पाकिस्तान की स्कूली किताबों में अकबर को कहा जाता है विलेन और औरंगजेब को हीरो

4 hours ago

भारत में एनसीईआरटी की क्लास 8 की इतिहास की नई किताब में अकबर और औरंगजेब के शासनकाल के नजरिये में बदलाव किया गया है. इस पर विवाद भी शुरू हो गया है. किताब में अकबर के शासन को “अन्य धर्मों के लिए क्रूरता और सहिष्णुता का मिश्रण” बताया गया है तो औरंगजेब को धार्मिक कट्टर नीति वाला शासक बताया गया है. पाकिस्तान की स्कूली किताबों में औरंगजेब की तो खूब तारीफ होती है जबकि अकबर को कोसा जाता है. बांग्लादेश में उल्टा है.

एनसीईआरटी की कक्षा 8 की किताब में अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीतियों को रेखांकित किया गया है, जैसे जजिया हटाना और दीनी-इलाही की शुरुआत. किताब में औरंगजेब को जहां धार्मिक तौर पर कट्टर शासक बताया गया तो ये भी लिखा गया कि उसने गैर मुस्लिमों पर फिर जजिया कर लागू किया. कई शहरों में मंदिर, गुरुद्वारे आदि तुड़वाए. किताब में बाबर, अकबर, औरंगजेब जैसे मुगल शासकों की ‘क्रूरता’, मंदिर तोड़ने, दमनकारी नीतियों और युद्ध संबंधी हिंसा पर विस्तार से लिखा गया है.

भारत के कई इतिहासकारों और शिक्षा विशेषज्ञों द्वारा इन बदलावों पर आलोचना की गई है. एक पक्ष मानता है कि किताबों में ‘मुगल’ और दिल्ली सल्तनत से जुड़े हिस्से हटाने या बदलने से इतिहास की एकतरफा या राजनीतिक व्याख्या बच्चों को सिखाई जा रही है. दूसरे पक्ष का तर्क है कि ‘अत्याचार’ एवं ‘सहिष्णुता’ – दोनों को स्वीकारते हुए बच्चों को आलोचनात्मक सोच सिखाने का प्रयास है.

पाकिस्तान की स्कूली किताबों में औरंगजेब नायक

वैसे भारत और पाकिस्तान दोनों में मुगलों खासकर अकबर और औरंगज़ेब को लेकर स्कूली किताबों में लंबे समय से विवाद और वैचारिक टकराव रहा है. पाकिस्तान की स्कूली किताबों में औरंगज़ेब को नायक की तरह पेश किया गया है. उसे “इस्लाम का रक्षक”, एक न्यायप्रिय और धार्मिक बादशाह के रूप में दिखाया गया है. उन्हें हिन्दू विरोधी नहीं बल्कि “शुद्ध इस्लामी शासन” लागू करने वाला शासक बताया जाता है. जज़िया कर को “इस्लामी परंपरा की पुनर्स्थापना” के रूप में दिखाया जाता है.

पाकिस्तान की पाठ्यपुस्तकों में औरंगजेब को इस्लाम के नायक के तौर पर बताया गया है.

पाकिस्तान के इतिहास लेखन में औरंगजेब को अक्सर “मुग़ल साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली सुन्नी शासक” बताया जाता है. पाकिस्तान में उसे इस्लाम का रक्षक बताया जाता है. पाकिस्तान में इतिहास को अक्सर इस्लामी परिप्रेक्ष्य से पढ़ाया जाता है. वहां की स्कूली किताबों में औरंगजेब के बारे में प्रमुख बातें

– उसे एक पवित्र और ईमानदार मुस्लिम शासक बताया जाता है, जिसने इस्लामिक कानून (शरिया) को लागू किया.
– उसकी सादगी और धार्मिकता पर ज़ोर दिया जाता है (जैसे कि कुरान की नकल करके अपने हाथों से पैसे कमाना).
– जज़िया कर और मंदिर तोड़ने जैसे कामों को “इस्लामिक राज्य के नियमों का पालन” बताकर सही ठहराया जाता है.
– उसकी दक्षिण भारत की विजयों को “इस्लाम का प्रसार” बताया जाता है, हालांकि इन युद्धों ने मुग़ल साम्राज्य को कमज़ोर भी किया.

अकबर वहां की किताबों में विलेन

पाकिस्तान की स्कूली किताबें अकबर की आलोचना करती हुई दीखती हैं. इन किताबों में आमतौर पर अकबर को धार्मिक दृष्टिकोण से नकारात्मक रूप में दिखाया जाता है. अकबर के दीन-ए-इलाही को “इस्लाम से विचलन” कहा जाता है. उसे “धर्मनिरपेक्ष लेकिन गैर-इस्लामी” शासक कहा गया है. उसकी धार्मिक सहिष्णुता को कई बार इस्लामी पहचान को नुकसान पहुंचाने वाला माना गया.

