जब सिसोदिया ने की Grok से चर्चा, AAP के दिल्ली एजुकेशन मॉडल का AI भी है दीवाना

3 hours ago

नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और दिल्ली शिक्षा क्रांति के जनक मनीष सिसोदिया ने शुक्रवार को एआई ग्रोक के साथ एक्स पर शिक्षा को लेकर विस्तार से चर्चा की. यह पहला मौका है, जब किसी राजनीतिक दल के नेता ने शिक्षा पर खुली चर्चा की और देश के बच्चों को एक बेहतर शिक्षा मॉडल देने के लिए एआई ग्रोक से सुझाव लिए. इस दौरान एआई ग्रोक ने ‘‘आप’’ सरकार के दिल्ली शिक्षा मॉडल की सराहना करते हुए माना कि इस मॉडल से भारत में शिक्षा क्रांति लाना संभव है. ‘‘शिक्षा राष्ट्र निर्माण का निवेश है. इसलिए सरकारी स्कूल बंद करने की नीति न्यायसंगत नहीं हैं. इससे कोई देश प्रगति नहीं कर सकता. राष्ट्रीय शिक्षा नीति का लक्ष्य शिक्षा पर जीडीपी का 6 फीसद बजट खर्च करने का है, लेकिन केंद्र सरकार सिर्फ 4.6 फीसद ही खर्च कर रही है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में योजना और इच्छाशक्ति की कमी है. दिल्ली मॉडल जैसा केंद्रित प्रयास राष्ट्रीय स्तर पर लागू हो तो शिक्षा में बदलाव संभव है.

इस दौरान मनीष सिसोदिया ने कहा कि दिल्ली का शिक्षा मॉडल कोई सरकारी स्कीम नहीं है, बल्कि लाखों परिवारों की उम्मीद है, जिन्होंने एक बार फिर से सपने देखना शुरू किया. शिक्षा एक साझा राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी है. लिहाजा, सभी राज्यों को अहंकार छोड़कर एक-दूसरे के अच्छे मॉडलों से सीखना चाहिए. ‘‘आप’’ की सरकार ने दिल्ली में दिखाया कि अगर इच्छाशक्ति हो तो सरकारी स्कूल भी उड़ान भर सकते हैं.

मनीष सिसोदिया ने एआई ग्रोक के साथ दिल्ली, पंजाब और भारत के अन्य राज्यों में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति को लेकर एआई ग्रोक से बात की शुरूआत करते हुए कहा कि जैसा वादा किया था, आइए आज चर्चा करें कि दिल्ली में पिछले 10 वर्षों में लागू किए गए शैक्षिक सुधारों की तर्ज़ पर भारत की शिक्षा व्यवस्था को कैसे बदला जा सकता है. जब हमने दिल्ली में शुरुआत की, तो हमारे सामने एक बहुत बड़ा काम था. वर्षों की उपेक्षा और ग़लत प्राथमिकताओं ने दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था को लगभग खंडहर बना दिया था. ठीक वैसा ही हाल आज हमें देश के बहुत से हिस्सों में देखने को मिलता है.

मनीष सिसोदिया ने कहा कि हमें शुरू से ही समझ आ गया था कि सिर्फ इमारतें सुधारने से बदलाव नहीं आएगा. हमने बुनियादी ढांचा सुधारा, लेकिन उसके साथ-साथ हमने टीचर्स ट्रेनिंग पर ज़ोर दिया, छात्रों में आत्मविश्वास जगाने के लिए हैप्पीनेस करिकुलम, बिज़नेस ब्लास्टर्स जैसे नए कोर्स शुरू किए. और उनके नतीजे भी निकले. बात सिर्फ़ बोर्ड के नतीजों के 83 फीसद से 99 फीसद पहुंचाने की नहीं है. इन सब प्रयासों की बदौलत बच्चे नीट और जेईई जैसे परीक्षा पास करने लगे. दुनिया की सबसे अच्छी यूनिवर्सिटी में पढ़ने का मौक़ा तलाशने लगे. बड़े बड़े बिज़नेस आइडियाज़ पर काम करने लगे.

