Last Updated:July 25, 2025, 20:24 IST
Rasheed Kidwai Article On Phoolan Devi Death Anniversary: पूर्व दस्यु सुंदरी फूलन देवी की 24 साल पहले आज ही के दिन यानी 25 जुलाई 2001 को हत्या कर दी गई थी. साल 1981 के ‘बेहमई हत्याकांड’ से न केवल वो खुद सुर्खिय...और पढ़ें

हाइलाइट्स
फूलन देवी ने शोषण के खिलाफ उठाया हथियार, बनीं ‘दस्यु सुंदरी’.बेहमई कांड से संसद तक, उनकी कहानी बनी मिसाल और विवाद दोनों.2001 में शेर सिंह राणा ने ली हत्या की जिम्मेदारी, बदले की थी बातRasheed Kidwai Article On Phoolan Devi Death Anniversary: ठीक 24 साल पहले आज ही के दिन, यानी 25 जुलाई 2001 को जब फूलन देवी की हत्या हुई, उस समय वो महज 37 साल की थीं. इतनी अल्प आयु में ही उन्होंने इतना कुछ देख लिया था कि एक बारगी के लिए तो सहसा भरोसा नहीं होता है कि किसी की जिंदगी इतनी नाटकीयता से भरी भी हो सकती है. उनके जीवन की पूरी दास्तान किसी एक फिल्मी कहानी से कम नहीं थी और इसीलिए उन पर फिल्म (बैंडिट क्वीन) भी बनी, वह विवादों में भी आई और सुपरहिट भी हुई.
फूलन को समझने के लिए उनकी शुरुआती जिंदगी में झांकना जरूरी है. उप्र में यमुना नदी के किनारे बसे कानपुर देहात जिले की भोगनीपुर तहसील में एक छोटा-सा गांव है गोरहा का पुरवा. इसी गांव के बेहद गरीब मल्लाह परिवार में 10 अगस्त 1963 को फूलन देवी का जन्म हुआ था. फूलन को अपने शुरुआती जीवन में पुतली बाई, बिजली, कुंतला, शीला, कमला, हसीना बेगम, कपूरी और कुसुमा नाइन जैसी महिला डकैतों जैसा ही दर्द झेलना पड़ा. कमोबेश एक जैसे हालात, कम उम्र में शादी-अपहरण, फिर यौन शोषण और अत्याचार उन्हें एक अलग ही दुनिया में ले गए. ऐसे ही हालात से जूझकर फूलन देवी भी आखिरकार दस्यु सरगना बन गईं. लेकिन कई मायनों में उनकी जिंदगी बाकी महिला दस्यु सुंदरियों से अलग रही. जहां बाकी के लिए जेल और फिर एनकाउंटर में अंत ही नियति थी, वहीं फूलन का स्टारडम सिर चढ़कर बोला.
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शोषण के पन्नों से भरे रहे शुरुआती अध्याय
फूलन की दास्तान के शुरुआती अध्याय केवल शोषण के पन्नों से भरे हुए हैं. जॉन आर्कविला की किताब ‘इंसर्जेंट, रेडर्स एंड बैंडिट्स’ में जगह पाने वाली फूलन देवी इकलौती महिला डकैत थीं. इसमें उन्होंने लिखा है कि फूलन की शादी उनसे तिगुनी उम्र के शख्स पुत्तीलाल मल्लाह के साथ कर दी गई. वह फूलन का शारीरिक और यौन शोषण करता था. उसके अत्याचारों से तंग आकर फूलन भाग निकलीं और डकैतों के गैंग से जुड़ गईं. हालांकि शादी तोड़कर भागने से उनकी किस्मत नहीं बदली. फूलन अपनी आत्मकथा में भी बताती हैं कि गैंग के ही साथी डकैत बाबू गुर्जर ने उनके साथ बर्बरता की और दुष्कर्म किया. बाद में गुर्जर को उसके नंबर-2 विक्रम मल्लाह ने मार डाला और फिर फूलन विक्रम के साथ ही रहने लगीं. अगले करीब 12 महीनों में इस गैंग ने उप्र और मध्य प्रदेश में आठ हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले चंबल में लूट, अपहरण और हत्या की अनेक घटनाओं को अंजाम दिया.
प्रतिशोध की आग में तपकर बनीं ‘दस्यु सुंदरी’!