– दीन-ए-इलाही को “इस्लाम विरोधी” बताया गया है. अकबर ने 1582 में एक नया धार्मिक दर्शन “दीन-ए-इलाही” शुरू किया था जो इस्लाम, हिंदू, जैन, ईसाई आदि धर्मों के तत्वों का समावेश करता था. पाकिस्तान की किताबों में इसे इस्लाम से “विचलन” या “गुमराही” बताया जाता है.
– उसे एक ऐसा शासक दिखाया जाता है जिसने “काफिरों के साथ मिलकर इस्लाम को कमजोर किया”.

अकबर को इस्लामी पहचान को नष्ट करने वाला शासक बताया

किताबों में बताया जाता है कि अकबर ने नमाज़ पढ़ना बंद कर दिया, इस्लामी नियमों को दरकिनार किया और उलमा की सलाह को नकार दिया. उसे ऐसे बादशाह के रूप में दिखाया गया है जिसने “इस्लामिक पहचान को नष्ट करने की कोशिश की.”

पाकिस्तान की स्कूली किताबों में अकबर को जमकर कोसा गया है. ये कहा गया कि उसने इस्लाम को खत्म करने की कोशिश की. (विकी कामंस)

हिंदू राजाओं से मेल-जोल और शादियों पर भी आलोचना

अकबर ने राजपूतों से वैवाहिक संबंध बनाए और हिंदू सरदारों को ऊंचे पद दिए, जैसे राजा मानसिंह. पाकिस्तान की किताबों में इसे “इस्लामी सत्ता के अपमान” और “हिंदुओं से जरूरत से ज़्यादा समझौता करने की नीति” के रूप में लिखा गया. उसे कट्टरपंथी विचारधारा से जुड़ी शिक्षा में “नरम और धर्महीन” बताया जाता है.
अकबर इसलिए पाकिस्तान को पसंद नहीं आता, क्योंकि उसने इस्लामी कट्टरपंथ को नियंत्रित करने की कोशिश की. “सांस्कृतिक मिश्रण” वाली भारतीय पहचान को बढ़ावा दिया.

अकबर को भटका हुआ बताया

9वीं और 10वीं कक्षा की पाकिस्तान स्टडीज की किताबों में अकबर को आमतौर पर “गुमराह और धर्म से भटका हुआ” बताया गया. सिंध बोर्ड और पंजाब बोर्ड की किताबों में लिखा गया

“अकबर ने इस्लाम को कमजोर किया. एक नया धर्म बनाने की कोशिश की जिससे मुसलमानों में भ्रम फैल गया”

पाकिस्तान की ही एक अन्य स्कूली किताब में कहा गया,

“उसने इस्लाम के खिलाफ अपने मन की बातें फैलाईं और दीन-ए-इलाही जैसे फितने को जन्म दिया.”

बांग्लादेश की पाठ्यपुस्तकों में क्या पढ़ाया जाता है

अकबर के बारे में
– अकबर को एक सहिष्णु और कुशल शासक के रूप में बताया जाता है.
– उसकी धार्मिक सहिष्णुता (सुलह-ए-कुल) और हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने की नीतियों की तारीफ की जाती है.
– राजपूतों के साथ संबंध और दीन-ए-इलाही जैसी नीतियों का उल्लेख होता है.
– बंगाल (तत्कालीन सूबा) में उसके प्रशासनिक सुधारों, जैसे टोडरमल की भू-राजस्व प्रणाली, को महत्व दिया जाता है.

औरंगजेब की आलोचना होती है
– औरंगजेब को एक कट्टर सुन्नी मुस्लिम शासक के रूप में दिखाया जाता है
– उसके जज़िया कर और मंदिरों के विध्वंस की आलोचना की जाती है.
कुछ पाठ्यपुस्तकों में उसे कठोर न्यायप्रिय शासक भी बताया जाता है, लेकिन उसकी धार्मिक नीतियों को अक्सर असहिष्णु माना जाता है.

बांग्लादेश के इतिहास में अकबर को “महान” माना जाता है, जबकि औरंगजेब विवादास्पद है. इस्लामी पहचान के कारण औरंगजेब को कुछ ग्रंथों में धार्मिक शासक के रूप में भी दिखाया जाता है, हालांकि उसकी नीतियों की आलोचना भी होती है.

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