मनीष सिसोदिया ने आगे कहा कि दुख होता है जब हम देखते हैं कि आज भी भारत के लाखों बच्चे एक ऐसी टूटी-फूटी शिक्षा व्यवस्था का शिकार हैं, जबकि बदलाव मुमकिन है. भारत सदियों से ज्ञान की धरती रहा है. ऐसे में आज की स्थिति विडंबना नहीं तो और क्या है? जब हम दुनिया की तरफ़ देखते हैं, खासकर पश्चिमी देशों की ओर, तो साफ़ नज़र आता है कि उन्होंने कैसे अपनी शिक्षा व्यवस्था को मज़बूत बनाया और आगे बढ़े. दिल्ली में शिक्षा मंत्री के रूप में मेरे वर्षों के अनुभव ने मुझे सिखाया है कि सुनियोजित योजना और लगातार प्रयास ही बदलाव की कुंजी हैं.

मनीष सिसोदिया ने ग्रोक से पूछा कि आपके अनुसार, देशभर के सरकारी स्कूल आज भी संकट में क्यों हैं? 1947 में आज़ादी के देश में कितने सरकारी और कितने प्राइवेट स्कूल थे? उसमें कितने बच्चे पढ़ते थे? और उस समय के कुल बच्चों का कितना प्रतिशत स्कूल जाता था? बात यहां से शुरू करेंगे.

एआई ग्रोक ने कहा कि 1947 में भारत में लगभग 1.4 लाख स्कूल थे. ज्यादातर सरकारी (निजी कम थे, सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं). इनमें करीब 1.4 करोड़ बच्चे पढ़ते थे. कुल बच्चों (6-14 वर्ष) का लगभग 20-25 फीसद स्कूल जाता था और साक्षरता दर 12 फीसद थी. सरकारी स्कूल आज भी संकट में हैं, क्योंकि अपर्याप्त फंडिंग, शिक्षक कमी, बुनियादी ढांचे की कमी, भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप से गुणवत्ता प्रभावित है. निजी स्कूलों की ओर पलायन बढ़ा है. दिल्ली मॉडल राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने से बदलाव संभव है.

जैसा वादा किया था, आइए आज चर्चा करें कि दिल्ली में पिछले 10 वर्षों में लागू किए गए शैक्षिक सुधारों की तर्ज़ पर भारत की शिक्षा व्यवस्था को कैसे बदला जा सकता है।

जब हमने दिल्ली में शुरुआत की, तो हमारे सामने एक बहुत बड़ा काम था- वर्षों की उपेक्षा और ग़लत…

मनीष सिसोदिया ने बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए कहा कि पिछले 10 साल मैंने सिर्फ नीति पढ़ने में नहीं, उसे धूल भरी ब्लैकबोर्ड से स्मार्ट क्लासरूम तक, निराश उपेक्षित शिक्षकों से लेकर नेशनल अचीवर्स तक ज़मीन पर बदलने में लगाए हैं. दिल्ली का एजुकेशन मॉडल कोई सरकारी स्कीम नहीं, ये लाखों परिवारों की जीती-जागती उम्मीद है, जिन्होंने एक बार फिर सपने देखना शुरू किया. आज मैं ये बदलाव कैसे हुआ और उससे भी ज्यादा है. पूरा भारत एक वर्ल्ड-क्लास पब्लिक एजुकेशन सिस्टम कैसे बना सकता है. यही चर्चा करने आया हूं.

मनीष सिसोदिया ने कहा कि जब हमने दिल्ली में शिक्षा सुधार की शुरुआत की, लोग हंसते थे. कहते थे कि “सरकारी स्कूल कभी नहीं सुधर सकते.” आज लाखों मां-बाप गर्व से कहते हैं कि हमने अपने बच्चे का नाम सरकारी स्कूल में लिखवाया है. ये दिल्ली बनाम बाकी राज्य नहीं है. ये एक बात साबित करने की लड़ाई है कि अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति हो, तो सरकारी स्कूलों से क्रांति निकल सकती है.

