अमेरिकी प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रंप और लंदन के मेयर सादिक खान की पुरानी अदावत फिर से एक बार सुर्खियों है. इसबार इसे ट्रंप ने हवा दी है. डोनाल्ड ट्रंप ने लंदन और सादिक खान पर हमले कर एक पुराने आरोप को फिर से जिंदा कर दिया है. ट्रंप का आरोप है कि कि ब्रिटेन की राजधानी 'शरिया कानून' की तरफ बढ़ रहा है. हालांकि, कानूनी तौर पर ट्रंप का ये दावा गलत है. लेकिन कुछ विवादित कारणों से इस आरोप को बल मिला है. महिलाओं को नुकसान पहुंचाने वाली धार्मिक परिषदें, सार्वजनिक व्यवस्था के नाम पर अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश और ग्रूमिंग गिरोहों के साथ ब्रिटेन की भयावह कुव्यवस्था को लेकर सादिक खान निशाने पर आ गए हैं.
संयुक्त राष्ट्र महासभा ( UN General Assembly 2025 ) में बोलते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने मेयर सादिक खान पर ये आरोप लगाए. उन्होंने कहा वे लंदन में 'भयानक' शरिया कानून लागू करना चाहता था. करीब उसी वक्त डेली मेल ने भी इसपर एक लंबी रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें लंदन को 'पश्चिम की शरिया राजधानी' करार दिया गया था. इसमें इस्लामी काउंसिल द्वारा फतवे जारी करने, तलाक प्रथाओं और कुरान जलाने वाले एक प्रदर्शनकारी को सड़क पर चाकू मारने की घटना को प्रमुखता से जगह दी गई थी. जबकि ट्रंप का दावा कानूनी तौर से बेबुनियाद है.
शरिया काउंसिल्स - कानूनी बनाम सच्चाई
जबकि, पहली इस्लामी शरिया काउंसिल 1982 में लेटन में स्थापित हुई थी. लेकिन इसके बाद कई जगह शरिया काउंसिल स्थापित हुआ. आज लंदन में कम से कम पांच और मुमकिन तौर पर पूरे ब्रिटेन में दर्जनों इदारे हैं. 2017 की एक रिव्यू में अनुमान लगाया गया था कि देश भर में इनकी तादाद 85 है, जिनमें लंदन, बर्मिंघम, ब्रैडफोर्ड और ड्यूजबरी इसके सेंटर हैं. ये सेंटर शादी, तलाक, उत्तराधिकारी और विवादों का निपटारा करती है. हालांकि, आपराधिक कानून पर इनका कोई अधिकार नहीं है. लेकिन, कई मुसलमान सबसे पहले इन्हीं की तरफ रुख करते हैं, जिससे उन्हें सामाजिक अधिकार मिलता है जो उनकी कानूनी स्थिति से कहीं ज़्यादा अहम है. अब चलिए जानते हैं कि ब्रिटेन में शरिया कानून की हकीकत क्या है? ट्रंप के दावे में कितनी सच्चाई है.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पर्दे के पीछे ईशनिंदा!
लंदन में मौजूद तुर्की वाणिज्य दूतावास (Turkish Consulate) के बाहर हामित कोस्कुन नाम के शख्स ने इस्लाम विरोधी नारे लगाते हुए पवित्र किताब कुरान में आग लगा दी थी. इस घटना को लेकर वहां के मुसलमानों समेत दुनियाभर में आक्रोश फैल गया. कोर्ट ने आरोपी को 'मुसलमानों के प्रति दुश्मनी' की बुनियाद पर सार्वजनिक व्यवस्था के उल्लंघन करने के लिए मुजरिम ठहराया. इस बीच, एक मुस्लिम व्यक्ति ने कोस्कुन पर चाकू से हमला कर दिया. लेकिन इस घटना को लेकर व्यक्ति को सिर्फ निलंबन की सजा मिली. इस दौरान जजों ने जोर देकर कहा कि वे सजा के गाइडलाइंस का पालन कर रहे थे. कोर्ट के इस फैसले के बाद ज्यादातर लोगों की अलग ही राय थी. उनका मानना था कि यह पिछले दरवाजे से ईशनिंदा कानून को फिर से लागू करने जैसा है. जबकि, आरोपी को ब्रिटिश कानून के तहत सजा सुनाई गई थी. उन्होंने तर्क दिया कि ऑफेंसिव एक्सप्रेशन, चाहे कितनी भी अनप्लीजमेंट क्यों न हो, सहन की जानी चाहिए. जबकि हिंसा को कभी भी माफ नहीं किया जाना चाहिए. अब स्टारमर विवाद समझते हैं, जिसके बाद सबकुछ क्लियर हो जाएगा.
स्टारमर विवाद क्या है?
यह मुद्दा 2024 के आखिर में संसद में दोबारा तब उठा, जब लेबर सांसद ताहिर अली ने कीर स्टारमर से पूछा कि क्या सरकार अब्राहमिक धर्मों (Abrahamic Religions) के धार्मिक ग्रंथों और पैगम्बरों के अपमान के खिलाफ कानून बनाएगी? स्टारमर ने इसपर जवाब देते हुए घटना की निंदा की और इसे 'भयानक' बताया. और, इस दौरान उन्होंने नए कानूनों की संभावना से भी इनकार नहीं किया. स्टार्मर ने इसे नफरत से निपटने का एक तरीका बताया. वहीं, कई समूहों ने चेतावनी दी कि यह ईशनिंदा संरक्षण को लागू करने का एक नई कोशिश है, जिसे ब्रिटेन ने सालों पहले समाप्त कर दिया था. लेकिन, इन समूहों की चिंताएं तब बढ़ गईं जब कोर्ट एक बच्चे के माता-पिता को 'फतवे का फायदा' लेने की इजाजत दी.
फतवे और अदालतें
दरअसल, तफीदा रकीब मामले में एक हाईकोर्ट ने माता-पिता को अपने बच्चे का आगे का इलाज कराने की इजाजत देते हुए 'फतवे के लाभ' का जिक्र किया, जिसको लेकर वहां के कई ग्रुप्स की चिंताएं बढ़ गईं. इस फैसले से साफ हो गया कि अंग्रेजी कनून निर्णायक है. लेकिन फतवे के जिक्र से एक तबके में चिंताएं बढ़ी हुई हैं.
ट्रंप बनाम मेयर सादिक खान: पुरानी अदावत
जबकि, ट्रंप और लंदन के मेयर सादिक खान की लड़ाई नई नहीं है. खान ने ट्रंप के ट्रैवल बैन का विरोध किया था, वहीं ट्रंप उन्हें 'स्टोन कोल्ड लूजर' कह चुके हैं. ट्रंप के लिए खान एक मुस्लिम, लिबरल और प्रवासी समर्थक मेयर हैं. यानी उन पर हमला करना पश्चिम की कमजोरी दिखाने जैसा है.
क्या लंदन सच में 'शरिया राजधानी' है?
यही काण है कि लंदन में अक्सर शरिया कानून को लेकर सवाल उठते रहे हैं. क्या लंदन सच में 'शरिया राजधानी' है? जबकि असलियत बिल्कुल इसके उलट है. हकीकत यह है कि लंदन शरिया कानून से नहीं चल रहा. हालांकि, यहां की अदालतों और काउंसिल्स के फैसले कभी-कभी महिलाओं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ जदरूर दिखते हैं. ट्रंप के आरोप भले ही सख्त और सतही हों, लेकिन ताकत उन्हीं असली विफलताओं से मिलती है, जिन्हें ब्रिटेन अब तक सही से कबूल नहीं कर पाया है.