Last Updated:June 15, 2025, 22:56 IST

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि सादे कपड़ों में पुलिस कर्मियों द्वारा सिविलियन व्हीकल को घेरना और उसमें सवार व्यक्ति पर गोली चलाना सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने या वैध गिरफ्तारी करने से संबंधित आधिकारिक कर्तव्यों का हिस्सा नहीं माना जा सकता. अदालत ने यह टिप्पणी पंजाब के नौ पुलिसकर्मियों की उस याचिका को खारिज करते हुए की, जिसमें उन्होंने 2015 के कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में हत्या के आरोपों को खारिज करने की मांग की थी.
जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने घटना के बाद कार की नंबर प्लेट हटाने का कथित आदेश देने के लिए तत्कालीन पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) परमपाल सिंह के खिलाफ सबूत नष्ट करने के आरोप को भी बहाल कर दिया. अदालत ने कहा, “यह माना गया है कि आधिकारिक कर्तव्य की आड़ में न्याय को विफल करने के इरादे से किए गए कार्य नहीं किए जा सकते.” साथ ही अदालत ने कहा कि डीसीपी सहित आरोपी पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी की जरूरत नहीं है.
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किए गए 29 अप्रैल के आदेश में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 20 मई, 2019 के फैसले को बरकरार रखा गया, जिसमें नौ आरोपी कर्मियों के खिलाफ मामला रद्द करने से इनकार कर दिया गया था. इस तर्क को खारिज करते हुए कि शिकायत को आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 197 के तहत प्रतिबंधित किया गया था – जिसके तहत लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता होती है – अदालत ने कहा कि इस मामले में ऐसी सुरक्षा लागू नहीं थी.
राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h...और पढ़ें
राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h...
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New Delhi,Delhi