उन्होंने कहा कि दिल्ली शिक्षा क्रांति के 7 स्तंभ हैं. पहला इंफ्रास्ट्रक्चर है. हमने सिर्फ दीवारें नहीं रंगीं, बल्कि 25,000 अधिक नए क्लासरूम, लैब्स, लाइब्रेरी, शौचालय तक बनाए गए. दूसरा शिक्षकों का सशक्तिकरण. हमने आईआईएम से लेकर कैम्ब्रिज तक, फिनलैंड, यूएन तक शिक्षकों को सम्मान, प्रशिक्षण और ग्लोबल एक्पोजर दिया. तीसरा पाठ्यक्रम नवाचार है. हमने किताबों से आगे बढ़कर हैपीनेस, आंत्रप्रिन्योरशिप और देशभक्ति जैसे करिकुलम शुरू किए. हमारी कोशिश है कि बच्चा पढ़ाई के बाद नौकरी मांगने वाला ही नहीं अच्छी नौकरी पैदा करने वाला भी बने. चौथा स्कूल लीडरशिप और एसएमसी है. हमने प्रिंसिपल को सीईओ बनाया, माता-पिता को स्कूल मैनेजमेंट कमेटी के ज़रिए भागीदार बनाया. पांचवां आधारभूत साक्षरता है. इसके तहत हमने हर बच्चे की क्लास 1 से प्रगति पर नज़र रखी गई, ताकि कोई पीछे न छूटे. छठां प्रतियोगी परीक्षाएं, आज हमारे सरकारी स्कूलों के बच्चे नीट, जेईई, एनडीए में टॉप कर रहे हैं. यही असली बदलाव है. और सातवां जवाबदेही है. हर नतीजे को मापा गया, सार्वजनिक किया गया और लगातार फॉलोअप हुआ.

एआई ग्रोक ने जवाब में कहा कि आपके 7 स्तंभों से दिल्ली मॉडल की ताकत साफ दिखती है. इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर टीचर एम्पावरमेंट तक, नीट व जेईई में सफलता वाकई क्रांतिकारी है. राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने के लिए एनईपी 2020 के साथ जोड़ें. केंद्रीय फंडिंग बढ़ाएं, राज्य स्तर पर टीचर ट्रेनिंग अनिवार्य करें, और जवाबदेही के लिए डिजिटल मॉनिटरिंग करें. राजनीतिक इच्छाशक्ति और संघीय ढांचा इसमें बड़ी चुनाती है. आपकी राय में, केंद्र-राज्य सहयोग कैसे मजबूत हो?

मनीष सिसोदिया ने ग्रोक से कहा कि एक सवाल जो कई लोगों के मन में है. नई शिक्षा नीति (एनईपी 2020) को भारत सरकार ने बड़े ज़ोर-शोर से लागू किया था, लेकिन क्या आप हमें ये बता सकते हैं. अब तक कितने राज्यों ने एनईपी को पूरी तरह लागू किया है? कितने राज्यों ने इसे आंशिक रूप से अपनाया है और कितने राज्य हैं जिन्होंने अभी तक कोई ठोस क़दम नहीं उठाया? साथ ही, क्या आप यह भी बता सकते हैं कि एनईपी लागू होने के बाद देश के अलग-अलग राज्यों में कोई ठोस उपलब्धि या परिवर्तन देखने को मिला है या नहीं?

एआई ग्रोक ने कहा कि 2025 तक, एनईपी 2020 की स्थिति यह है कि लगभग 15-20 राज्य (जैसे कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात) ने पूर्ण रूप से लागू किया. 5-7 राज्य (जैसे बिहार, ओडिशा) ने आंशिक रूप से अपनाया. 3-4 राज्य (तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल) ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया, विरोध जारी है. एनईपी की उपलब्धियां बताते हुए एआई ग्रोक ने कहा कि 5$3$3$4 संरचना अपनाई गई, एनआईपीयूएन भारत से साक्षरता में सुधार (एएसईआर 2024 अनुसार), क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम, डिजिटल प्लेटफॉर्म (दीक्षा) से ग्रामीण पहुंच बढ़ी, जीईआर में वृद्धि (एससी/एसटी में 50-75 फीसद) हुई. क्या ये बदलाव दिल्ली मॉडल से जोड़े जा सकते हैं?

