रावण की बेटी को कंबोडिया और थाईलैंड में क्यों मानते हैं सौभाग्य की देवी

1 week ago

क्या आपको मालूम है कि रावण की एक बेटी को कंबोडिया और थाईलैंड में सौभाग्य की देवी समझा जाता है. उसकी छोटी – छोटी प्रतिमाएं बाजार में बिकती हैं और लोग उन्हें घर में खरीदकर ले जाते हैं. वैसे आपको बता दें कि रावण के केवल सात बेटे ही नहीं थे बल्कि दो या तीन बेटियां भी थीं. इसमें एक बेटी को कंबोडिया और थाईलैंड के मंदिरों में मूर्तियों के रूप में नजर आती है.

रावण के बेटों के बारे में हर किसी को मालूम है. उसके तीन बेटे थे. लेकिन क्या किसी को ये मालूम है कि रावण की बेटियां भी थीं. वो कौन थीं. उनका जीवन कैसा था. वो क्या करती थीं. शायद इसके बारे में इसलिए नहीं मालूम क्योंकि उनके बारे में बहुत ज्यादा कहीं कुछ आया ही नहीं है. क्षेत्रीय रामायण के संस्करणों में रावण की बेटियों की बात की गई है. सामान्य तौर पर रावण की दो बेटियों का जिक्र आता है. थाईलैंड और कंबोडिया की रामायण तो खासतौर पर उसकी एक बेटी का जिक्र करती है, जिसका नाम स्वर्ण मत्स्य है.

रामायण और संबंधित ग्रंथों में रावण की संतानों की सीमित जानकारी है. वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में रावण के पुत्रों के बारे में तो बताया गया. उसके तीन पुत्र थे – मेघनाद, अक्षयकुमार, और प्रहस्त. हालांकि ग्रंथ ये कहते हैं कि रावण के तीन पत्नियों से उसके कुल सात बेटे थे. मंदोदरी से मेघनाद और अक्षय कुमार, धन्यमालिनी से अतिकाय और त्रिशिरा और तीसरी पत्नी से प्रहस्त, नरांतक और देवांतक. बेटियों का जिक्र क्षेत्रीय रामायणों, जैसे आनंद रामायण, अध्यात्म रामायण, और दक्षिण भारत की लोककथाओं में है. साथ ही थाईलैंड और कंबोडिया की रामायण में.

स्वर्ण पुत्री कौन थी, उसका हनुमान से क्या रिश्ता था. वह हनुमान को क्यों प्यार करने लगी थी. उसके पीछे की कहानी क्या है. ये हम आगे जानेंगे लेकिन पहले ये भी जान लेते हैं कि सीता और कुंभिनी को भी क्यों रावण की ही बेटी कहा जाता है.

दूसरी बेटी का नाम था कुंभिनी
कुछ कथाओं में सीता को भी रावण की पुत्री बताया गया है. इसके अलावा उसकी दूसरी बेटी का नाम कुंभिनी था. उसकी शादी रावण ने अपने ही छोटे भाई कुंभकर्ण से की. कुछ अन्य क्षेत्रीय कथाओं में रावण की अन्य बेटियों के नाम भी आया लेकिन उनकी संख्या और कहानियां स्पष्ट नहीं हैं.

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अद्भुत रामायण कहती है कि सीता भी रावण और मंदोदरी से ही पैदा हुईं उसकी बेटी थीं , जिसको उसने बहा दिया था. लेकिन इस कथा को मुख्य धारा में स्वीकार नहीं किया जाता. (News18 AI)

सीता को भी क्यों कहते हैं रावण की बेटी
कुछ क्षेत्रीय और लोक कथाओं में दावा किया जाता है कि सीता रावण और मंदोदरी की पुत्री थीं. जब ये भविष्यवाणी हुई कि ये बच्ची रावण के विनाश का कारण बनेगी, तब रावण ने उसे एक पेटी में बंद करके समुद्र में बहा दिया. यह पेटी मिथिला पहुंची, जहां राजा जनक ने उसे पाया. सीता के रूप में पाला. हालांकि ये कथा वाल्मीकि रामायण या रामचरितमानस में नहीं मिलती. मुख्यधारा में मानी भी नहीं जाती.

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रावण की एक और पुत्री कुंभिनी थी, जिसकी शादी उसने अपने ही भाई कुंभकर्ण से कर दी थी, जो दुखी रहती थी. इसका जिक्र रामायण के कई क्षेत्रीय भाषा के संस्करणों में होता है . (News18 AI)

कुंभिनी क्यों दुखी रहती थी
अब आइए कुंभिनी के बारे में जानते हैं. कुछ दक्षिण भारतीय रामायणों और लोककथाओं में कुंभिनी को रावण की पुत्री बताया गया है, जिसका विवाह कुंभकर्ण (रावण के भाई) से हुआ. कुंभिनी को एक बुद्धिमान और धर्मपरायण नारी के रूप में दिखाया गया है, जो अपने पति की लंबी नींद और युद्ध में भागीदारी से दुखी थी.

