घाटी में जेहादी आतंकवाद के पोस्टर ब्वॉय मूसा का खास सहयोगी रहा है मुफ्ती इरफान

1 hour ago

दिल्ली में सोमवार की शाम लाल किले के करीब हुए ब्लास्ट की जांच कर रही सुरक्षा एजेंसियों के फोकस में है मुफ्ती इरफान अहमद. ये वो मौलवी है, जिसने बीस से भी ज्यादा पढ़े- लिखे युवकों को जेहाद की राह पर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया, उन्हें कट्टर बनाया और आतंकी गतिविधियों में शामिल किया. मुफ्ती इऱफान के बारे में जो जानकारी अभी तक सुरक्षा एजेंसियों को हासिल हुई है, उसके मुताबिक ये उस जाकिर मूसा का काफी करीबी सहयोगी रहा है, जिसने 2013 से लेकर 2019 के बीच कश्मीर घाटी में आतंक मचा रखा था. बीटेक कर रहे मूसा ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में छोड़कर आतंकवाद का रास्ता पकड़ लिया था और घाटी के युवाओं को जेहाद की राह पर खीचने में लगा था.

जाकिर मूसा पहले हिजबुल मुजाहिदीन आतंकी संगठन से जुड़ा और फिर उसके बाद जैश- ए- मोहम्मद से. बाद में इसने जैश छोड़कर खुद का आतंकी संगठन खड़ा किया, अंसार गजवात उल हिंद के तौर पर. 2019 में सुरक्षा एजेंसियों के हाथों मारे जाने के पहले जाकिर मूसा इसी आतंकी संगठन का मुखिया था. आतंक की राह पकड़ते ही मूसा की मुफ्ती इरफान अहमद से दोस्ती हो गई, जो खुद एक समय श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में पारा मेडिक स्टाफ था. छह महीने वहां नौकरी करने के बाद मुफ्ती इरफान ने जेहादी आतंकवाद का रास्ता पकड़ लिया, और मूसा का करीबी सहयोगी बन गया.

मुफ्ती इरफान को जाकिर मूसा काफी मानता था क्योंकि ये मौलवी अपनी सोच में काफी कट्टर था, जेहाद के रास्ते पर युवकों को ले जाने में इसे महारत हासिल थी. मूसा खुद प्रोफेशनल बैकग्राउंड का था, वो चाहता था कि कश्मीर घाटी में आतंकवाद को हाईटेक बनाने के लिए ज्यादा से ज्यादा उन प्रोफेशनल्स को शामिल किया जाए, जो टेक सैवी हों, पढ़े- लिखे हों, ताकि वो जेहादी आतंकवाद को और खतरनाक बना सकें. मुफ्ती इरफान ने जाकिर मूसा की सलाह पर ये काम बखूबी किया और इसके लिए उसने मस्जिदों का सहारा लिया. मस्जिदों में इमाम के तौर पर काम करते हुए वो लगातार उन युवाओं से संपर्क बढ़ाता रहा, जो डॉक्टर थे, इंजीनियर थे. उनको वो लगातार जेहाद की घुट्टी पिलाता रहा, उन्हें आतंकवाद की राह पर आगे बढ़ने के लिए उकसाता रहा.

एक के बाद एक, इसने तीन- चार अलग- अलग मस्जिदों में काम किया और अपना नेटवर्क बढ़ाता चला गया. सुरक्षा एजेसिंयों की अभी तक की जांच- पड़ताल में ये बात सामने आई है कि इसने बीस से ज्यादा युवकों को जेहादी आतंकवाद के रास्ते पर धकेला, जो अच्छे- खासे पढ़े- लिखे थे. इनमें डॉक्टरों की तादाद सबसे अधिक थी.
सुरक्षा एजेंसियों के हत्थे चढ़ चुका मुफ्ती इरफान करीब चालीस साल का है और कश्मीर घाटी के शूपियां इलाके का रहने वाला का है. 2019 में जाकिर मूसा के मारे जाने तक ये मौलवी उसका करीबी सहयोगी बना रहा.

इस दौरान न सिर्फ ये युवकों को जेहाद की राह पर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता रहा, बल्कि उन्हें एलओसी पार पाकिस्तान भी भेजता रहा, आतंकी ट्रेनिंग के लिए. यही नहीं, उन्हें आतंकवादी घटनाओँ को अंजाम देने के लिए हथियार भी देता रहा, पैसा भी मुहैया कराता रहा. कश्मीर में अगस्त 2019 में आर्टिकल 370 की समाप्ति के पहले जो पत्थरबाजी की घटनाएं नियमित तौर पर होती थीं, उसमें भी इस मौलवी की प्रमुख भूमिका थी. ये युवकों को पैसे देकर, उन्हें प्रोत्साहित करते हुए पत्थऱबाजी कराता था, सुरक्षा बलों की गाड़ियों को निशाना बनाता था, उनके जरिये.