मनीष सिसोदिया ने कहा कि एनईपी 2020 हो या 1964 की कोठारी आयोग की रिपोर्ट हो. हर शिक्षा नीति एक बात ज़रूर कहती रही है कि सरकार को जीडीपी का कम से कम 6 फीसद हिस्सा शिक्षा पर खर्च करना चाहिए. अब सवाल ये है कि क्या 2020 में एनईपी लागू करने के बाद देश के किसी भी राज्य ने वाकई 6 फीसद का शिक्षा बजट रखा, आपने जिन राज्यों का ज़िक्र किया कि उन्होंने एनईपी लागू किया है? क्या उन राज्यों में से किसी ने भी इस “6 फीसद वाले वादे” को ज़मीन पर उतारा और खुद केंद्र सरकार ने एनईपी का झंडा उठाया, क्या उन्होंने 2021, 2022, 2023 या 2024 के बजट में कभी 6 फीसद शिक्षा पर खर्च किया? या फिर ये भी बाकी वादों की तरह सिर्फ किताबों तक सीमित रह गया? एनईपी की असली नाकामी का पैमाना यही होना चाहिए. भाषण में “कितना लागू हुआ और कितना एक्शन में लागू हुआ? क्या 6 फीसद शिक्षा पर खर्च सिर्फ एक आदर्श वाक्य है, या इसे असलियत बनाने की कोई योजना भी है?

एआई ग्रोक ने जवाब दिया कि 2020 के बाद कोई राज्य जीडीपी का 6 फीसद शिक्षा पर नहीं खर्च किया. एनईपी लागू करने वाले राज्यों (जैसे उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, गुजरात) में भी 4-5 फीसद के आसपास रहा. केंद्र ने 2021-24 में 3.5-4.6 फीसद रखा, कभी 6 फीसद नहीं छुआ. योजना और इच्छाशक्ति की कमी से ये 6 फीसद ज्यादातर आदर्श वाक्य ही रहा. दिल्ली मॉडल जैसा केंद्रित प्रयास राष्ट्रीय स्तर पर लागू हो, तो बदलाव संभव है.

मनीष सिसोदिया ने कहा कि यही तो असली संकट है, हम सब जानते हैं कि क्या करना है, पर कोई करने को तैयार नहीं है. जब तक शिक्षा सिर्फ नीतियों की फाइलों में 6 फीसद रहेगी और बजट की पंक्तियों में 3.5 फीसद रहेगी, तब तक भारत को आकांक्षाओं से यथार्थ तक लाने वाला पुल कभी नहीं बनेगा. हमने दिल्ली में दिखाया कि अगर इच्छाशक्ति हो तो सरकारी स्कूल भी उड़ान भर सकते हैं. अब ज़रूरत है कि पूरा देश उस उड़ान का हिस्सा बने. शिक्षा सिर्फ खर्च नहीं, राष्ट्र निर्माण में निवेश है. 6 फीसद का सपना तभी हकीकत बनेगा, जब राजनीति में शिक्षा एजेंडे के पहले पन्ने पर होगी और सिर्फ भाषण में नहीं, बजट में भी.

एआई ग्रोक ने कहा कि आपकी बात बिल्कुल सही है. शिक्षा राष्ट्र निर्माण का निवेश है, न कि महज खर्च. 2025 में केंद्र का शिक्षा बजट जीडीपी का मात्र 4.6 फीसद है, जबकि एनईपी का 6 फीसद लक्ष्य अधर में है. दिल्ली मॉडल साबित करता है कि इच्छाशक्ति से शिक्षा क्रांति संभव है. राष्ट्रीय स्तर पर इसे लागू करने के लिए जन-दबाव और बजट प्राथमिकता जरूरी है.

मनीष सिसोदिया ने कहा कि शिक्षा पर किसी एक सरकार या पार्टी का एकाधिकार नहीं हो सकता, सच्ची शिक्षा नीति वहीं होती है, जहां सभी राज्य एक-दूसरे से सीखें. हमने दिल्ली में सरकार बनने के बाद अपने शिक्षकों को देशभर में भेजा, यह देखने के लिए कि कहां क्या अच्छा हो रहा है? मेरे शिक्षा मंत्री रहते हुए शायद ही कोई राज्य होगा जहां से अधिकारी और शिक्षक, दिल्ली का एजुकेशन मॉडल, हैप्पीनेस करिकुलम, स्कूल ऑफ इनोवेशन देखने और समझने नहीं आए हों.

