Last Updated:October 05, 2025, 19:07 IST
Opinion: लद्दाख में हिंसा और असंतोष के बीच स्थायी समाधान का रास्ता केंद्र शासित ढांचे में छिपा है. राज्य का दर्जा नहीं, भरोसे, विकास और स्थानीय अधिकारों की मजबूती ही असली चाबी है.

Opinion: लद्दाख में सामाजिक तनाव और हिंसक घटनाओं ने सुदूर और सामरिक रूप से अहम इस इलाके की शांति को गंभीर चुनौती दी है. इस तनाव के पीछे का कारण ऐतिहासिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक कारणों से बेहद जटिल है और इसका समाधान भी आसान नहीं दिखता है. लद्दाख में हिंसा का कोई एक कारण नहीं है. क्षेत्र की खास भौगोलिक और सांस्कृतिक हालात को देखते हुए, इसके समाधान के लिए एक ठोस रणनीति बनाने की जरूरत है. स्थानीय आबादी की आर्थिक और सांस्कृतिक चिंताओं को दूर करना, उनकी राजनीतिक मांगों पर विचार करना और सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों से निपटते हुए शांति और विकास को बढ़ावा देना होगा.
लद्दाख की नाजुक स्थिति और सामाजिक ताने-बाने को बचाए रखने के लिए लगातार बातचीत और सतत विकास ही एकमात्र रास्ता नजर आता है. जरूरी नहीं कि लद्दाख को राज्य का दर्जा देकर ही ये संभव है. केंद्र शासित व्यवस्था के तहत लोगों का भरोसा जीतने के लिए ठोस कदम की जरूरत है. लेह और कारगिल की राजनीतिक व धार्मिक प्राथमिकताएं अलग अलग हैं. राज्य का गठन इन मतभेदों को और गहरा कर सकता है. राज्य विधानसभा एकता के बजाय ध्रुवीकरण का केंद्र बन सकती है.
लद्दाख के लोगों की चिंता और मौजूदा हिंसा के कारण
लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करके एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद, यहां एक शक्तिशाली राजनीतिक आंदोलन चल रहा है. लद्दाख की ‘छठी अनुसूची’ (Sixth Schedule) की मांग इसके केंद्र में है. स्थानीय लोगों का तर्क है कि बिना विधानसभा और छठी अनुसूची के प्रावधानों के उन्हें भूमि, नौकरियों और संस्कृति पर पर्याप्त स्वायत्तता नहीं मिल पा रही है. इस मांग को लेकर हुए प्रदर्शन कई बार तनाव का कारण बने हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि सरकारी नौकरियों और अन्य आर्थिक अवसरों में उन्हें पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है. कुछ तात्कालिक घटनाओं ने भी हिंसा की चिंगारी सुलगाने का काम किया है समृद्धि राज्य के दर्जे पर निर्भर नहीं है. ये सभी केंद्रशासित प्रदेश ढांचे के तहत संवैधानिक सुरक्षा के साथ संभव हैं.
लद्दाख राज्य का दर्जा क्यों है अव्यावहारिक?
लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाए जाने के बाद से ही राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कुछ हलकों से उठती रही है. हाल के दिनों में यह मांग और तेज हुई है, जिसके पीछे कुछ नेताओं और संगठनों की सक्रियता रही है. लेकिन क्या वाकई लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा एक व्यवहारिक और सुरक्षित विकल्प है? तमाम पहलुओं पर गौर करने पर स्पष्ट होता है कि लद्दाख का भविष्य राज्य के दर्जे में नहीं, बल्कि केंद्रशासित प्रदेश के रूप में मजबूती और छठी अनुसूची जैसी संवैधानिक सुरक्षा में है. लद्दाख का विशाल क्षेत्रफल और केवल 3 लाख की आबादी राज्य बनने की राह में पहली बड़ी बाधा है. इतनी कम जनसंख्या के लिए विधानसभा का गठन असंगत और आर्थिक रूप से भारी होगा. अगर हम तुलना करें तो पुडुचेरी जैसे छोटे केंद्रशासित प्रदेश में 12 लाख से अधिक लोगों के लिए 30 विधायक हैं. महज 3 लाख की आबादी वाले लद्दाख में विधायकों की संख्या निश्चित करना एक बड़ी चुनौती है साथ ही इसपर आने वाला खर्च बेहद ज्यादा होगा जो कहीं से तर्कसंगत नहीं है.