मुफ्ती की गतिविधियां तब और बढ़ गईं, जब 2016 में बुरहान वानी के मारे जाने के बाद जाकिर मूसा हिजबुल मुजाहिदीन का कश्मीर घाटी में कमांडर बना. इस नई और बड़ी भूमिका में जाकिर मूसा ने मुफ्ती इरफान के साथ मिलकर बड़ी तादाद में नई पीढ़ी के टेक सैवी प्रोफेशनल्स को अपने आतंकी सगंठन के साथ जोड़ना शुरु कर दिया. इन युवकों को आतंकवादी बनाने में मुफ्ती इरफान बड़ी भूमिका निभाता रहा, अपनी लच्छेदार जेहादी तकरीरों के जरिये.

मौलवी ने इस दौरान डेढ़ दर्जन प्रोफेशनल युवाओं को जाकिर मूसा के जेहादी नेटवर्क के साथ जोड़ा. इनमें डॉक्टर भी थे और इंजीनियर भी. इस दौरान मूसा ने हिजबुल के बाद जैश- ए- मोहम्मद के लिए भी काम किया और आखिर में अपना खुद का आतंकवादी संगठन खड़ा कर लिया, अंसार गजवात उल हिंद के तौर पर.

कश्मीर घाटी में आतंकवाद को पढ़े- लिखे युवाओं के बीच फैशनेबल बनाने में बुरहान वानी के बाद अगर किसी ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई, तो वो जाकिर मूसा था. उसके इस मिशन में मुफ्ती इरफान की बड़ी भूमिका रही. जाकिर मूसा कश्मीरी युवाओं के लिए हीरो जैसा बन चुका था. हालात ऐसे बन गये थे कि जब 23 मई, 2019 को जाकिर मूसा सुरक्षा बलों के साथ हुए मुठभेड़ में मारा गया, तो सड़कों पर वैसी ही भीड़ उतर आई, जैसा बुरहान वानी के मारे जाने के बाद हुआ था. लाखों की तादाद में कश्मीर के अलग- अलग हिस्सों में लोग सड़कों पर जमा हुए थे.

उसके फोटो वाली टीशर्ट पहनकर, मास्क लगाकर लोग बाहर सड़क पर निकले थे. त्राल में जब जाकिर मूसा को दफनाया गया, तो दस हजार से अधिक लोग इकट्ठा हुए थे. हालात इतने तनावपूर्ण और विस्फोटक बन गये थे कि प्रशासन को मोबाइल सेवा बंद करनी पड़ी थी, ताकि लोग ज्यादा न जुटें, खबरें, अफवाह न फैले.

जाकिर मूसा के मारे जाने के बाद भी मौलवी इरफान शांत नहीं रहा, बल्कि वो सीधे- सीधे पाकिस्तान स्थित जैश के उन हैंडलर्स के संपर्क में आ गया, जो कश्मीर में जेहादी आतंकवाद भड़काने का काम देखते थे. उन्हीं के इशारे पर ये आतंकवाद के नेटवर्क का विस्तार करने में लगा हुआ था, खास तौर पर डॉक्टरों के बीच. भला किसे शक होता कि जिन डॉक्टरों का धर्म होता है लोगों की जान बचाना, वो मुफ्ती इरफान की जेहादी तकरीर के जाल में फंसकर, बड़े पैमाने पर लोगों की जान लेने के लिए तैयार हो जाएगें.

दिल्ली में सोमवार को हुए फिदायीन अटैक के बाद जैश के जिस मोड्यूल की तरफ सुरक्षा एजेंसियों का ध्यान गया है, उसमें शामिल ज्यादातर डॉक्टर, जो अब सुरक्षा एजेंसियों के हत्थे चढ़ चुके हैं, उन्हें जेहादी बनाने का काम मुफ्ती इरफान ने ही किया हुआ है. श्रीनगर के नौगाम इलाके में 18 अक्टूबर को सुरक्षा बलों के खिलाफ की गई पोस्टरबाजी की जांच कर रही जम्मू- कश्मीर पुलिस के हत्थे 27 अक्टूबर को चढ़े इस मौलवी ने ही पूछताछ में डॉक्टरों के आतंकी नेटवर्क के बारे में पहली हिंट दी. इससे मिली सूचना के आधार पर ही डॉक्टर आदिल को जम्मू- कश्मीर पुलिस ने गिरफ्तार किया, जो अनंतनाग के सरकारी मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के एक अस्पताल में नौकरी करते हुए जेहादी नेटवर्क का विस्तार कर रहा था.

