Gaza Crisis: पूरी दुनिया को दिख रहा है इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध के महीनों बाद भी गाजा में हालात बद से बदतर हैं. हर तरफ तबाही, मलबा और भूख का तांडव है. बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, बुजुर्गों की आंखों में मदद की आस है और अस्पतालों में दवाएं खत्म हो चुकी हैं. इसी बीच अब राहत सामग्री को लेकर नया टकराव खड़ा हो गया है. इजरायल और संयुक्त राष्ट्र एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं कि आखिर क्यों गाजा के लोगों तक राहत नहीं पहुंच रही.
सैकड़ों राहत ट्रक गाजा में दाखिल.. लेकिन
दरअसल इंटरनेशनल मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इजरायल ने गुरुवार को दावा किया कि उसके द्वारा भेजे गए सैकड़ों राहत ट्रक गाजा में दाखिल हो चुके हैं लेकिन UN उन्हें वितरित नहीं कर रहा. इजरायल के विदेश मंत्रालय ने ट्विटर पर लिखा कि इंटरनेशनल जर्नलिस्ट्स को भी आमंत्रित किया गया था ताकि वे खुद देख सकें कि राहत का सामान गाजा में पड़ा है लेकिन बंट नहीं रहा. मंत्रालय ने आरोप लगाया कि UN और हमास दोनों मिलकर मदद को लोगों तक नहीं पहुंचने दे रहे हैं.
मदद बांटना बेहद मुश्किल
वहीं UN ने इजरायल के आरोपों को खारिज कर दिया है. UN प्रवक्ता स्टेफन दुजारिक ने कहा कि केरम शालोम क्रॉसिंग कोई मैकडॉनल्ड्स की ड्राइव-थ्रू नहीं है जहां बस जाकर ऑर्डर उठा लें. उन्होंने बताया कि इस क्रॉसिंग तक पहुंचने के लिए UN कर्मियों को इजरायली अधिकारियों से कई मंमंजूरियां लेनी पड़ती हैं और मौजूदा सैन्य गतिविधियों प्रतिबंधों और जटिल प्रक्रिया के कारण मदद बांटना बेहद मुश्किल हो गया है.
प्राइवेट सुरक्षा एजेंसियों के जरिए
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि समस्या सामान की कमी की नहीं बल्कि वितरण की है. राहत से भरे ट्रक गोदामों में खड़े हैं और कुछ किलोमीटर दूर हजारों लोग भुखमरी के कगार पर हैं. पहले इजरायल ने हमास पर दबाव बनाने के लिए 11 हफ्ते तक मदद रोकी भी थी. इस बीच इजरायल और अमेरिका ने गाजा ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन GHF नाम से एक नया तंत्र शुरू किया है. जिसमें प्राइवेट सुरक्षा एजेंसियों के जरिए राहत बांटी जा रही है.
हालांकि इस योजना की काफी आलोचना हो रही है. मानवाधिकार संगठनों ने आरोप लगाया है कि राहत वितरण के दौरान इजरायली सुरक्षाबलों द्वारा हिंसा की जा रही है. UN का दावा है कि इस प्रक्रिया में अब तक 1000 से ज्यादा फिलिस्तीनी मारे जा चुके हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक गाजा की बड़ी आबादी अब भुखमरी की चपेट में है और बीमारी कुपोषण तथा मौत के खतरे तेजी से बढ़ रहे हैं.