Last Updated:November 13, 2025, 17:42 IST
Myanmar cyber crime camp : थाईलैंड में ऊंची सैलरी और शानदार लाइफ का सपना दिखाकर झुंझुनूं के अविनाश को साइबर ठगी की फैक्ट्री में झोंक दिया गया. जहां नाम बदलकर “नैंसी” बना दिया गया, और काम था बुजुर्ग अमेरिकियों को सोशल मीडिया पर ठगना. टारगेट पूरा न करने पर बिजली के झटके मिलते थे. ये कहानी किसी फिल्म की नहीं, बल्कि आधुनिक डिजिटल गुलामी का असली चेहरा है.
कृष्ण सिंह शेखावत/झुंझुनु : “जब मैंने पहली बार चैट खोली, तो मैं नैंसी थी – न कोई पहचान, न आज़ादी… बस एक भारतीय लड़का, जो अमेरिकी बुजुर्गों को ठगने पर मजबूर था.” यह कहानी किसी फिल्म की नहीं, बल्कि राजस्थान के झुंझुनूं के रहने वाले अविनाश कुमार की है, जो एक बेहतर नौकरी के सपने में म्यांमार के साइबर क्राइम कैंप तक जा पहुंचे. अविनाश ने बीएससी एग्रीकल्चर किया था. उन्हें एक एजेंट ने थाईलैंड की एक बड़ी कंपनी में नौकरी दिलाने का झांसा दिया. ऑफर था – 80 हजार रुपये वेतन और 20 हजार बोनस. सपना बड़ा था, इसलिए उन्होंने हां कर दी. लेकिन जैसे ही वो थाईलैंड पहुंचे, सब बदल गया.
उन्हें “डंकी रूट” से जंगलों के रास्ते म्यांमार के अंदर ले जाया गया. पहुंचते ही उनका पासपोर्ट छीन लिया गया और उन्हें एक बड़े कंपाउंड में बंद कर दिया गया. चारों तरफ हथियारबंद गार्ड तैनात थे. वहां से भागना नामुमकिन था. फिर शुरू हुआ असली डिजिटल नरक. हर व्यक्ति को नई पहचान दी जाती थी. अविनाश को कहा गया – “अब तुम्हारा नाम नैंसी है, तुम अमेरिका में रहने वाली एक युवती हो.” उन्हें सुंदर महिलाओं की तस्वीरों वाले फर्जी फेसबुक और इंस्टाग्राम अकाउंट दिए गए. काम था – अमेरिकी बुजुर्गों से दोस्ती करना, भरोसा जीतना और फिर निवेश या गिफ्ट कार्ड के नाम पर ठगी करवाना.
टारगेट चूके तो मिलते थे झटके
अविनाश बताते हैं, “मैंने एक महीने में 10 लोगों से बात की, जिनमें से 3 को ठगने में सफलता मिली. जो टारगेट पूरा नहीं करता था, उसे बिजली के झटके दिए जाते थे या भूखा रखा जाता था.” कैंप में मौजूद सभी लोग किसी न किसी तरह इसी ठगी के जाल में फंसे थे. भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नाइजीरिया, इथियोपिया जैसे देशों के युवा इस ‘साइबर फैक्ट्री’ में आधुनिक गुलाम बन चुके थे. वहां किसी की अपनी पहचान, आज़ादी या भविष्य नहीं था – बस झूठ, डर और ठगी का काम था.
500 भारतीय युवाओं की हुई मुक्ति
अविनाश को भारत सरकार के एक स्पेशल ऑपरेशन के तहत छुड़ाया गया. इस ऑपरेशन में म्यांमार-थाईलैंड सीमा से करीब 500 भारतीय युवाओं को मुक्त करवाया गया. लौटने के बाद अविनाश ने कहा – “हम सोच रहे थे कि विदेश जाकर पैसा कमाएंगे, लेकिन हमें साइबर ठग बना दिया गया. हर दिन झूठ बोलना, धोखा देना और डर में जीना हमारी दिनचर्या बन गई थी. यह आधुनिक गुलामी है.”
सपनों के देश में मिला नर्क
यह कहानी सिर्फ अविनाश की नहीं, बल्कि उन सैकड़ों युवाओं की है जो विदेश की चमक में अपनी ज़िंदगी दांव पर लगा देते हैं. नौकरी के नाम पर झांसे देने वाले एजेंट आज भी सोशल मीडिया और फर्जी वेबसाइटों के जरिए युवाओं को जाल में फंसा रहे हैं. चेतावनी साफ है – विदेश जाने से पहले हर ऑफर की सच्चाई जांचें, वरना सपनों के देश में ‘नौकरी’ नहीं, ‘नर्क’ भी मिल सकता है.
रुपेश कुमार जायसवाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस और इंग्लिश में बीए किया है. टीवी और रेडियो जर्नलिज़्म में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं. फिलहाल नेटवर्क18 से जुड़े हैं. खाली समय में उन...और पढ़ें
रुपेश कुमार जायसवाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस और इंग्लिश में बीए किया है. टीवी और रेडियो जर्नलिज़्म में पोस्ट ग्रेजुएट भी हैं. फिलहाल नेटवर्क18 से जुड़े हैं. खाली समय में उन...
और पढ़ें
Location :
Jhunjhunu,Rajasthan
First Published :
November 13, 2025, 17:34 IST

1 hour ago
