सर्वे में बिहार चुनाव के वो 8 फैक्टर जो एक को कर रहा 'अप' तो दूसरे को 'डाउन'!

3 hours ago

पटना. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए की स्थिति लगातार मजबूत होती दिख रही है ऐसा हालिया सर्वे रिपोर्ट्स बता रही है. अलग-अलग सर्वे एजेंसियों के ओपिनियन पोल्स में एनडीए न केवल स्पष्ट बढ़त बनाए हुए है, बल्कि उसकी पकड़ ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में गहरी हुई है, ऐसे में विरोधी खेमे की चिंता बढ़ गई है. दरअसल, यह चुनाव इसलिए भी खास है, क्योंकि जनता दो दशक के शासन के बाद भी नीतीश-मोदी कॉम्बिनेशन की भी परीक्षा है. ऐसे में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन के लिए सत्ता परिवर्तन की संभावनाओं के बीच पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार के चेहरे की बदौलत स्थिरता और विकास की गारंटी की भी परीक्षा है. वहीं, जो सर्वे रिपोर्ट्स आ रहे हैं यह बता रहे हैं कि दो दशक से ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहने के बावजूद नीतीश कुमार की स्वीकार्यता अब भी बनी हुई है.

सर्वे रिपोर्ट्स बता रहे हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए)के लिए उत्साह देखने को मिल रही है. इस गठबंधन का नेतृत्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कर रहे हैं जो इसकी ताकत है, तो वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता इस गठबंधन का सबसे बड़ा फैक्टर है.नीतीश कुमार की प्रशासनिक छवि, नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, गठबंधन की एकजुटता और जमीनी योजनाओं का असर मिलकर एनडीए के पक्ष में एक ठोस लहर तैयार कर रहा है. हाल में किए गए मैट्रिक्स सर्वे के अनुसार, 42% लोगों ने नीतीश कुमार को पसंदीदा मुख्यमंत्री बताया. शिक्षा, सड़क, बिजली और कानून व्यवस्था में सुधार के कारण नीतीश की “साफ-सुथरी और परिणाम देने वाली” छवि ने एनडीए की स्थिति को मजबूत किया है. सत्ता-विरोधी लहर का लगभग अभाव यह बता रहा है कि जनता उनके नेतृत्व को उनकी थकान के बजाय भरोसे की नजर से देख रही है.

नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय अपील का जमीन पर असर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बिहार में एनडीए के लिए निर्णायक फैक्टर है. स्पीक मीडिया नेटवर्क के सर्वे के मुताबिक 64% मतदाता मोदी के काम से संतुष्ट हैं और 47% लोग सिर्फ पीएम मोदी के कारण एनडीए को वोट देने का मन बना चुके हैं. पीएम मोदी का विकास और कल्याण का संदेश जाति समीकरणों से ऊपर उठकर मतदाताओं तक पहुंच रहा है. इसके साथ ही उनके नीतीश कुमार को “भाई” कहकर संबोधित करने की रणनीति ने दोनों दलों के समर्थकों के बीच मनोवैज्ञानिक रूप से असर डाला और जमीन पर विरोधाभासी नजरिये होने के बावजूद लोगों के भीतर एकता भी मजबूत की है.

गठबंधन की एकजुटता और संगठनात्मक तालमेल

इतना ही 2020 के चुनावों के विपरीत जब चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने अलग चुनाव लड़ा और 5.66% वोट हासिल किए थे जो एनडीए के लिए काफी नुकसानदेह साबित हुआ था.लेकिन, इस बार के चुनाव में एनडीए अब एकजुट है और इसका स्पष्ट संदेश मतदाताओं को भी है. साफ है कि चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा की वापसी ने गठबंधन के जातिगत समीकरण को मजबूत किया है. कुशवाहा के जुड़ने से कोइरी-कुशवाहा वोट बेस भी मजबूत हुआ है. ब्लॉक स्तर तक समन्वय बैठकों और साझा रैलियों ने “एक चेहरा, एक एजेंडा” की छवि बनाई है. मतदाताओं के लिए यह संदेश स्पष्ट है कि एनडीए अब किसी अंदरूनी खींचतान से मुक्त होकर चुनावी मैदान में उतर रहा है.

पीएम मोदी- सीएम नीतीश का डबल इंजन नैरेटिव

एनडीए का सबसे बड़ा चुनावी हथियार ‘डबल इंजन सरकार’ का मॉडल है. केंद्र और राज्य के तालमेल से शुरू की गई योजनाओं- जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, जल-जीवन मिशन और मुख्यमंत्री सड़क योजना का असर हर पंचायत तक पहुंचा है. बिहार में पहली बार यह मॉडल विकास की स्थिरता का प्रतीक बन गया है. लोगों को यह महसूस हो रहा है कि केंद्र और राज्य का तालमेल विकास की गति को दोगुना कर रहा है. दूसरी ओर पीएम मोदी की अपील जातिगत समीकरणों से परे है और वे आवास और प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण जैसी योजनाओं के माध्यम से मतदाताओं से सीधे जुड़े हुए दिखते हैं और यह सियासी जमीन को भी साध रहा है.

