Last Updated:June 15, 2025, 20:02 IST
Lalu Yadav : लालू यादव के 78वें जन्मदिन पर आंबेडकर की तस्वीर के विवाद ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है. बीजेपी ने इसे दलित अपमान बताया, जबकि आरजेडी ने इसे झूठा प्रचार कहा.

क्या लालू यादव ने सचमुच में आंबेडकर किया अपमान?
हाइलाइट्स
लालू यादव के जन्मदिन पर आंबेडकर की तस्वीर पर विवाद क्यों?बीजेपी ने लालू पर दलित अपमान का आरोप लगायातेजस्वी यादव ने इसे बीजेपी का झूठा प्रचार बतायापटना. राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के 78वें जन्मदिन 11 जून 2025 पर एक वायरल वीडियो ने बिहार की सियासत में तूफान ला दिया है. वीडियो में एक समर्थक द्वारा बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की तस्वीर लालू के पैरों के पास रखकर फोटो खिंचवाने का दृश्य दिख रहा है. लालू ने तस्वीर को न छुआ और न ही उठाया, जिसे भारतीय जनता पार्टी (BJP) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने ‘आंबेडकर का अपमान’ करार दिया. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या लालू यादव सचमुच में आंबेडकर की तस्वीर का अनादर या अपमान किया? क्या लालू यादव के पास उस दिन सभी समर्थक नजदीक गए थे? क्या लालू यादव ने किसी समर्थक का गुलदस्ता अपने हाथ में लिया था?
बता दें में वीडियो में लालू अपने आवास पर सोफे पर बैठे हैं, एक पैर दूसरी कुर्सी पर रखा हुआ. एक कार्यकर्ता आंबेडकर की तस्वीर लालू के पैरों के पास रखता है, जिसे बाद में सुरक्षाकर्मी हटाते हैं. बीजेपी नेता अमित मालवीय ने इसे सोशल मीडिया पर शेयर कर लालू पर “दलित समाज के मसीहा का अपमान” करने का आरोप लगाया. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने जवाब में इसे “बीजेपी का झूठा प्रचार” बताया और कहा कि लालू ने बिहार में आंबेडकर की कई मूर्तियां लगवाईं. हालांकि, लालू की चुप्पी और तेजस्वी का इसे “आलतू-फालतू” कहना विवाद को और हवा दे रहा है.
लालू प्रसाद यादव, जो दशकों से खुद को सामाजिक न्याय का पुरोधा बताते हैं, उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर का घोर अपमान किया है।
उनके जन्मदिन पर, बाबा साहेब की तस्वीर उनके चरणों में रखी गई — और लालू यादव ने न तो उसे उठाया, न सम्मान दिया, और न ही छूना तक ज़रूरी समझा।
खुद को सामाजिक… pic.twitter.com/vYrYmBSuSt
— Amit Malviya (@amitmalviya) June 14, 2025
बिहार चुनाव में कितना पड़ेगा प्रभाव?
बिहार में अक्टूबर-नवंबर 2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों में 243 सीटों के लिए एनडीए (बीजेपी-जेडीयू) और महागठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस) के बीच कांटे की टक्कर है. बिहार की 20% आबादी दलित समुदाय की है, जो चुनावी नतीजों में निर्णायक भूमिका निभाती है. 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी को 23.1% वोट (75 सीटें) मिले, जबकि बीजेपी को 19.5% (74 सीटें) और जेडीयू को 15.4% (43 सीटें). दलित वोट मुख्य रूप से आरजेडी, जेडीयू और छोटे दलों जैसे हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (एचएएम) के बीच बंटा.
इस विवाद को एनडीए दलित वोटों को एकजुट करने के लिए भुनाने की कोशिश कर रही है. बीजेपी के दलित नेता कृष्णनंदन पासवान ने कहा, “लालू और तेजस्वी को दलित बस्तियों में घुसने नहीं देंगे.” जेडीयू प्रवक्ता हिमराज राम ने लालू पर “दलित नरसंहार” का आरोप लगाया. एनडीए के दलित चेहरा जीतन राम मांझी ने इसे “राजद का काला अध्याय” बताया.
क्या एनडीए को फायदा होगा?
पिछले चुनावों में दलित वोटों का ध्रुवीकरण देखा गया है. 2015 में मोहन भागवत के आरक्षण वाले बयान को लालू ने भुनाया था, जिससे महागठबंधन को फायदा हुआ. इस बार एनडीए इस मुद्दे को लंबे समय तक जिंदा रखने की रणनीति बना रही है. हालांकि, आरजेडी का ओबीसी-मुस्लिम-दलित गठजोड़ मजबूत है, और तेजस्वी की युवा अपील दलित मतदाताओं को प्रभावित कर सकती है.
लालू यादव किडनी सहित कई रोगों से ग्रस्त हैं. किडनी का ट्रांसप्लांट भी हो चुका है. किडनी मरीजों को इंफेक्शन से बचने की सलाह डॉक्टर देते हैं. क्योंकि, लालू यादव की उम्र काफी हो चुकी है औऱ बीमारी भी कई हैं. ऐसे में जन्मदिन के मौके पर वह कार्यकर्ताओं से दूरी बनाकर बैठे थे लेकिन सबका अभिवादन दूर से ही स्वीकर कर रहे थे. इस वजह से आरजेडी नेता इसे फालतू करार दे रहे हैं.लेकिन इसके बाद भी यह विवाद लालू यादव का बिहार चुनाव में पीछा नहीं छोड़ेगा. क्योंकि, एनडीए इसको खूब भुनाएगी. एनडीए इसे दलित वोट बैंक को साधने का मौका मान रही है, लेकिन आरजेडी के मजबूत सामाजिक आधार को तोड़ना भी आसान नहीं है.