Last Updated:July 25, 2025, 08:45 IST
Supreme Court on Udaipur Files: सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म 'उदयपुर फाइल्स' की रिलीज पर सुनवाई की. जस्टिस सूर्यकांत ने न्यायिक अधिकारियों की क्षमता पर सवाल उठाने वालों को फटकार लगाई. मामले को शुक्रवार तक स्थगित कर द...और पढ़ें

हाइलाइट्स
जस्टिस सूर्यकांत ने 'उदयपुर फाइल्स' पर आपत्तियों को खारिज किया.सुप्रीम कोर्ट ने फिल्म की रिलीज पर सुनवाई शुक्रवार तक स्थगित की.फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की गई थी.Supreme Court on Udaipur Files: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को विवादास्पद फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स- कन्हैया लाल टेलर मर्डर’ की रिलीज को लेकर सुनवाई के दौरान कड़ा रुख अपनाया. जस्टिस सूर्यकांत ने न केवल फिल्म की रिलीज पर आपत्ति जताने वालों को आड़े हाथों लिया, बल्कि न्यायिक अधिकारियों की क्षमता पर सवाल उठाने वालों को भी फटकार लगाई. उन्होंने कहा कि हमारे जूडिशियल अफसरों को कम मत आंकिए. इस बयान के साथ उन्होंने उन आशंकाओं को खारिज किया कि फिल्म जैसे रचनात्मक कार्य न्यायिक फैसलों को प्रभावित कर सकते हैं. सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जोयमलया बागची की बेंच ने मामले को शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दिया और संकेत दिया कि इसे दिल्ली हाईकोर्ट को वापस भेजा जा सकता है.
मामला क्या है?
उदयपुर फाइल्स 2022 में उदयपुर में दर्जी कन्हैया लाल की हत्या पर आधारित एक फिल्म है, जिसकी रिलीज को लेकर विवाद शुरू हो गया था. जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसके बाद हाईकोर्ट ने 21 जुलाई को केंद्र द्वारा नियुक्त समिति की रिपोर्ट आने तक फिल्म की रिलीज पर रोक लगा दी थी. इस समिति ने सुझाव दिया कि फिल्म में डिस्क्लेमर बदला जाए, क्रेडिट में कुछ नाम हटाए जाएं और कुछ संवादों को हटाया जाए. इसके अलावा नूतन शर्मा जैसे नामों को पोस्टर से हटाने का भी निर्देश दिया गया. इस बीच हत्या के आरोपी मोहम्मद जावेद ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें फिल्म की रिलीज को निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार पर असर डालने वाला बताया गया.
कोर्ट की दलील और जस्टिस सूर्यकांत का रुख
गुरुवार को सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने समिति की रिपोर्ट पेश की और कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)) को धर्मनिरपेक्ष होना चाहिए और यह चयनात्मक नहीं होनी चाहिए. वहीं, जमीअत उलेमा का पक्ष कपिल सिब्बल रख रहे थे. उन्होंने दावा किया कि फिल्म एक समुदाय के खिलाफ जहर उगलती है और नफरत फैलाने वाली है. सिब्बल ने कोर्ट से फिल्म देखने की अपील की, लेकिन जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि समिति का गठन वैध है और इस पर सवाल उठाना उचित नहीं है. उन्होंने जोड़ा कि अगर हम इन ब्लैकमेलर्स और स्काउंड्रल्स की बातों पर ध्यान दें, जो भारी रिश्वत लेकर टिप्पणी करते हैं तो एक दिन भी कोर्ट नहीं चला पाएंगे.
जस्टिस कांत ने स्पष्ट किया कि न्यायिक अधिकारी प्रशिक्षण के दौरान ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार होते हैं और केवल साक्ष्यों के आधार पर फैसला लेते हैं. उन्होंने कहा कि अगर जज किसी को बरी करते हैं, तो एक समूह आरोप लगाएगा, अगर सजा देते हैं, तो दूसरा समूह सवाल उठाएगा. लेकिन हमें इस बकवास से प्रभावित नहीं होना चाहिए.
फिल्म देखने का अधिकार समाज के पास
कोर्ट ने यह भी कहा कि समाज को यह देखने या न देखने का अधिकार है कि वह क्या चाहता है. जस्टिस सूर्यकांत ने जोड़ा कि फिल्म उद्योग और लेखक समाज में होने वाली घटनाओं से प्रेरणा लेते हैं और हर रचनात्मक काम को किसी के साथ जोड़ना जटिलताएं पैदा करेगा. बेंच ने याचिकाकर्ताओं को सुझाव दिया कि वे अपनी आपत्तियों को हाईकोर्ट में चुनौती दे सकते हैं, जिससे उनका अधिकार सुरक्षित रहेगा. वहीं, फिल्म निर्माताओं के वकील गौरव भाटिया ने बताया कि सभी सुझाए गए बदलाव किए गए हैं और उनकी 10 दिनों की प्रतीक्षा के बाद भी निवेश जोखिम में है. शुक्रवार को सुनवाई जारी रहेगी और कोर्ट तय करेगा कि क्या इस मामले को हाईकोर्ट को वापस भेजा जाए. यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नफरत फैलाने वाली सामग्री के बीच संतुलन स्थापित करने में महत्वपूर्ण होगा.
न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...और पढ़ें
न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...
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