Last Updated:September 21, 2025, 18:57 IST
कांग्रेस नेता राहुल गांधी सोशल मीडिया पर जेन-जी से संविधान बचाने की अपील कर रहे हैं. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है. देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों के छात्रसंघ चुनावों में एबीवीपी का डंका बज रहा है. जबकि, एनएसयूआई लगातार हार रही है.

नई दिल्ली. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद एक के बाद एक छात्रसंघ चुनाव जीत रही है. हैदराबाद केंद्रीय विवि (UoH) छात्रसंघ चुनाव में ABVP का पूरा पैनल विजयी हुआ है. इससे पहले पंजाब विश्व विद्यालय के छात्रसंघ के चुनाव में एबीवीपी का डंका बजा था. दो दिन पहले ही दिल्ली विश्व विद्यालय और आज हैदराबाद विवि छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी ने जीत दर्ज की है. लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी संविधान बचाने के लिए इसी Gen-Z को आगे आने की बात करते हैं. कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई बीते कई सालों दिल्ली विश्वविद्यालय चुनाव में हार रही है. देश के दूसरे विश्व विद्यालयों में भी एनएसयूआई का कमोबेश यही हाल है. बीते एक साल में एबीवीपी ने गढ़वाल विवि, गुवाहाटी विवि, असम विवि, पटना विवि में अध्यक्ष पद पर कब्जा किया है. ऐसे में बड़ा सवाल क्या युवाओं में पीएम मोदी की लोकप्रियता बढ़ रही है?
भारतीय राजनीति में ‘जेन-जी’ यानी युवा पीढ़ी को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है. एक तरफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार सोशल मीडिया पर इस पीढ़ी को संबोधित कर रहे हैं और उन्हें ‘संविधान बचाने’ के लिए आगे आने की अपील कर रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ देश के प्रमुख विश्वविद्यालयों के छात्रसंघ चुनावों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का एकतरफा दबदबा देखने को मिल रहा है. बीते दिनों, दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव में बीजेपी की छात्र इकाई एबीवीपी ने बड़ी जीत दर्ज की थी. अब हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (यूओएच) में भी पूरे पैनल पर कब्जा कर लिया है. ये दो जीतें बताती हैं कि राहुल गांधी और कांग्रेस जिस युवा पीढ़ी को अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं, वह कहीं और ही जा रही है.
दिल्ली विश्व विद्यालय चुनाव में भी एबीवीपी ने तीन सीटों पर जीत दर्ज की थी.
एबीवीपी की जीत का क्या है मतलब?
छात्रसंघ चुनाव हमेशा से ही देश की युवा राजनीति का बैरोमीटर माने जाते रहे हैं. एबीवीपी की इन लगातार जीतों के पीछे कई कारण हो सकते हैं. पहला, एबीवीपी का संगठन बेहद मजबूत है. यह सिर्फ चुनाव के समय नहीं, बल्कि पूरे साल छात्रों के बीच काम करती है, जिससे उसे वोट पाने में मदद मिलती है. दूसरा, एबीवीपी अपनी विचारधारा में राष्ट्रवाद, संस्कृति और राष्ट्रीय गौरव के मुद्दों को प्रमुखता देती है, जो एक बड़े युवा वर्ग को आकर्षित करता है.
एबीवीपी की यह जीत कहीं न कहीं पीएम मोदी की लोकप्रियता से भी जुड़ी हुई है. युवा वर्ग में पीएम मोदी की छवि एक मजबूत और निर्णायक नेता की है, जो युवाओं को पसंद आती है. वहीं, राहुल गांधी की ‘जेन-जी’ को साधने की रणनीति को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं. पहला, जमीनी हकीकत से दूरी सबसे बड़ी वजह है. राहुल गांधी अपनी बात सोशल मीडिया के जरिए रख रहे हैं, लेकिन छात्रसंघ चुनाव सड़कों पर लड़े जाते हैं. एबीवीपी की जमीनी तैयारी कांग्रेस की तुलना में काफी मजबूत है. राहुल गांधी ‘संविधान’ और ‘लोकतंत्र’ बचाने जैसे बड़े-बड़े मुद्दों पर बात कर रहे हैं, जबकि एक बड़ा युवा वर्ग बेरोजगारी, रोजगार और विकास जैसे मुद्दों पर भी सरकार से उम्मीद रखता है. पिछले दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने तीन सीटों पर कब्जा किया था. एनएसयूआई का ईवीएम संबंधी आरोप निराधार निकला.
रविशंकर सिंहचीफ रिपोर्टर
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...और पढ़ें
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...
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Delhi Cantonment,New Delhi,Delhi
First Published :
September 21, 2025, 18:57 IST