महिला मतदाताओं में नीतीश कुमार पर पूरा भरोसा

एनडीए की योजनाओं ने महिलाओं में गहरी पैठ बनाई है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के “जीविका समूह”, 10,000 रुपये की महिला रोजगार सहायता योजना और शराबबंदी ने महिला वोट बैंक को स्थायी समर्थन में बदल दिया है. एनडीए का नारा “सबसे पहले बहन-बेटी की सुरक्षा” अब भावनात्मक जुड़ाव बन चुका है. सर्वे बताते हैं कि ग्रामीण महिलाओं में 58% से अधिक नीतीश सरकार के प्रति सकारात्मक रुझान है.

सामाजिक संतुलन, जातिगत प्रबंधन से बदला माहौल

एनडीए ने इस बार जातीय समीकरणों को बहुत सावधानी से साधा है. जदयू का अति पिछड़ा वोट बैंक, बीजेपी का सवर्ण और अति पिछड़ा वर्ग, चिराग पासवान की एलजेपी का दलित वोट और कुशवाहा की आरएलएम का ओबीसी समर्थन… ये सब मिलकर एक “वोट ब्लॉक” बना चुके हैं. दूसरी ओर, महागठबंधन अभी तक यादव-मुस्लिम समीकरण से आगे नहीं निकल पाया है. एनडीए की “सबका साथ-सबका विकास” लाइन जातीय सीमाओं को धुंधला कर रही है.

केंद्र सरकार की योजनाओं की दिख रही जमीनी पकड़

एनडीए ने 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली, 1100 रुपये मासिक पेंशन, बेरोजगारी भत्ता और हर परिवार को आवास जैसी योजनाओं से सामाजिक आधार मजबूत किया है. पीएम-किसान, उज्जवला और एलपीजी सब्सिडी का सीधा लाभ ग्रामीण वोटरों तक पहुंचा है. खासकर “महिला रोजगार योजना” और “आवास सबके लिए” जैसी घोषणाओं ने युवाओं और महिलाओं के बीच सकारात्मक माहौल बनाया है. वोट वाइब सर्वे में 5.8% मतदाता इस बार योजनाओं से प्रभावित होकर एनडीए की ओर झुके हैं.

महागठबंधन की कमजोर पकड़ और ‘जोड़ी’ का विकल्प

एनडीए की मजबूती का एक पहलू विपक्ष की कमजोरी भी है. राजद और कांग्रेस के बीच तालमेल की कमी, नेतृत्व को लेकर अस्पष्टता और नए चेहरों की कमी ने मतदाताओं को आश्वस्त नहीं किया. तेजस्वी यादव की राजनीतिक परिपक्वता पर भरोसा बढ़ा है, लेकिन महागठबंधन अब भी “नैरेटिव” तय नहीं कर पा रहा.ऐसे में नीतीश-मोदी की जोड़ी के सामने राहुल-तेजस्वी की जोड़ी का “विकल्प” कमजोर दिख रहा है.

यहां से चेंज होता गया बिहार चुनाव का सियासी गेम

एनडीए की रणनीतिक लोकप्रिय योजनाओं का भी असर जमीन पर दिख रहा है. इनमें 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली, 1100 रुपये पेंशन और बेरोजगारी भत्ता जैसी सहूलियतों ने मतदाताओं की बेरुखी को बेअसर किया है. महागठबंधन की माई बहन मान योजना से आगे एनडीए का 10,000 रुपये की महिला रोजगार जैसी योजनाओं ने सियासी जमीन और मजबूत कर दी. खास बात यह कि 10 हजार रुपये वाली योजनाओं ने तो कुछ मतदाताओं को महागठबंधन से एनडीए की ओर आकर्षित किया है जो वोट वाइब सर्वे के 5.8% स्विंग से पता चलता है.

स्थिरता, विकास और भरोसे के नाम पर सर्वे के रूझान

दरअसल, बिहार में 2025 का चुनाव अब केवल सत्ता परिवर्तन की लड़ाई नहीं, बल्कि शासन की निरंतरता और विकास की दिशा तय करने वाला जनादेश बन गया है. नीतीश कुमार की स्थायी विश्वसनीयता और नरेंद्र मोदी की व्यापक अपील ने एनडीए को जनसमर्थन का ठोस आधार दिया है. गठबंधन की एकता, जातीय संतुलन और योजनाओं की गूंज ने इसे विपक्ष से कई कदम आगे खड़ा कर दिया है. सर्वे के रुझान ही अगर कायम रहे तो यह कहना गलत नहीं होगा कि बिहार के मतदाता इस बार भी स्थिरता, विकास और भरोसे के नाम पर एनडीए के पक्ष में एक और जनादेश लिखने की तैयारी में हैं.

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