केंद्रशासित प्रदेश के रूप में लद्दाख का भविष्य बेहतर
सीधे केंद्र की शासन व्यवस्था सीमावर्ती इलाके में तुरंत निर्णय लेने में सहायक है. राज्य सरकार बनने से नौकरशाही की देरी और जटिलताएं बढ़ेंगी. केंद्र शासित प्रदेश के रूप में सीधी केंद्रीय शासन व्यवस्था ने लद्दाख में निर्णय लेने और विकास परियोजनाओं को लागू करने में मदद की है. एक राज्य सरकार की स्थापना नौकरशाही के स्तर को बढ़ाकर इस दक्षता में बाधा खड़ी कर सकती है. अभी लद्दाख को केंद्र सरकार से प्रति व्यक्ति जो वित्तीय सहायता मिलती है, वह अधिकांश राज्यों की तुलना में कहीं अधिक है, जो इसके विकास के लिए महत्वपूर्ण है. लद्दाख की समृद्धि राज्य का दर्जा पाने पर निर्भर नहीं है. इसके लिए जरूरत क्षेत्र-विशिष्ट आर्थिक नीतियों, पर्यटन और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने और स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों में कठोर आरक्षण की है. ये सभी लक्ष्य वर्तमान केंद्रशासित प्रदेश के ढांचे के भीतर ही प्राप्त किए जा सकते हैं.
चीन और पाकिस्तान से लगती है लद्दाख की सीमाएं
लद्दाख की स्थिति भारत-चीन सीमा पर है, जहां वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर दोनों देशों के बीच तनाव का लंबा इतिहास रहा है. गलवान घाटी जैसी झड़पें सीधे-सीधे क्षेत्र में सैन्यीकरण को बढ़ावा देती हैं, जिससे स्थानीय आबादी के जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और असुरक्षा की भावना पनपती है. इस क्षेत्र की संवेदनशीलता के कारण, सुरक्षा बलों को सीमा-पार आतंकवादी घुसपैठ की लगातार आशंका बनी रहती है. इससे सुरक्षा चौकसी कड़ी हो जाती है और कभी-कभी स्थानीय निवासियों के साथ मतभेद पैदा हो जाते हैं. लद्दाख को राज्य का दर्जा देना न तो व्यावहारिक है और न ही राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में. इसकी छोटी आबादी और संवेदनशील भौगोलिक स्थिति को देखते हुए विकेंद्रीकृत सत्ता जोखिम भरी होगी. लद्दाख के हितों की रक्षा का सबसे बेहतर तरीका हिल काउंसिलों को सशक्त बनाना, छठी अनुसूची का लाभ दिलाना और केंद्र सरकार की सीधी निगरानी बनाए रखना है, ताकि लद्दाख की अनूठी पहचान, पर्यावरण और सुरक्षा सभी सुरक्षित रह सकें.
