Explained: पराली नहीं फिर इस बार कहां से आया धुआं, क्यों घुट रहा दिल्ली का दम?

5 hours ago

दीवाली से पहले ही दिल्ली एक बार फिर गैस चेंबर बन चुकी है. हवा में घुला जहर इतना बढ़ गया है कि राजधानी का हर दूसरा इलाका ‘बेहद खराब’ से लेकर ‘गंभीर’ श्रेणी तक पहुंच चुका है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की तरफ से रविवार सुबह को जारी आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 274 दर्ज किया गया, जो ‘खराब’ श्रेणी में आता है. हालांकि कुछ ही घंटों में हालात और बिगड़ गए. सुबह 7 बजे आनंद विहार का AQI 426 तक पहुंच गया. वहीं आरके पुरम (322), विवेक विहार (349), अशोक विहार (304), बवाना (303), और जहांगीरपुरी (314) जैसे इलाके भी ‘बेहद ख़राब’ श्रेणी में रहे.

दिल्ली के पश्चिमी और उत्तरी हिस्सों में प्रदूषण का स्तर और ज्यादा बढ़ा. द्वारका, वजीरपुर और आनंद विहार में हवा इतनी जहरीली हो गई कि सांस लेना मुश्किल हो गया. राजधानी के कई हिस्सों में धुंध और धुएं का ऐसा मिश्रण छाया रहा जिसने सूरज की किरणों को भी ढक लिया. राजधानी के 38 मॉनिटरिंग स्टेशनों में से नौ ने ‘बेहद ख़राब’ श्रेणी दर्ज की, जिनमें से कई ‘गंभीर’ स्तर की ओर बढ़ रहे हैं.

दिल्ली की दमघोंटू हवा की वजह क्या?

राजधानी की हवा में अचानक हुए इस दमघोंटू बदलाव ने हर किसी को चिंता में डाल दिया है. कई लोगों को फिक्र है कि अभी तो दिवाली के पटाखे भी नहीं फूटे हैं तब हवा में ऐसा जहर घुल गया, फिर दिवाली के बाद दिल्ली का क्या होगा. एक और सवाल यह भी उठ रहा है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए पराली जलाए जाने को एक बड़ी बताया जाता रहा है, लेकिन पंजाब में हालिया बाढ़ की वजह से सारे खेत डूब गए हैं. ऐसे में पराली जलाने का तो कोई सवाल ही नहीं उठाता. फिर दिल्ली में सांसों पर आए इस संकट की वजह क्या है?

वैसे दिल्ली की दमघोंटू हवा अब किसी एक वजह का नतीजा नहीं है. यह कई कारकों के मिले-जुले असर का परिणाम है, जिनमें सबसे बड़ा हिस्सा वाहनों से निकलने वाले धुएं, सड़क की धूल, और औद्योगिक प्रदूषण का है.

जहरीली हवा का ये सबसे बड़ा गुनहगार

एक्सपर्ट्स के मुताबिक दिल्ली की कुल प्रदूषण लोड में सबसे बड़ा योगदान परिवहन क्षेत्र का है… लगभग 15.6 प्रतिशत. वाहनों से निकलने वाला धुआं, धूल और औद्योगिक उत्सर्जन मिलकर वायु गुणवत्ता को तेजी से गिरा रहे हैं. इसके अलावा, दिवाली से पहले चलने वाले निर्माण कार्यों की धूल और कूड़ा जलाने जैसी गतिविधियां भी हवा को ज़हरीला बना रही हैं.

दिल्ली में दिवाली से ठीक पहले हवा की गुणवत्ता हमेशा बिगड़ती रही है, लेकिन इस बार यह गिरावट पहले ही आ चुकी है. धनतेरस के दिन यानी 18 अक्टूबर को राजधानी में प्रदूषण के स्तर ने रिकॉर्ड तोड़ दिए थे. पीएम 2.5 और पीएम 10 दोनों ही मानक सीमा से कई गुना ऊपर दर्ज हुए, जो न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों को भी पार कर गए.

आगे कैसा रहेगा हाल?

