कैसे हुआ रिहंद बांध बनाने वाली कंपनी का पतन! जेपी समूह की अविश्‍वसनीय कहानी

1 hour ago

नई दिल्‍ली. इसमें कोई दो राय नहीं कि आजादी के बाद देश में, खासकर यूपी और राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में इन्‍फ्रा परियोजनाओं को विकसित करने में जेपी ग्रुप का अहम योगदान रहा है. एक समय इन्‍फ्रा सेक्‍टर की सबसे बड़ी कंपनियों में शुमार रहा जेपी ग्रुप आज दिवालिया हो चुका है. कंपनी के खिलाफ फर्जीवाड़ा सहित धनशोधन का भी मामला चल रहा है और प्रवर्तन निदेशालय ने भी कार्रवाई शुरू कर दी है. अब सवाल ये है कि आखिर इतनी ऊंचाई छूने के बाद कैसे कोई कंपनी गर्त में जा सकती है. इसकी शुरुआत कब हुई थी और किन कारणों से इसका पतन शुरू हुआ.

जेपी समूह के उत्‍थन और पतन की कहानी आपको बताने से पहले इसकी अहमियत और सफलताओं की थोड़ी जानकारी दे देते हैं. जेपी समूह वही कंपनी है जिसने यूपी के सोनभद्र जिले में ऐतिहासिक रिहंद बांध बनाने में बड़ी भूमिका निभाई. आप लखनऊ या आगरा से नोएडा जाते हैं तो बीच में पड़ने वाला यमुना एक्‍सप्रेसवे और बुद्ध सर्किट, जहां देश में पहली बार फॉर्मूला-1 कार की रेसिंग हुई, वह ट्रैक भी इसी कंपनी ने बनाया है. इसके अलावा भी दर्जनों प्रोजेक्‍ट जेपी समूह ने सफलतापूर्वक पूरे किए हैं.

ED, Delhi Zonal Office has today i.e. 13/11/2025 arrested Manoj Gaur, former Executive Chairman and Chief Executive Officer of M/s Jaiprakash Associates Ltd. (JAL) and former Chairman and Managing Director of M/s Jaypee Infratech Ltd. (JIL), under PMLA, 2002 in a matter related… pic.twitter.com/cJOtTijIXT

कब और किसने शुरू की थी कंपनी
जेपी ग्रुप जिसका पूरा नाम जयप्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड था, इसकी स्‍थापना जयप्रकाश गौड़ ने की थी. यूपी के बुलंदशहर जिले के छोटे से गांव से निकले जयप्रकाश गौड़ एक सिविल इंजीनियर थे. आजादी के बाद साल 1958 में जयप्रकाश ने इस कंपनी की शुरुआत की थी. तब उनका बजट भी कम था, लिहाजा छोटे-मोटे सरकारी टेंडर ही मिलते थे. चूंकि, वह खुद एक सिविल इंजीनियर थे, लिहाजा सिविल कंस्‍ट्रक्‍शन और सरकारी ठेकों को उन्‍होंने पूरी गुणवत्‍ता के साथ पूरा किया और धीरे-धीरे बड़ा नाम कमाया.

रिहंद बांध ने दिलाई पहचान
जेपी एसोसिएट्स को सबसे बड़ा ब्रेक 1960-70 के दशक में मिला. जब उन्‍हें यूपी सरकार की ओर से रिहंद बांध और यमुना हाइडल प्रोजेक्‍ट में बड़ा काम सौंपा गया. इस बड़े प्रोजेक्‍ट को बनाने के बाद जेपी समूह रुका नहीं और लगातार बांध, सड़के और सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करता गया. साल 1979 में जेपी समूह ने शेयर बाजार में दस्‍तक दी और स्‍टॉक एक्‍सचेंज पर लिस्‍ट हो गई. इसके बाद तो कंपनी को मिलने वाली फंडिंग और आसान बन गई. साल 1980 तक यह यूपी ही नहीं, उत्‍तर भारत की सबसे बड़ी कंस्‍ट्रक्‍शन कंपनी बन चुकी थी.