फूलन के जीवन में पहले भी कोई फूल नहीं थे. लेकिन कांटों से भरी उनकी जिंदगी में संकट तब और बढ़ गया, जब लालाराम और श्रीराम नामक दो दस्यु भाइयों ने एक दिन विक्रम मल्लाह को गोलियों से भून डाला. ये दोनों डकैत भी उसी के गिरोह में थे और उच्च जाति से ताल्लुक रखते थे. इसके बाद फूलन को घसीटकर बेहमई गांव ले जाना, उनके साथ दुष्कर्म करना और फिर गांव में निर्वस्त्र घुमाने की घटना ने उस प्रतिशोध की आग को जन्म दिया, जिसका नतीजा अंतत: ‘बेहमई हत्याकांड’ के रूप में निकला. 14 फरवरी, 1981 को जिस समय फूलन ने 22 ठाकुरों को गोलियों से भून डाला था. उस समय उन्होंने अपनी उम्र के 18 साल भी पूरे नहीं किए थे. अलबत्ता, बेहमई नरसंहार ने उन्हें एक बड़ी डकैत और ‘दस्यु सुंदरी’ का तमगा दिला दिया था. उप्र और मध्य प्रदेश दोनों राज्यों की पुलिस के लिए वो सबसे बड़ी ‘मोस्ट वॉन्टेड’ बन गई थीं. इसी कांड के बाद उनके शोषण की पूरी दास्तान भी सामने आ सकी.
अर्जुन सिंह ने करवाया था सरेंडर
1982 के बाद आखिरी छह महीनों में फूलन पर 48 आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए. इनमें अनगिनत हत्याएं, लूटपाट, आगजनी और फिरौती के लिए अपहरण जैसी घटनाएं शामिल थीं. बताया जाता है कि अर्जुन सिंह ने भिंड के तत्कालीन पुलिस सुपरिटेंडेंट राजेंद्र चतुर्वेदी को बुलाकर उन्हें फूलन देवी को आत्मसमर्पण के लिए राजी करने की जिम्मेदारी सौंपी थी. चतुर्वेदी तुरंत मुखबिरों और सामाजिक तथा धार्मिक नेताओं के जरिए फूलन तक पहुंचने की कोशिश में जुट गए. आखिरकार, 6 सितंबर 1982 को वे फूलन से मिलने में कामयाब रहे. 12 फरवरी 1983 को फूलन देवी ने आत्मसमर्पण कर दिया.
भिंड में सार्वजनिक आत्मसमर्पण के दौरान स्तंभकार सुनील सेठी भी मौजूद थे. उन्होंने इंडिया टुडे पत्रिका के लिए लिखा, ‘उसके बमुश्किल पांच फीट के छोटे कद और सूने चेहरे को देखकर कोई सोच भी नहीं सकता कि इस महिला से दो राज्यों की एक बड़ी आबादी थरथर कांपती है. ये कल्पना करना भी मुश्किल है कि मैली-कुचैली और घबराई-सी नजर आ रही यह लड़की बंदूक चलाती होगी. उसकी कलाइयां इतनी नाजुक हैं कि लगता है कि वो इसे उठा भी नहीं सकती.’ फूलन देवी को बाद में ग्वालियर जेल ले जाया गया, जहां वो 9 साल तक रहीं. 1992 में उन्हें दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल भेज दिया गया.
मुलायम ने पहुंचाया संसद में
एक नेता (अर्जुन सिंह) ने फूलन के आत्मसमर्पण में अहम भूमिका निभाई तो दूसरे नेता (यूपी के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव) ने उनकी सियासी पारी को आकार दिया. उन्होंने 1994 में पैरोल पर जेल से बाहर आने के बाद उनके खिलाफ दर्ज सभी मामले वापस ले लिए और उन्हें समाजवादी पार्टी में शामिल कर लिया. फिर, 1996 के आम चुनावों में भदोही संसदीय सीट से पार्टी उम्मीदवार बनाया. एक पत्रकार के तौर पर यह लेखक भी फूलने को सुनने के लिए भारी भीड़ जुटने का गवाह रहा है. उन्हें सुनने और बस एक झलक पाने के लिए अनेक महिलाएं कई किलोमीटर पैदल चलकर आती थीं. वो रैलियों में पूरी हिम्मत के साथ अपनी आपबीती जनता के सामने रखतीं. जब फूलन खुद पर हुए अत्याचारों के बारे में बतातीं तो भीड़ में बहुत से लोग अपने आंसू नहीं रोक पाते थे.
