Last Updated:August 13, 2025, 09:25 IST
OBC Reservation News: केंद्र सरकार ओबीसी 'क्रीमी लेयर' आय मानदंड को सभी सरकारी और प्राइवेट क्षेत्रों में लागू करने पर विचार कर रही है. अगर यह प्रस्ताव लागू हो जाता है कि कई लोगों से आरक्षण का लाभ छिन सकता है.

केंद्र सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के ‘क्रीमी लेयर’ आय मानदंड को विभिन्न केंद्रीय और राज्य सरकारी संगठनों, सार्वजनिक उपक्रमों (PSUs), विश्वविद्यालयों और प्राइवेट सेक्टर में भी लागू करने पर गंभीरता से विचार कर रही है. इसका मकसद इन सभी क्षेत्रों में ‘समानता’ स्थापित करना है.
इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से बताया कि इस मुद्दे पर सामाजिक न्याय और अधिकारिता, शिक्षा, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT), विधि, श्रम व रोजगार, सार्वजनिक उपक्रम, नीति आयोग और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) के बीच कई दौर की बातचीत हुई है, जिसके बाद यह प्रस्ताव तैयार किया गया है.
क्या है क्रीमी लेयर?
1992 के सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार (मंडल फैसला) में ओबीसी के भीतर ‘क्रीमी लेयर’ की अवधारणा लागू हुई थी. 1993 में गैर-सरकारी कर्मचारियों के लिए सालाना आय सीमा 1 लाख रुपये तय की गई थी. हालांकि इसके बाद से इसमें कई बार बदलाव किया जा चुका है और 2017 में इसे बढ़ाकर 8 लाख रुपये कर दिया गया.
‘क्रीमी लेयर’ में आने वालों में संवैधानिक पदों पर बैठे लोग, ऑल इंडिया सर्विसेज के ग्रुप-A/क्लास-I और ग्रुप-B/क्लास-II अधिकारी, पीएसयू कर्मचारी, सशस्त्र बलों के अफसर, बड़े व्यापारी-उद्योगपति और संपत्ति या आय के आधार पर अमीर लोग शामिल होते हैं.
क्यों जरूरी है ‘बराबरी’?
कुछ केंद्रीय पीएसयू में 2017 में ‘बराबरी’ तय की गई थी, लेकिन प्राइवेट सेक्टर, विश्वविद्यालयों और राज्यों के विभागों में यह अभी तक यह नहीं हुआ था. सूत्रों के अनुसार विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर की सैलरी लेवल-10 या उससे ऊपर होती है, जो सरकारी ग्रुप-A पदों के बराबर है. ऐसे में इन्हें ‘क्रीमी लेयर’ में लाने का प्रस्ताव है. इसका मतलब है कि इनके बच्चे ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं ले पाएंगे.
वहीं प्राइवेट सेक्टर में पद और सैलरी स्ट्रक्चर अलग-अलग होने के कारण ‘बराबरी’ तय करना मुश्किल है, इसलिए यहां आय/संपत्ति के आधार पर फैसला करने का सुझाव है.
नए प्रस्ताव में क्या-क्या?
वहीं अब नए प्रस्ताव के तहत विश्वविद्यालयों के असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर जैसे पदों को ग्रुप-ए के समकक्ष मानते हुए ‘क्रीमी लेयर’ में रखा जा सकता है, जिससे उनके बच्चों को ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा. निजी क्षेत्र में ‘क्रीमी लेयर’ का निर्धारण आय/संपत्ति के आधार पर किया जाएगा.
राज्य व केंद्रीय स्वायत्त निकायों, वैधानिक संगठनों और सरकारी सहायता प्राप्त संस्थानों में भी पद व वेतनमान के आधार पर समानता लागू करने की योजना है. राज्य पीएसयू के मैनेजमेंट और बोर्ड-स्तरीय पदों को भी ‘क्रीमी लेयर’ में शामिल किया जाएगा, हालांकि जिनकी आय 8 लाख रुपये से कम होगी, उन्हें इससे बाहर रखा जाएगा.
इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में कई मामले लंबित हैं. सरकार का मानना है कि स्पष्ट नियम बनने से विवाद खत्म होंगे और ओबीसी को रोजगार में ज्यादा अवसर मिलेंगे. एक शीर्ष अधिकारी के अनुसार, ‘इस कदम से ओबीसी के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को मजबूती मिलेगी.’
An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें
An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
August 13, 2025, 09:25 IST