20 साल तक किया राज
जयप्रकाश गौड़ की ईमानदारी और गुणवत्‍ता से काम करने की वजह से उनकी कंपनी ने पूरे देश में एक अलग पहचान बना ली. साल 1990 के दशक में उदारीकरण के बाद तो इन्‍फ्रा परियोजनाओं की धूम मच गई और इसका सबसे बड़ा फायदा भी जेपी एसोसिएट्स को मिला. हाईवे, पॉवर प्‍लांट और रियल एस्‍टेट सेक्‍टर में एक के बाद एक बड़े प्रोजेक्‍ट बनाकर देश को सौंपे. कंपनी ने नोएडा से आगरा तक 165 किलोमीटर का देश का पहला प्राइवेट एक्‍सप्रेसवे (यमुना एक्‍सप्रेसवे) का सफलतापूर्वक निर्माण किया. ग्रेटर नोएडा में फॉर्मूला-1 के लिए बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट बनाया और मध्‍य प्रदेश व हिमाचल में कई पॉवर प्‍लांट्स का निर्माण किया.

नई पीढ़ी ने दिलाया बड़ा मुकाम
यह साल था 2000 के बाद का, जब कंपनी की कमान नई पीढ़ी के हाथ आ चुकी थी. जयप्रकाश गौड़ के दोनों बेटे जयपी गौड़ और मनोज गौड़ ने कंपनी की कमान संभाल ली थी. उन्‍होंने रियल एस्‍टेट में कदम रखा और जेपी विशटाउन जैसे बड़े प्रोजेक्‍ट शुरू किए. इस कंपनी ने स्‍पोर्ट्स सिटी, गोल्‍फ कोर्स सहित कई टाउनशिप बनाई. साल 2010 तक कंपनी का मार्केट कैप 60 हजार करोड़ रुपये पहुंच गया और यह भारत की टॉप इन्‍फ्रा कंपनियों में शुमार हो गई. दोनों भाइयों ने कंपनी को मल्‍टीनेशनल लेवल पर पहुंचाया.

फिर शुरू हुआ पतन का दौर
जेपी एसोसिएट्स के उत्‍थान और सफलता की जो कहानी पिछले 60 साल से चली आ रही थी, अब उसके पतन का दौर शुरू होने वाला था. इसकी शुरुआत साल 2012 से शुरू हुई, जब दोनों भाइयों ने अपनी महत्‍वाकांक्षा को पूरा करने के लिए आसपास कर्ज का जाल बुनना शुरू कर दिया. ग्रुप के पतन की वजह एक नहीं, बल्कि कई गलतियां थी. सबसे बड़ी वजह अत्‍यधिक कर्ज लेकर बड़े-बड़े खर्च करना था.

अंधाधुंध निवेश और देरी से रिटर्न
जेपी समूह के डूबने की बड़ी वजह रणनीति का अभाव रही. कंपनी ने साल 2010 से 2014 के बीच करीब 75 हजार करोड़ रुपये का कर्ज बैंकों और बॉन्‍ड्स के जरिये लिया. इन पैसों को एक्‍सप्रेसवे, पॉवर प्‍लांट्स और रियल एस्‍टेट में लगाया, लेकिन यहां से रिटर्न काफी देर में आया. नोएडा और ग्रेटर नोएडा में रियल एस्‍टेट प्रोजेक्‍ट शुरू किया, जहां हजारों फ्लैट बुक करने के लिए ग्राहकों से मोटा पैसा लिया. डिलीवरी में 10 साल से भी ज्‍यादा की देरी कर दी तो खरीदारों ने साल 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में कैस कर दिया.

कोर्ट के आदेश से हो गया पतन
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जेपी समूह को होमबायर्स के पैसे लौटाने का आदेश दिया. कंपनी ने इन पैसों को सीमेंट और पॉवर सेक्‍टर में लगा दिया था, जहां साल 2014 के कोलगेट घोटाले के बाद आवंटन रद्द कर दिया गया था. फॉर्मूला-1 ट्रैक भी बंद हो गया और साल 2016 में रेरा कानून लागू होने के बाद ब्‍याज दरें बढ़ी और कर्ज का बोझ भी बढ़ने लगा. जेपी समूह की सब्सिडियरी कंपनी जेपी इंफ्राटेक के खिलाफ एनसीएलटी में केस हो गया और 50 हजार करोड़ रुपये का डिफॉल्‍ट हो गया. कंपनी में 32 हजार होमबायर्स के 14 हजार करोड़ रुपये फंस गए और कंपनी दिवालिया हो गई. साल 2021 में इसका रिज्‍योलूशन शुरू हुआ और सुरक्षा समूह ने जेपी इन्‍फ्राटेक को खरीद लिया. इसके साथ ही जेपी समूह का कंट्रोल भी खत्‍म हो गया. जेपी एसोसिएट्स का मार्केट कैप अब सिर्फ 1,000 करोड़ के आसपास ही बचा है.

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