है. राज्यों की सत्ता भी हाथ से फिसलती जा रही है. तालमेल बना कर और तोड़ कर भी कांग्रेस कुछ हासिल नहीं कर पा रही. हरियाणा में अकेले लड़ी तो जीतते-जीतते हार गई. दिल्ली में तो खेल बिगाड़ने के लिए ही कांग्रेस लड़ी थी. दोनों जगह अलग-अकेले लड़ कर देख लिया. महाराष्ट्र में मजबूत गठबंधन और कुछ ही महीनों पहले हुए लोकसभा चुनाव में उम्दा प्रदर्शन भी कांग्रेस के काम न आया. शायद इसीलिए कांग्रेस अब नए अवतार में आना चाहती है. इसके लिए तरह-तरह के रूप राहुल धरते रहे हैं. भाजपा के हिन्दुत्व की काट के लिए राहुल गाधी कभी जनेऊ धारण करते हैं तो हिन्दू होने का भरोसा दिलाने के लिए मंदिरों में भी जाते रहे हैं. इसके बावजूद कांग्रेस की कामयाबी के पुख्ता संकेत नहीं मिलते. अब राहुल की कलतियों की स्वीकारोक्ति से उसके नए रूप के दर्शन हो रहे हैं.
भाजपा की तरह बदलाव
कांग्रेस का यह बदला रुख कहीं जाति जनगणना के मुद्दे पर भाजपा के बदले नजरिए से प्रेरित तो नहीं! भाजपानीत केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अचानक जाति जनगणना कराने का प्रस्ताव पारित कर दिया. पहले यही सरकार इससे इनकार कर चुकी थी. भाजपा ने यकीनन बड़े विचार मंथन के बाद अपना रुख बदला होगा. कांग्रेस को इसकी उम्मीद ही नहीं रही होगी कि झटके में पीएम नरेंद्र मोदी उसका मुद्दा ही मटियामेट कर देंगे. कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के समय से ही जाति जनगणना और इसके आंकड़ों के आधार पर हिस्सेदारी देने को चुनावी मुद्दा बना लिया था. इस मुद्दे की रट लोकसभा चुनाव में तो लगी ही, बाद के विधानसभा चुनावों में भी इसी को मुद्दा बनाया गया. कांग्रेस को इसमें पोटेंशियल इसलिए दिखा होगा कि लोकसभा में न सिर्फ उसकी सीटें बढ़ीं, बल्कि सहयोगियों को भी लाभ हुआ. कांग्रेस का यह भाजपा पर वार का अचूक अस्त्र था. मोदी सरकार ने जाति जनगणना कराने की मंजूरी देकर कांग्रेस को अस्त्रहीन कर दिया है. इसलिए राहुल गांधी अब कांग्रेस राज की गलतियों को स्वीकार कर नया रुख अपना रहे हैं.
कांग्रेस राज में गलतियां
कांग्रेस ने अपने शासन में एक नहीं, कई गलतियां की हैं. उसका खामियाजा कांग्रेस अब तक भोग रही है. इंदिरा गांधी द्वारा देश पर थोपी गई इमरजेंसी और पंजाब में आपरेशन ब्लू स्टार जैसी गलतियां सभी जानते हैं. सिख दंगे में जान-माल का व्यापक नुकसान भी कांग्रेस की गलती का ही परिणाम था. इससे कांग्रेस को झटका लगता रहा है. पंजाब एक बार हाथ से फिसला तो आज तक कांग्रेस वहां पैर नहीं टिका पाई. शाह बानो मामले में भी कांग्रेस का दकियानूसी सोच उजागर हुआ. मुसलमानों के उदारवादी तबके की कांग्रेस ने अवहेलना की. आरिफ मोहम्मद खां जैसे नेता को कांग्रेस ने इसी मुद्दे पर गंवाया. आज कांग्रेस को मुस्लिम वोटों के लिए उनके हर अच्छे-बुरे कामों में हामी भरनी पड़ती है. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस को इसका भान नहीं है. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इसीलिए मुंह की खानी पड़ी कि उसके पारंपरिक मुस्लिम मतदाताओं ने उसका साथ छोड़ दिया था. मुस्लिम वोटर तृणमूल कांग्रेस, आरजेडी और सपा जैसी इलाकाई पार्टियों की ओर मुखाातिब हो गए. इस बारे में एके एंटोनी के नेतृत्व में बनी कमेटी ने 2014 की हार की समीक्षा करते हुए कहा था कि मुसलमानों के साथ के कारण ही पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. सिख तो 1984 के दंगों और उसके पहले हुए आपरेशन ब्लू स्टार के कारण पहले ही बिदक चुके थे. ब्राह्मण भी तब तक भाजपा के हिन्दुत्व के कारण उसकी ओर मुखातिब हो चुके थे.
राहुल गांधी लगातार अपनी छवि बदलने में लगे हुए हैं.
जाति जनगणना बड़ा मुद्दा
वर्ष 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 2 प्रमुख मुद्दों पर काम किया. पहला मुद्दा था संविधान सुरक्षा का. कांग्रेस ने कहा कि भाजपा संविधान को बदलना चाहती है. संविधान संशोधन कर भाजपा पहले से मिल रहे रिजर्वेशन को खत्म करना चाहती है. दूसरा नैरेटव कांग्रेस ने जाति जनगणना को लेकर बनाया. राहुल गांधी ने कहना शुरू किया कि उनकी सरकार बनी तो जाति जनगणना कराएगी. आबादी के हिसाब से भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी. इस नैरेटिव का लाभ कांग्रेस को मिला. उसकी सीटें बढ़ कर 99 हो गईं और विपक्षी गबंधन ने अपनी सीटें 232 तक पहुंचा दीं. भाजपा ने कांग्रेस की आशंका के अनुरूप संविधान संशोधन तो किया ही नहीं. ऐसे में जाति जनगणना का मुद्दा ही कांग्रेस को ताकत दे सकता था. इसे जोर-शोर से उछालने की सहूलियत कांग्रेस को इसलिए मिल गई थी कि भाजपा ने सुप्रीम कोर्ट में जाति जनगणना कराने से इनकार कर दिया था. कांग्रेस की इसके जरिए अनुमानित 60 प्रतिशत से अधिक ओबीसी-ईबीसी की आबादी पर नजर थी. भाजपा ने इसे विफल कर दिया.
कांग्रेस की गलती भुला पाएंगे?
कांग्रेस मुसलमानों के मुद्दे उठा कर उनको फिर से अपने पाले में करने का प्रयास कर रही है. पर, यह सिर्फ प्रयोग है. समय-समय पर राहुल ऐसा प्रयोग करते रहे हैं. शायद प्रयोग के क्रम में ही राहुल गांधी ने 80 के दशक में कांग्रेस से हुई गलतियों को स्वीकार किया है. पर, सिर्फ गलती स्वीकारने से कांग्रेस की कामयाबी की राह आसान नहीं दिखती. बिहार में 20 साल बाद भी लालू-राबड़ी के जंगल राज की कसक लोग भूल नहीं पाए हैं तो कांग्रेस की गलतियों को कोई कैसे नजरअंदाज कर देगा.