फूलन ने 1996 में जीत हासिल की लेकिन संयुक्त मोर्चा सरकार गिरने के बाद 1998 में फिर चुनाव हुए तो उन्हें हार का सामना करना पड़ा. हालांकि पूर्व दस्यु सुंदरी ने 1999 में पुन: वापसी की और 13वीं लोकसभा के लिए चुनी गईं. इसे नियति का एक और खेल ही माना जाएगा कि कभी कानून के साथ आंख-मिचौली करने वाली फूलन देवी अब स्वयं एक ‘कानून निर्माता’ (संसद सदस्य) बन गई थीं.
एक और ‘बदला’, अब फूलन की हत्या
25 जुलाई 2001 को संसद का मानसून सत्र चल रहा था. फूलन दोपहर का खाना खाने और थोड़ा आराम करने के इरादे से घर लौटीं. दोपहर करीब 1.30 बजे जैसे ही वह अपनी कार से उतरकर आवास की ओर बढ़ीं, फुर्ती के साथ आए तीन हमलावरों ने उन पर एक के बाद एक नौ गोलियां दाग दीं. फूलन की मौके पर ही मौत हो गई. हत्या को अंजाम देने के दो दिन बाद शेर सिंह राणा ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया और अपना गुनाह कबूल लिया. राणा ने कहा कि वह 1981 के बेहमई नरसंहार का बदला लेना चाहता था, जिसमें बैंडिट क्वीन ने 22 ठाकुरों की हत्या कर दी थी.
मर्सिडीज लिमोजिन में खरबूजे का किस्सा
फूलन देवी की कहानी उनकी पेरिस यात्रा के जिक्र के बिना अधूरी है. वरिष्ठ पत्रकार और सेंटर फॉर हिमालयन एशिया स्टडीज एंड इंगेजमेंट के चेयरमैन विजय क्रांति फ्रांस दौरे पर फूलन के साथ ही थे. उनकी आत्मकथा लिखने वाले फ्रेंच पब्लिशर मेसर्स फिक्सोट के लिए विजय क्रांति दुभाषिए का काम कर रहे थे.
जब वे दोनों पेरिस पहुंचे तब शहर घुमाने के लिए उनके लिए छह दरवाजों वाली मर्सिडीज लिमोजिन की व्यवस्था की गई. एक खूबसूरत युवा फ्रांसीसी ड्राइवर उन्हें लेकर शहर घुमाने निकला. फूलन को सड़क किनारे एक दुकान में खरबूजे नजर आ गए. क्रांति बताते हैं, “वह एकदम बच्चों की तरह जिद करने लगी. उसने ड्राइवर को कार रोककर खरबूजा लाने को कहा… ड्राइवर ने अपने कॅरियर में शायद पहली बार किसी मेहमान को आलीशान लिमोजिन की लेदर सीट पर उकड़ू बैठे देखा होगा. वह स्विस चाकू से खरबूजा काट रही थी और उसका रस बहकर सीट और उससे नीचे गिर रहा था. कमांडो जैसी फुर्ती दिखाकर ड्राइवर ने डैशबोर्ड से एक साफ तौलिया निकाला और फूलन के सामने बिछा दिया तथा खरबूजा उस पर रख दिया. लेकिन फूलन खुद में मगन एक भारतीय गृहिणी की तरह यह कहते हुए अड़ी रही, ‘अरे भैया, इसकी जरूरत नहीं है. हम खरबूजा ऐसे ही खाते हैं अपने देश में.’”
रशीद किदवई देश के जाने वाले पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. वह ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के विजिटिंग फेलो भी हैं. राजनीति से लेकर हिंदी सिनेमा पर उनकी खास पकड़ है. 'सोनिया: ए बायोग्राफी', 'बैलट: टेन एपिस...और पढ़ें
रशीद किदवई देश के जाने वाले पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. वह ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के विजिटिंग फेलो भी हैं. राजनीति से लेकर हिंदी सिनेमा पर उनकी खास पकड़ है. 'सोनिया: ए बायोग्राफी', 'बैलट: टेन एपिस...
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