दिल्ली के लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास हुए कार बम धमाके की जांच अब एक खतरनाक नेटवर्क की ओर इशारा कर रही है. NIA और दिल्ली पुलिस की संयुक्त जांच में पता चला है कि यह वारदात किसी अकेले भटके हुए आतंकी का काम नहीं, बल्कि पाकिस्तान से संचालित एक संगठित जैश-ए-मोहम्मद मॉड्यूल का हिस्सा थी, जिसकी जड़ें फरीदाबाद स्थित अल-फलाह यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों तक जाती हैं.
अब जांच एजेंसियों ने इस पूरे नेटवर्क के 10 गुनहगारों की पहचान की है, जिनकी भूमिकाएं सीधे दिल्ली बम ब्लास्ट और व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल से जुड़ती हैं.
हंजल्ला बना मास्टरमाइंड
सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, इस पूरे नेटवर्क की कड़ियां पाकिस्तान में बैठकर ऑपरेशन चलाने वाले उमर बिन खत्ताब उर्फ हंजुल्ला से शुरू होती हैं, जो भारत में मौजूद अपने भरोसेमंद मौलवी इरफान के जरिए लगातार संपर्क में था. इसी के निर्देश पर भारत में टेरर मॉड्यूल चलाने की प्लानिंग हुई थी.
जैश और डॉक्टरों के बीच कड़ी बना मौलवी इरफान अहमद
मौलवी इरफान को शोपियां से गिरफ्तार किया गया है. जांच एजेंसियों के मुताबिक, वह जैश के पाकिस्तानी हैंडलर्स और इस डॉक्टर मॉड्यूल के बीच पुल का काम करता था. इसी इरफान ने धीरे-धीरे फरीदाबाद में मौजूद डॉक्टरों को जोड़ना शुरू किया, जिनमें सबसे अहम नाम है अल-फलाह यूनिवर्सिटी के डॉक्टर मुज़म्मिल का, जिसे इस मॉड्यूल का ऑपरेशनल हेड माना जा रहा है.
डॉ. मुज़म्मिल, उमर, शाहीन और परवेज का क्या रोल?
डॉ. मुज़म्मिल ने पहले डॉ. आदिल को जोड़ा. इसके बाद उसने अपने सर्कल में डॉ. उमर फारूक भट्ट को शामिल किया, जो कट्टरपंथी विचारों को फैलाने, धमकी देने और मॉड्यूल के अंदर ‘आइडियोलॉजिकल पुश’ को संभाल रहा था. इसी दौरान उसने डॉ. शाहीन को अपने नेटवर्क में खींचा, जिसकी भूमिका सबसे संदिग्ध थी, क्योंकि उसके बैंक खातों में पिछले कुछ वर्षों में 20–22 लाख की जकात रकम जमा हुई. जांच एजेंसियों का मानना है कि उसी पैसे का उपयोग मॉड्यूल ने हथियारों, उपकरणों और अन्य संसाधनों की खरीद में किया. शाहीन का भाई डॉ. परवेज़ अंसारी भी इस नेटवर्क में शामिल पाया गया.
डॉक्टर टेरर मॉड्यूल के दो और बड़े चेहरे
फरीदाबाद क्लस्टर में शामिल इन डॉक्टरों के अलावा दो और अहम चेहरे सामने आए है… आमिर रशीद अली और जासिर बिलाल वानी. आमिर रशीद को NIA ने 10 दिन की कस्टडी में लिया है. आरोप है कि वह डॉ. उमर को लॉजिस्टिकल सपोर्ट देता था. गाड़ी का इंतजाम, सुरक्षित मूवमेंट और दिल्ली–हरियाणा के बीच ट्रांजिट, यह सब उसकी जिम्मेदारी थी. वहीं जासिर बिलाल वानी इस मॉड्यूल का तकनीकी दिमाग था, जो CCTV ब्लाइंड स्पॉट, फोन सिक्योरिटी और कोडेड कम्युनिकेशन संभालता था.
अल-फलाह यूनिवर्सिटी बना सेफ जोन
जांच एजेंसियों का मानना है कि फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी को इस मॉड्यूल ने एक ‘प्री-ऑपरेशन सेफ जोन’ की तरह इस्तेमाल किया, जहां हथियार, CCTV किट, बैरल और इलेक्ट्रॉनिक सामान लाया जाता था. इसी नेटवर्क से निकलकर दिल्ली में कई बार रेक्की की गई और अंत में लाल किला के पास कार में लो-इंटेंसिटी IED रखकर एक तरह का ‘ट्रायल रन’ किया गया.
अब पूरा मामला साफ हो रहा है कि इस धमाके का मकसद सिर्फ डर फैलाना नहीं था, बल्कि इससे पहले एक बड़े हमले की तैयारी चल रही थी. पाकिस्तान स्थित ऑपरेटिव लगातार इस मॉड्यूल पर दबाव बना रहा था. यही वजह है कि नेटवर्क के कई सदस्य अंतिम समय में सक्रिय दिखे और डॉ. शाहीन के खाते से कुछ समय पहले 1 लाख रुपये की तत्काल मांग भी हुई, जो अब जांच का बड़ा हिस्सा है.
लाल किला धमाके से शुरू हुई जांच ने फरीदाबाद के डॉक्टरों के इस मॉड्यूल की परतें खोल दी हैं. यह वही नेटवर्क है, जो पाकिस्तान के निर्देश पर भारत की राजधानी में बड़ा हमला करने की तैयारी में था. अब सभी आरोपी एजेंसियों की गिरफ्त में हैं और पूरा नेटवर्क सामने आ चुका है, जो बताता है कि दिल्ली का ब्लास्ट किसी एक घटना का नहीं, बल्कि एक बड़े आतंकी ब्लूप्रिंट का हिस्सा था.
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1 hour ago
