Last Updated:July 26, 2025, 05:42 IST
Kargil Ki Kahani: एक चरवाहे से मिली जानकारी के बाद कारगिल में भारतीय सेना की कवायद शुरू हो गई थी. यह कवायद देखते ही देखते मुठभेड़ और फिर एक ऐसी जंग में तब्दील हो गई, जिसे जीतना असंभव था. लेकिन असंभव को भारतीय ...और पढ़ें

हाइलाइट्स
भारतीय सेना ने 1999 में कारगिल युद्ध में विजय प्राप्त की.ऑपरेशन विजय और सफेद सागर से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ा.26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध समाप्त हुआ.Kargil Ki kahani… 1999 की सर्दियां कुछ अलग थीं. हर साल की तरह ठंड तो थी, लेकिन इस बार वादियों में कुछ अनहोनी सी हलचल थी. सरहद के उस पार से अनजान लोग आ रहे थे. उनके हाथों में चमचमाते आधुनिक हथियार और कंधों पर भारी-भरकम बैग लटके हुए थे. खूंखार दिखते वाले ये लोग कारगिल की ऊंची-ऊंची चोटियों पर कब्जा जमाने की कोशिश में थे. इन्होंने अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए मोर्टार, रॉकेट लांचर जैसे हथियार जमा कर लिए थे.
देखते ही देखते सर्दियां बीत गईं. सूरज की गर्मी बढ़ी और पहाडि़यों पर जमी बर्फ पिघलने लगी. इसी के साथ चरवाहों और उनके मवेशियों का पहाड़ियों पर लौटना भी शुरू हो गया. यह बात 3 मई 1999 की है, जब एक याक भटकते हुए वंजू टॉप तक पहुंच गया. उसे ढूंढने आए चरवाहे ताशी नामग्याल की नजर इन अनजान चेहरों पर पड़ी. उसने देखा कि ये लोग कोई साधारण लोग नहीं, बल्कि खतरनाक हथियारों से लैस और खतरनाक मंसूबों के साथ आए घुसपैठिए थे.
ताशी की खबर और सेना का पहला कदम
ताशी दौड़ता हुआ कारगिल सेक्टर के वंजू मुख्यालय पहुंचा. उसने वहां मौजूद सैन्य अधिकारियों को सब कुछ बताया. उसकी बातें सुनकर अधिकारियों के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. 5 मई 1999 को कैप्टन सौरभ कालिया के नेतृत्व में एक सैन्य टुकड़ी वंजू टॉप की ओर रवाना हुई. इस टुकड़ी का मकसद था इन अनजान लोगों की असलियत जानना. कैप्टन सौरभ ने दूर से ही इन लोगों को देख लिया और समझ गए कि ये कोई साधारण घुसपैठिए नहीं, बल्कि पाकिस्तान से आए प्रशिक्षित लोग हैं. उनके पास मौजूद हथियार इस बात की गवाही दे रहे थे कि उनके इरादे बेहद खतरनाक हैं.
लेकिन जब कैप्टन सौरभ और उनके पांच साथी जवान काफी देर तक वापस नहीं लौटे, तो सेना को शक हुआ. भारतीय सेना ने तुरंत कुछ और टुकड़ियों को भेजा. इन टुकड़ियों का सामना जब घुसपैठियों से हुआ, तो लगा कि वो किसी आम आतंकी से नहीं, बल्कि प्रशिक्षित सैनिकों से लड़ रहे हैं. इस जंग में सेना को दो बड़े राज पता चले. पहला, ये घुसपैठिए सिर्फ वंजू टॉप तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि दूसरी चोटियों पर भी इन्होंने कब्जा जमा रखा था. दूसरा, ये लोग पाकिस्तानी सेना के प्रशिक्षित जवान थे, जिन्हें घुसपैठियों के भेष में भेजा गया था.