कुंभकर्ण के युद्ध में मारे जाने के बाद, कुंभिनी का कोई विशेष उल्लेख नहीं मिलता. शायद वह लंका में ही रही होगी. कुछ कथाओं में उसे मंदोदरी के साथ शोक करते हुए दिखाया गया है.

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रावण की एक और बेटी का नाम स्वर्णमछा या स्वर्णमत्स्य था, जिसका जिक्र कंबोडिया और थाईलैंड की रामायण में हुआ है. (News18 AI)

एक और बेटी थी स्वर्ण मत्स्य
रावण की एक बेटी का उल्लेख विभिन्न क्षेत्रीय और विदेशी रामायणों में मिलता है. रावण की इस बेटी का नाम सुवर्णमछा या स्वर्ण मत्स्य था. इसके बारे में थाईलैंड की रामकियेन रामायण और कंबोडिया की रामकेर रामायण में बताया गया है.

उसका शरीर सोने की तरह चमकता था
सुवर्णमछा का शरीर सोने की तरह चमकता था, इसलिए उसे “स्वर्ण जलपरी” भी कहा जाता था. इसका शाब्दिक अर्थ है “सोने की मछली”.इस बेटी का उल्लेख वाल्मीकि रामायण या तुलसीदास के रामचरित मानस में नहीं मिलता, यह केवल कुछ क्षेत्रीय और विदेशी रामायणों में पाया जाता है.

सुवर्णमछा और हनुमानजी की कथा
कथा के अनुसार, जब श्रीराम ने लंका तक समुद्र पर सेतु बनाने के लिए वानर सेना के नल-नील को काम सौंपा था, तब रावण ने अपनी बेटी सुवर्णमछा को इस योजना को विफल करने का आदेश दिया. सुवर्णमछा समुद्र के नीचे जाकर पत्थरों को गायब करने लगी,जिससे सेतु निर्माण में बाधा आई.

उसे हनुमान से प्यार हो गया
हनुमानजी ने जब इसका कारण पता लगाया तो समुद्र के अंदर सुवर्णमछा को देखा. दोनों के बीच युद्ध हुआ. युद्ध के दौरान सुवर्णमछा हनुमानजी के प्रति आकर्षित हो गईं. उनसे प्रेम हो गया.

हनुमानजी ने उसे समझाया कि रावण का काम गलत है. इसके बाद स्वर्ण मत्स्य ने चुराए गए पत्थरों को वापस कर दिया. तब राम सेतु का निर्माण सफलतापूर्वक पूरा हुआ. इस कथा के अनुसार, यदि स्वर्ण मत्स्य को हनुमानजी से प्रेम न होता, तो राम सेतु का निर्माण बाधित हो सकता था. उसने हनुमानजी ने जाहिर किया कि उसे उनसे प्रेम हो गया लेकिन हनुमान ने उसे स्वीकार नहीं किया, क्योंकि वह ब्रह्मचारी थे.

थाईलैंड और कंबोडिया के मंदिरों में रावण की बेटी की प्रतिमाएं
हां, थाईलैंड और कंबोडिया के मंदिरों और अन्य स्थानों पर स्वर्ण मत्स्य की प्रतिमाएं पाई जाती हैं. बैंकाक के वाट फ्रा केओ मंदिर की दीवारों पर रामकियेन की कहानियों को दर्शाने वाले भित्ति चित्रों में हनुमान और स्वर्ण मत्स्य के प्रेम और सहयोग के दृश्य देखे जा सकते हैं.

सौभाग्य की देवी समझी जाती है रावण की बेटी
स्वर्ण मत्स्य की छवियां थाईलैंड में दुकानों और घरों में सौभाग्य लाने वाले आकर्षण के रूप में छोटे कपड़े के स्ट्रीमर्स या फ़्रेमयुक्त चित्रों पर भी दिखाई जाती हैं.

कंबोडिया में अंगकोर वाट की दीवारों पर रामायण की कहानियों को दिखाने वाले नक्काशीदार भित्तिचित्रों में स्वर्ण मत्स्य के दृश्य शामिल हैं.अंगकोर वाट की गैलरी में समुद्र मंथन के दृश्य में मत्स्य रूपी आकृतियां दिखती हैं, जो शायद स्वर्ण मत्स्य का प्रतिनिधित्व करती हैं.

प्रतिमाओं और चित्रों में स्वर्ण मत्स्य को अक्सर एक मत्स्यांगना के रूप में दर्शाया जाता है, जिसका ऊपरी भाग एक सुंदर स्त्री का होता है और निचला भाग मछली का. वह आमतौर पर हनुमान के साथ या अकेले पानी में चित्रित की जाती हैं.

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