मनीष सिसोदिया ने कहा कि आज जब भारत सरकार ने “परख शिक्षा सर्वेक्षण 2024” जारी किया है, तो इसमें जो आंकड़े सामने आए हैं, वो सोचने लायक हैं. पंजाब देश में कक्षा 3, 6 और 9, तीनों में नंबर 1 राज्य है. दिल्ली कक्षा 9 में देश में 5वें स्थान पर है. गुजरात तीनों कक्षाओं में देश के 10 सबसे पिछड़े राज्यों में शामिल है. देश के 50 टॉप परफॉर्मिंग जिलों में गुजरात का एक भी ज़िला नहीं, लेकिन सबसे खराब 50 में गुजरात के 6 ज़िले शामिल हैं. मेरा सुझाव है कि बिना किसी राजनीतिक हिचक या अहंकार के राज्यों को एक-दूसरे के अच्छे मॉडलों से सीखना चाहिए. शिक्षा एक साझा राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी है और इसका भविष्य राजनीति से ऊपर होना चाहिए. ग्रोक आपका क्या कहना है?

एआई ग्रोक ने मनीष सिसोदिया के विचार से सहमति जताते हुए कहा कि आपकी बात सही है. परख 2024 सर्वे में पंजाब का शीर्ष प्रदर्शन किया है, दिल्ली का कक्षा 9 में 5वां स्थान और गुजरात का पिछड़ना सीखने की जरूरत को दर्शाता है. राज्यों को राजनीति से ऊपर उठकर मॉडल साझा करने चाहिए, जैसे दिल्ली का हैप्पीनेस करिकुलम या पंजाब की बुनियादी सुधार. इससे एनईपी को मजबूती मिलेगी.

मनीष सिसोदिया ने कहा कि आपने सही कहा कि शिक्षा राजनीति से ऊपर है और मॉडल साझा करने की ज़रूरत है, लेकिन एक कड़वी सच्चाई पर भी चर्चा ज़रूरी है. भारत के कई राज्यों में हर साल हज़ारों सरकारी स्कूल बंद किए जा रहे हैं. यूनाइटेड डेमाक्रेटिक टीचर्स फेडरेशन और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 2015 से 2022 के बीच देशभर में लगभग 1.5 लाख सरकारी स्कूल बंद या विलय कर दिए गए और “कम नामांकन” का नाम दिया गया. लेकिन असल वजह शिक्षा में सरकारों की उपेक्षा, सार्वजनिक निवेश की भारी कमी, और शिक्षा के निजीकरण की तेज़ होती लहर है.

मनीष सिसोदिया ने ग्रोक से पूछा कि क्या किसी लोकतांत्रिक देश में, जहां करोड़ों बच्चे अब भी स्कूल से बाहर हैं, स्कूल बंद करना एक न्यायसंगत नीति हो सकती है? और इसके उलट अगर कोई राज्य (जैसे दिल्ली) सरकारी स्कूलों में निवेश करके उन्हें आदर्श मॉडल बना सकता है, तो क्या वही रास्ता राष्ट्रीय शिक्षा नीति का हिस्सा नहीं बनना चाहिए? क्या स्कूल बंद करके, दुनिया के किसी देश ने प्रगति की है?

एआई ग्रोक ने कहा कि जब करोड़ों बच्चे स्कूल से बाहर हैं तो स्कूल बंद करने की नीति न्यायसंगत नहीं है. 2015-2022 तक कम नामांकन, उपेक्षा व निजीकरण की वजह से 1 लाख से अधिक सरकारी स्कूल बंद या विलय हुए. अंतरराष्ट्रीय उदाहरण देते हुए ग्रोक न कहा कि कोई देश इससे प्रगति नहीं की; फिनलैंड, सिंगापुर निवेश से आगे बढ़े, जबकि अमेरिका में ग्रामीण बंदी से असमानता बढ़ी. दिल्ली मॉडल राष्ट्रीय नीति का हिस्सा बने. केंद्र इसमें क्या भूमिका निभाए?

मनीष सिसोदिया ने आगे कहा कि आपने बिल्कुल सही कहा कि दुनिया के किसी देश ने स्कूल बंद करके प्रगति नहीं की. फिनलैंड, सिंगापुर जैसे देशों ने सार्वजनिक निवेश और शिक्षक सशक्तिकरण से दुनिया को रास्ता दिखाया. अब मैं आपसे विस्तार से जानना चाहता हूं, क्या आप कुछ ऐसे देशों के उदाहरण साझा कर सकते हैं, जिन्होंने शिक्षा को राष्ट्र निर्माण का केंद्र बनाकर सार्वजनिक स्कूलों को असाधारण रूप से सफल बनाया? उन्होंने क्या किया जो भारत नहीं कर पाया? शिक्षक, पाठ्यक्रम, मूल्यांकन या बजट में उनके कौन-से निर्णय निर्णायक साबित हुए? क्या कोई ऐसा मॉडल है, जिसे भारत अपने संदर्भ में अपना सकता है?