सामने आया पाकिस्तान का कायराना चेहरा
मुठभेड़ के दौरान सामने आई सच्चाई अब सबके सामने थी. अब यह साफ हो चुका था कि ये लोग पाकिस्तानी सेना और अर्धसैनिक बलों के जवान थे, जो एक बड़े नापाक मंसूबे के तहत कारगिल की वादियों में घुसे थे. ये खुलासा भारतीय सेना के लिए चौंकाने वाला था. दिल्ली में बैठे सैन्य अधिकारियों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी हो गईं थीं. आनन-फानन में भारतीय वायुसेना और स्थानीय सैन्य टुकड़ियों को दुश्मन की टोह लेने में लगा दिया गया.
18 मई 1999 को भारतीय सेना ने प्वाइंट 4295 और 4460 पर कब्जा कर लिया. इस ऑपरेशन में घुसपैठियों को मार गिराया गया और दोनों चोटियां फिर से भारत के कब्जे में आ गईं. मारे गए घुसपैठियों के पास से मिले दस्तावेजों ने साबित कर दिया कि ये लोग पाकिस्तानी सेना के जवान थे, जिन्हें छद्म युद्ध के लिए भेजा गया था. भारतीय सेना अब पूरी तरह समझ चुकी थी कि पाकिस्तान एक गुप्त युद्ध की तैयारी में था.
ऑपरेशन विजय और सफेद सागर की शुरूआत
पाकिस्तान के इरादों को भांपते ही भारतीय सेना और वायुसेना ने मिलकर एक ठोस योजना बनाई. इस योजना को मंजूरी मिलते ही 26 मई 1999 को भारतीय वायुसेना ने ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ शुरू किया. इस ऑपरेशन में दुश्मन के ठिकानों पर हवाई हमले किए गए. उसी समय भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ शुरू किया, जिसका मकसद था दुश्मन को पूरी तरह खदेड़ देना था.
लेकिन दुश्मन ने भी हार नहीं मानी. तोलोलिंग की चोटियों पर बैठे घुसपैठियों ने नेशनल हाईवे 1A से गुजरने वाले सैन्य वाहनों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. ऐसे में तोलोलिंग की चोटियों को दुश्मन से मुक्त कराना बेहद जरूरी हो गया था. इसके साथ ही मुश्कोह घाटी और काकसर जैसे सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इलाकों में भी सेना ने हमले की तैयारी शुरू कर दी.
और इस तरह अंजाम तक पहुंचा कारगिल युद्ध
इस ऑपरेशन को 3 इन्फैंट्री डिवीजन ने शुरू किया. जल्द ही कश्मीर में आतंकवाद के खिलाफ लड़ रही 8 माउंटेन डिवीजन को भी कारगिल में शामिल कर लिया गया. 3 इन्फैंट्री डिवीजन को बटालिक और काकसर के इलाकों में जिम्मेदारी दी गई, जबकि द्रास और मुश्कोह घाटी में 8 माउंटेन डिवीजन ने मोर्चा संभाला. इस अभियान में अतिरिक्त सेना, आर्टिलरी और इंजीनियरों की टुकड़ियां भी शामिल की गईं.
13 जून 1999 को भारतीय सेना को दूसरी बड़ी कामयाबी मिली, जब तोलोलिंग और प्वाइंट 4590 पर फिर से कब्जा कर लिया गया. इसके बाद सेना ने एक के बाद एक प्वाइंट 5410, प्वाइंट 4700, ब्लैक रॉक, थ्री पिंपल, प्वाइंट 5000, प्वाइंट 5287, टाइगर हिल, प्वाइंट 4875 और जूलू सुपर कॉम्प्लेक्स पर कब्जा जमाया. भारतीय सेना के जांबाजों ने दिन-रात मेहनत की और आखिरकार 26 जुलाई 1999 तक मेरी सभी चोटियों को दुश्मन से मुक्त करा लिया. इसी दिन कारगिल युद्ध आधिकारिक रूप से खत्म हुआ.
Anoop Kumar MishraAssistant Editor
Anoop Kumar Mishra is associated with News18 Digital for the last 3 years and is working on the post of Assistant Editor. He writes on Health, aviation and Defence sector. He also covers development related to ...और पढ़ें
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