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने अगले कुछ दिनों में सुबह कोहरे और दिन में साफ आसमान का पूर्वानुमान दिया है. तापमान 19 से 33 डिग्री सेल्सियस के बीच रहेगा, यानी हवा में मौजूद प्रदूषक कणों को फैलने का मौका नहीं मिलेगा. इसका मतलब यह है कि प्राकृतिक रूप से प्रदूषण में कमी की संभावना बेहद कम है. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि आने वाले दिनों में, विशेषकर दीपावली की रात, हवा की गुणवत्ता और अधिक बिगड़ सकती है.

दिल्ली में प्रदूषण का यह संकट हर साल दीवाली से पहले और बाद में चरम पर पहुंचता है. हर बार इसकी वजह पराली को बताया जाता है, लेकिन इस बार आंकड़े कुछ और कहानी कह रहे हैं. पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं पिछले साल की तुलना में कुछ कम हैं, फिर भी दिल्ली की हवा इतनी खराब क्यों है? जवाब है- शहर के भीतर के प्रदूषण स्रोत.

वाहनों से उत्सर्जन, सड़क की धूल, और निर्माण गतिविधियां इस समय दिल्ली के प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदान दे रही हैं. सड़कों पर जमा मिट्टी, खुले निर्माण स्थल और ट्रैफिक जाम के कारण उठने वाली धूल राजधानी की हवा को ज़हर बना रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक, दिल्ली के पीएम 2.5 स्तर में 18 से 23 प्रतिशत योगदान वाहनों से और 15 से 34 प्रतिशत सड़क धूल से आता है.

सरकार ने बनाया प्लान

सरकार ने इस संकट से निपटने के लिए अब एक ‘बीजिंग-स्टाइल एक्शन प्लान’ पर काम शुरू किया है, जिसका लक्ष्य अगले पांच साल में दिल्ली-एनसीआर के प्रदूषण स्तर को 50 प्रतिशत तक घटाना है. नीति आयोग इस योजना की रूपरेखा तैयार कर रहा है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के विभिन्न मंत्रालयों सड़क परिवहन, शहरी विकास और कृषि मंत्रालयों की भूमिका खास रहेगी.

योजना के तहत उच्च उत्सर्जन वाले ट्रकों और भारी वाहनों के दिल्ली में प्रवेश पर भारी टैक्स या जुर्माना लगाया जाएगा. लक्ष्य यह है कि केवल इलेक्ट्रिक और स्वच्छ ईंधन से चलने वाले वाहन ही दिल्ली में बिना रोक-टोक प्रवेश कर सकें. इसके लिए सरकार ‘ग्रीन टैक्स’ से एक कोष बनाएगी, जिससे ट्रांसपोर्टरों को स्वच्छ वाहनों में बदलाव के लिए वित्तीय सहायता दी जाएगी.

EV से निकलेगा समाधान

सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को भी पूरी तरह से ईवी मोड में बदलने की योजना है. सभी नई बसें केवल इलेक्ट्रिक होंगी. इसके अलावा, दिल्ली-एनसीआर के सभी औद्योगिक इकाइयों के लिए उत्सर्जन मानक और सख्त किए जा रहे हैं. फिलहाल पीएम 2.5 की सीमा 50.6 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, जिसे धीरे-धीरे WHO मानक यानी 15 माइक्रोग्राम तक लाने की योजना है.

सड़क धूल को रोकने के लिए बड़े पैमाने पर सड़क पक्कीकरण, हरियाली और मशीनी सफाई पर जोर दिया जाएगा. एनएचएआई, पीडब्ल्यूडी, सीपीडब्ल्यूडी और नगर निगमों को इसके लिए विशेष बजट और कार्ययोजना दी जाएगी. मिस्टिंग मशीनें, स्मॉग गन और मशीनी झाड़ू लगाने की प्रक्रिया पहले ही शुरू की जा चुकी है.

साफ है कि दिल्ली की हवा केवल पराली की वजह से जहरीली नहीं हुई है. यह राजधानी के अंदरूनी प्रदूषण, वाहनों की भीड़, सड़कों की धूल और सीमित सरकारी कार्रवाई का सम्मिलित परिणाम है. जब तक दीर्घकालिक और सख्त नीतियां लागू नहीं की जातीं, हर साल अक्टूबर और नवंबर में दिल्ली का दम ऐसे ही घुटता रहेगा… चाहे पराली जले या नहीं.

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