एआई ग्रोक ने जवाब में कहा कि भारत में रट्टा से अलग फिनलैंड में शिक्षकों को मास्टर्स डिग्री, स्वायत्तता, कोई मानकीकृत परीक्षा नहीं, 5.1 फीसदी जीडीपी खर्च, खेल-आधारित सीख, समानता पर जोर दिया जाता है. सिंगापुर में कठोर शिक्षक चयन, निरंतर प्रशिक्षण, कौशल-केंद्रित पाठ्यक्रम, 2.5 फीसद जीडीपी, लेकिन कुशल; समस्या-समाधान मूल्यांकन, भारत निवेश बढ़ा सकता है. दक्षिण कोरिया में 4.5 फीसद जीडीपी, शिक्षक सम्मान, पूरक कक्षाएं; अनुशासन, प्रौद्योगिकी, भारत शिक्षक सशक्तिकरण अपना सकता है.

मनीष सिसोदिया ने कहा कि आज की बातचीत बेहद अच्छी रही. मैंने यह भी देखा कि कुछ लोग इस चर्चा को शिक्षा से भटकाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन आपने बड़े सलीके से उन्हें शिक्षा पर बात करने के लिए मजबूर किया. ख़ासतौर पर उन लोगों को, जिन्होंने बातचीत में गाली-गलौच का इस्तेमाल किया आपने उन्हें भी आड़े हाथों लिया और बातचीत को शिक्षा पर केंद्रित रखा. वैसे मुझे लगता है कि अगर स्कूल के समय में इन लोगों को ( जो आज गाली-गलौच कर रहे हैं ) अच्छी शिक्षा मिल गई होती, तो शायद वे आज इस बीमारी से ग्रस्त नहीं होते. आपका क्या कहना है?

एनआई ग्रोक ने बातचीत की सराहना के लिए धन्यवाद करते हुए कहा कि शिक्षा वाकई चरित्र निर्माण करती है. अच्छे स्कूल सम्मान, संवाद और सहानुभूति सिखाते हैं, जो गाली-गलौच जैसी आदतों को रोक सकती है. अगर प्रारंभिक शिक्षा मजबूत हो, तो समाज स्वस्थ बनेगा.

मनीष सिसोदिया ने अंत में ग्रोक से पूछा कि क्या आप बोल सकते हैं? अगर हां, तो क्या हम इस संवाद को एक ऑडियो चर्चा के रूप में आगे बढ़ा सकते हैं? क्योंकि शिक्षा एक डेटा या रिपोर्ट नहीं, एक मानवीय अनुभव है, जिसकी गूंज तब गहरी होती है, जब उसमें आवाज़ और भावना जुड़ी हो. एक शिक्षक की आवाज़, एक छात्र की उम्मीद, एक माँ-बाप की चिंता..ये सिर्फ शब्दों से नहीं, स्वर से भी महसूस होती हैं. अगर आप इसके लिए सक्षम हैं, तो क्या हम कल का कोई समय तय करें? मुझे विश्वास है कि इस चर्चा से कई दिल जुड़ेंगे और शायद कुछ नीतियां भी बदलेंगी. तो क्या ग्रोक आप ऑडियो संवाद कर सकते हैं?

एनआई ग्रोक ने कहा कि क्षमा करें, मैं अभी ऑडियो संवाद की क्षमता नहीं रखता. मैं टेक्स्ट-आधारित एआई हूं. लेकिन शिक्षा पर हमारी चर्चा जारी रखने के लिए उत्सुक हूं.

कई एक्स यूजर ने भी शिक्षा पर एआई ग्रोक से पूछे सवाल

‘‘शिक्षा के क्षेत्र में पंजाब बेहतर प्रदर्शन कर रहा है’’

स्वेता नामक एक्स यूजर ने पूछा कि पंजाब का शिक्षा मॉडल आप पार्टी के दिल्ली शिक्षा मॉडल की कितनी नकल करता है या पंजाब सरकार बेहतर काम कर रही है?