लद्दाख के लोगों की चिंताएं और उसे दूर के उपाय बेहद जरूरी
पर्यटन और पशुपालन लद्दाख के लोगों की आजीविका के मुख्य स्रोत हैं. सीमा तनाव और सुरक्षा संबंधी पाबंदियों ने इन आर्थिक गतिविधियों को बाधित किया है. चरागाहों तक पहुंच सीमित होना और पर्यटन पर निर्भर लोगों की आय में गिरावट ने असंतोष को जन्म दिया है. लद्दाख के दूर-दराज के इलाकों में स्वास्थ्य, शिक्षा और संचार जैसी बुनियादी सुविधाओं का गंभीर अभाव है. विकास की यह मंद गति स्थानीय लोगों में उपेक्षा की भावना पैदा करती
है. लद्दाख की एक विशिष्ट बौद्ध-प्रभावित सांस्कृतिक पहचान है. स्थानीय लोग, विशेष रूप से लेह क्षेत्र में, बाहरी लोगों के बढ़ते प्रवास और भूमि के क्रय-विक्रय को लेकर चिंतित हैं. उन्हें डर है कि इससे उनकी सांस्कृतिक विरासत और जनसांख्यिकीय संतुलन बिगड़ सकता है. बाहरी लोगों का आगमन और पर्यटन का विस्तार सीमित संसाधनों, विशेषकर पानी पर दबाव बढ़ा रहा है, जिससे स्थानीय और बाहरी लोगों के बीच प्रतिस्पर्धा की स्थिति उत्पन्न हो रही है.
राज्य के बिना लद्दाख की समस्या के समाधान के रास्ते
LAHDC को भूमि, रोजगार और संसाधन प्रबंधन में अधिक अधिकार देना. हिल काउंसिलों को सशक्त करना और छठी अनुसूची का संरक्षण सुनिश्चित करना. स्थानीयों के लिए डोमिसाइल आधारित आरक्षण और पारदर्शी भर्ती प्रक्रिया लागू करना. क्षेत्र-विशिष्ट आर्थिक योजनाएं, रोजगार के अवसर, पर्यटन और टिकाऊ ऊर्जा मॉडल अपनाना. लद्दाख की नाजुक पारिस्थितिकी और सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा के लिए सख्त नियम और कानून.लद्दाख में कारगर उपायों से जीता जा सकता है भरोसा
लद्दाख की भौगोलिक स्थिति अत्यंत संवेदनशील है, जहां की सीमाएं चीन और पाकिस्तान से लगती हैं. ऐसे में सुरक्षा और रणनीतिक हितों पर किसी भी प्रकार का समझौता स्वीकार्य नहीं है. राज्य का दर्जा मिलने पर भूमि उपयोग और बुनियादी ढांचे पर स्थानीय सरकार के नियंत्रण से सैन्य गतिविधियां और रसद प्रभावित हो सकती है. लेह और कारगिल क्षेत्रों की सामाजिक-राजनीतिक प्राथमिकताएं अलग-अलग हैं. एक राज्य सरकार इन मतभेदों को और गहरा कर सकती है, जहां विधानसभा एकता के स्थान पर ध्रुवीकरण का केंद्र बन सकती है. लद्दाख की
लगभग 97% आबादी अनुसूचित जनजाति से संबंधित है. छठी अनुसूची के तहत मिलने वाला संवैधानिक संरक्षण यहां की स्थानीय संस्कृति, भूमि अधिकारों और रोजगार की सुरक्षा सुनिश्चित करने का सबसे सही रास्ता है. मौजूदा लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (LAHDC) को और सशक्त बनाना एक व्यावहारिक समाधान है.
राजीव कमलएडिटर, HJKLH
राजीव कमल टीवी चैनल NEWS18 JKLH के संपादक हैं. टीवी चैनल के अलावा NEWS18 URDU डिजिटल और सोशल मीडिया की जिम्मेदारी भी उन्हीं के पास है. राजीव कमल इससे पहले एबीपी न्यूज में बतौर सीनियर एडिटर अपनी सेवा दे चुके हैं...और पढ़ें
राजीव कमल टीवी चैनल NEWS18 JKLH के संपादक हैं. टीवी चैनल के अलावा NEWS18 URDU डिजिटल और सोशल मीडिया की जिम्मेदारी भी उन्हीं के पास है. राजीव कमल इससे पहले एबीपी न्यूज में बतौर सीनियर एडिटर अपनी सेवा दे चुके हैं...
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First Published :
October 05, 2025, 19:07 IST