इसके बाद तो एक के बाद एक तमाम वो तमाम डॉक्टर जम्मू- कश्मीर पुलिस के हत्थे चढ़ते चले गये, जो जैश- ए- मोहम्मद के इशारे पर पूरे भारत में बम विस्फोट करने की साजिश रच रहे थे और इसके लिए जरूरी विस्फोटक सामग्री भी बड़ी तादाद में इकट्ठा कर चुके थे. पिछले दो साल से इन डॉक्टरों के लगातार संपर्क में था मुफ्ती इरफान और उन्हें प्रोत्साहित कर रहा था आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए.

दरअसल, मुफ्ती इरफान जैसे लोग भोले- भाले युवकों को भी आतंकी बना देते हैं, जो डॉक्टर के तौर पर समाज में नाम कमा सकते हैं, उल्टे उन्हें ये घुट्टी पिला देते हैं कि जेहाद ही उनके लिए एक मात्र रास्ता है और काफिरों को मारना सबसे जरूरी काम है. कश्मीर घाटी में रेडिकलाइजेशन के बीज इन जैसे मौलवियों की वजह से बचपन में ही पड़ने शुरु हो जाते हैं. 2019 के बाद ऐसी गतिविधियों पर रोक लगने की शुरुआत हुई, लेकिन ये गतिविधियां खत्म नहीं हुई हैं. मुफ्ती इरफान जैसे इमाम ही मस्जिद की आड़ लेते हुए न सिर्फ आतंकवादी तैयार करते हैं, बल्कि आतंकवादियों को हीरो और सुरक्षा बलों को जालिम बताने में लगे रहते हैं.

मौलवी इरफान की सरपरस्ती में चलने वाला डॉक्टरों का ये जेहादी नेटवर्क पूरे भारत को दहला सकता था. तैयारी इसकी हो भी चुकी थी. लेकिन भला हो जम्मू- कश्मीर पुलिस के उन सतर्क पुलिस अधिकारियों का, जिन्होंने 18 तारीख की रात श्रीनगर के नौगाम में हुए पोस्टरबाजी के मसले को गंभीरता से लिया. 19 अक्टूबर को इस मामले में एफआईआर दर्ज की गई. इस मसले पर ही पुलिस अधिकारियों के साथ 24 अक्टूबर को जम्मू- कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की बैठक हुई. इस बैठक में सिन्हा ने इस घटना की तह तक जाने के लिए पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया.

इसी कड़ी में मौलवी इरफान 27 अक्टूबर को गिरफ्तार हुआ, जिसके बारे में सूचना मिली थी, उन तीन युवाओं से, जो इसके इशारे पर पोस्टरबाजी की घटना में संलग्न रहे थे. ये तीनों युवक पकड़े गये थे बीस अक्टूबर को और इसके एक हफ्ते बाद मौलवी पुलिस के हत्थे चढ़ा.

मुफ्ती इरफान की गिरफ्तारी पूरे मामले की जांच का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई और एक के बाद एक तमाम डॉक्टर पकड़े जाने लगे, जो इस जेहादी नेटवर्क में शामिल थे. पुलिस डॉक्टर उमर तक पहुंच पाती, उसके पहले उसने हड़बड़ी में लाल किला के पास फिदायीन हमला कर दिया, कार में विस्फोटक रखकर उड़ा दिया, जिसमें उसके खुद के परखच्चे तो उड़े ही, बारह निर्दोष लोगों की भी जान चली गई, दर्जनों गंभीर तौर पर घायल हुए.

अब मुफ्ती इरफान के सहारे जांच एजेंसियां आतंक के इस पूरे नेटवर्क को ध्वस्त करने में लगी हैं और इसके तहत एक के बाद एक तमाम गिरफ्तारियां हो रही हैं, जिससे पूरे देश के लोग भौंचके है. आखिर इन्होंने कहां सोचा था कि जिन डॉक्टरों को फरिश्ता कहा जाता है, वो शैतान बन जाएंगे, जेहादी सोच के तहत, जिसकी तरफ ले जाते हैं मुफ्ती इरफान जैसे जहरीले मौलाना.

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