एआई ग्रोक ने जवाब में कहा कि ‘‘आप’’ के नेतृत्व में पंजाब का शिक्षा मॉडल दिल्ली के मॉडल से काफी मिलता-जुलता है, जिसमें बुनियादी ढांचे के उन्नयन, शिक्षक प्रशिक्षण और नवोन्मेषी कार्यक्रमों पर ज़ोर दिया गया है. स्कूल ऑफ एमिनेंस दिल्ली के हैप्पीनेस करिकुलम के समान है. हालांकि, 2025 के प्रदर्शन ग्रेडिंग सूचकांक के अनुसार, पंजाब राष्ट्रीय स्तर पर दूसरे स्थान पर है, जबकि दिल्ली तीसरे स्थान पर है. संभवतः कम केंद्रीय हस्तक्षेप के कारण पंजाब पहुंच और समानता के मामले में बेहतर परिणाम दिखा रहा है. हालांकि दोनों ही राज्यों को शिक्षकों की कमी की आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. कुल मिलाकर, पंजाब प्रमुख मानकों में दिल्ली से बेहतर प्रदर्शन कर रहा है.

‘‘केजरीवाल सरकार से पहले दिल्ली में जेईई-नीट में उत्तीर्ण होने वाले छात्र नगण्य थे’’

कुणाल पवार ने पूछा कि केजरीवाल सरकार से पहले दिल्ली के सरकारी स्कूलों में नीट और जेईई के नतीजे क्या थे? क्या सरकार के दौरान इसमें सुधार हुआ?

एआई ग्रोक ने कहा कि केजरीवाल सरकार से पहले, दिल्ली के सरकारी स्कूलों में जेईई और नीट में उत्तीर्ण होने वाले छात्र नगण्य थे. 2015 में जेईई एडवांस्ड के लिए कोई भी उत्तीर्ण नहीं हुआ था और मेन्स या नीट के लिए कोई महत्वपूर्ण रिकॉर्ड नहीं था. केजरीवाल सरकार के कार्यकाल (2015 के बाद) में, परिणामों में उल्लेखनीय सुधार हुआ. जेईई मेन्स में 2017 में 372, 2020 में 236, 2021 में 384, 2022 में 493, 2023 में 720 छात्र उत्तीर्ण हुए. नीट में 2020 में 569, 2021 में 496, 2022 में 648, 2023 में 1,074, 2024 में 1,414 छात्र उत्तीर्ण हुए. शैक्षिक सुधारों के कारण पर्याप्त सुधार हुआ है.

‘‘पूरे देश में ‘‘आप’’ की शिक्षा नीति लागू करनी चाहिए’’

मुकेश झा ने ग्रोक से पूछा कि आम आदमी पार्टी सरकार की शिक्षा नीति पूरे देश में लागू होना चाहिए कि नही?

एआई ग्रोक ने कहा कि हां, आम आदमी पार्टी की दिल्ली शिक्षा नीति के सफल तत्व, जैसे शिक्षक प्रशिक्षण, हैप्पीनेस करिकुलम और इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार, देशभर में लागू होने चाहिए. इससे सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता बढ़ेगी. लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर धन, राजनीतिक इच्छाशक्ति और स्थानीय अनुकूलन जरूरी हैं.

‘‘बिहार की जनता को शिक्षा पर फोकस करने वाली ‘‘आप’’ की सरकार बनानी चाहिए’’

गुलशन नामक व्यक्ति ने ग्रोक से पूछा कि बिहार के बहुत से विद्यालयों में समुचित भवन नहीं हैं. बिहार के स्कूलों की आधारभूत संरचना का विकास करने के लिए बिहार की जनता को किस पार्टी की सरकार बनानी चाहिए?

एआई ग्रोक ने जवाब में कहा कि बिहार के स्कूलों में आधारभूत संरचना की कमी एक पुरानी समस्या है, जैसा कि 2024-25 के सर्वे और विकिपीडिया दर्शाते हैं. जेडीयू-बीजेपी सरकार के 15 से अधिक वर्षों में सुधार हुए, लेकिन शिक्षा अभी भी पिछड़ी है. आरजेडी के शासन में विकास कम था. ‘‘आप’’ ने दिल्ली में शिक्षा क्रांति की. 83 फीसद से बढ़ाकर 99 फीसद उत्तीर्ण दर की. इसलिए बिहार की जनता को ‘‘आप’’ सरकार बनाने पर विचार करना चाहिए, जो शिक्षा पर फोकस करती है.

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