'वहीं के वहीं रुक जाओ..' जब कश्मीर पर पाकिस्तान पहली बार टकराया, कैसे हुआ LOC का जन्म?

4 hours ago

India Pakistan War: पहलगाम हमले के दो दो सप्ताह के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है. पाकिस्तान ने अपने नापाक मंसूबे दिखा दिए और वह लगातार गीदड़भभकियां दे रहा है. जबकि अतीत में वह भारत से किसी भी युद्ध में नहीं जीता है. वह हमेशा कश्मीर राग अलापता रहा है. जब उसने कश्मीर के लालच में पहली बार आजादी के बाद गद्दारी भरा आक्रमण किया उसी समय उसको मुंह की खानी पड़ी थी. यह वही समय था जब सीमा पर नियंत्रण रेखा यानि कि LoC की नींव पड़ी थी. आइए जानते हैं कि भारत की सेना ने कैसे उस समय पाकिस्तान को जवाब दिया था. 

असल में 1947 में हुए भारत-पाक बंटवारे के बाद कश्मीर को लेकर जो विवाद शुरू हुआ वह खत्म ही नहीं हुआ. जम्मू-कश्मीर के हिंदू शासक महाराजा हरि सिंह ने शुरू में तटस्थ रहने का फैसला किया. पाकिस्तान ने इसी मौके का फायदा उठाते हुए कबायलियों की आड़ में जनजातीय लड़ाकों के साथ मिलकर कश्मीर पर हमला कर दिया. 

भारतीय सेना ने बाजी पलट दी
उस हमले में जब श्रीनगर पर खतरा मंडराने लगा तब जाकर महाराजा ने भारत से मदद मांगी और 26 अक्टूबर को भारत में विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए. अगले ही दिन 27 अक्टूबर को भारतीय सेना ने पाकिस्तान को औकात दिखानी शुरू कर दी. शुरुआत में हालात गंभीर थे क्योंकि हमलावर श्रीनगर के नजदीक पहुंच गए थे. पाकिस्तान ने अपने सैनिकों को सीधे तौर पर युद्ध में उतार दिया था. लेकिन फिर भारतीय सेना ने बाजी पलट दी.

संयुक्त राष्ट्र की एंट्री.. फिर युद्धविराम

एक तो पाकिस्तान ने खुद हमला किया फिर जब भारतीय सेना ने उसको औकात दिखाई और 1948 तक कश्मीर के कई इलाकों से हमलावरों को खदेड़ दिया. फिर मामला 1 जनवरी 1948 को संयुक्त राष्ट्र में पहुंचा. कुछ महीनों की बातचीत के बाद 1 जनवरी 1949 को युद्धविराम लागू हुआ. यह तय हुआ कि दोनों देश वहीं बीच में ही रुक जाएं. जिस स्थान पर दोनों सेनाएं रुकीं वही नियंत्रण रेखा यानि कि Line of Control बनी. ये कश्मीर को दो हिस्सों में बांटती है. 

LOC के साथ ही बंट गया कश्मीर
नियंत्रण रेखा बनने के बाद जम्मू-कश्मीर का एक हिस्सा भारत के पास रहा जबकि बाकी हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया. संयुक्त राष्ट्र ने इसे अस्थायी हल मानते हुए जनमत-संग्रह की बात कही जो आज तक नहीं हुआ. लेकिन भारत ने हमेशा इस पर समझदारी दिखाते हुए जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र को बनाए रखा. जबकि दूसरी तरफ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में कभी ऐसा ना हो सका.

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