कृष्ण के सगे समधी थे दुर्योधन, बेटा-बेटी की शादी के बाद भी नहीं बनी कभी

4 hours ago

बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि कृष्ण और दुर्योधन सगे समधि थे. कृष्ण के बेटे की शादी दुर्योधन की इकलौती लड़की से हुई थी. हालांकि ये शादी बहुत अजीब तरीके से हुई. जिसको लेकर कृष्ण के बड़े भाई बलराम ने कौरवों को धमकी भी दे डाली थी. कौरव भी कृष्ण के बेटे पर खूब नाराज थे.क्योंकि बात ही ऐसी थी. ये कैसी शादी थी. और शादी के बाद समधि बनने के बाद भी दुर्योधन और कृष्ण अलग अलग ही रहे.

महाभारत में रिश्तों की ऐसी पहेलियां हैं कि जितनी इसे खोलते जाएंगे, उतना ही हैरान भी होंगे. जैसे कि कृष्ण और दुर्योधन का आपस में समधि होना लेकिन एक दूसरे के कभी साथ नहीं होना. ये कथा मुख्य तौर पर हरिवंश पुराण (महाभारत का उपपुराण) और महाभारत के अनुशासन पर्व तथा अश्वमेध पर्व में आती है.

कृष्ण के बेटे का नाम था साम्ब. दुर्योधन की बेटी का नाम था लक्ष्मणा. साम्ब स्वभाव से बहुत साहसी, उद्दंड और हठी माने जाते थे. वह कृष्ण और उनकी पत्नी जामवंती के पुत्र थे. उसको दुर्योधन की बेटी लक्ष्मणा से प्यार हो गया.

हरिवंश पुराण (पर्व 2, अध्याय 99) में कहा गया है कि साम्ब द्वारका से हस्तिनापुर आए थे. वहीं कौरव सभा या किसी नगर उत्सव में लक्ष्मणा को पहली बार देखा था. वो उससे इतना प्रभावित हुए कि मन ही मन उस पर मोहित हो गए. उसके सौंदर्य और गुणों की प्रशंसा करते हुए, उन्होंने निश्चय कर लिया कि
“यदि विवाह संभव न भी हो, तो मैं लक्ष्मणा को हरण कर लूंगा.”

दोनों एक दूसरे को चाहते थे.  दुर्योधन की पत्नी भानुमति जरूर इस बारे में जानती थी. वह चाहती भी थी कि ये शादी हो जाए लेकिन ये बात कभी जाहिर नहीं की. भानुमति खुद कृष्ण भक्त थी.

दुर्योधन नहीं चाहता था कि साम्ब की शादी उनकी बेटी से हो. इसका एक कारण अगर ये था कि वो कृष्ण को पसंद नहीं करता था और उन्हें पांडवों का घनिष्ठ मानता था तो उसे यादवों से भी ईर्ष्या थी. (News18 AI)

दुर्योधन क्यों इस शादी के लिए राजी नहीं था

कहा जाता है कि कौरवों को ये बात पता चल गई थी लेकिन कृष्ण के पांडवों के करीब होने की वजह से उन्हें ये कतई पसंद नहीं था कि उनके यहां की बेटी की शादी उनके बेटे से हो. दुर्योधन को कतई इस विवाह के लिए राज़ी नहीं थे, क्योंकि उन्हें यादवों से ईर्ष्या थी.

दुर्योधन की बेटी को साम्ब स्वयंवर से हरण कर ले गया

जब लक्ष्मणा के लिए स्वयंवर का आयोजन किया गया तो कृष्ण के बेटे साम्ब को इसमें नहीं आमंत्रित किया गया. स्वयंवर समारोह की सारी तैयारियां हो गईं. राजा और राजकुमार वहां पहुंच गए. जैसे ही लक्ष्मणा स्वयंवर में किसी और को वरमाला डालने जा रही थी, तभी साम्ब ने वहां पहुंचकर लक्ष्मणा का अपहरण कर लिया. अपने रथ पर बिठाकर वह वहां से भाग निकला. कौरव देखते रह गए.

फिर बलराम ने बीच में पड़कर कृष्ण के बेटे साम्ब की शादी दुर्योधन की बेटी लक्ष्मणा से कराई. (image generated by Leonardo AI)

साम्ब को बंदी लिया गया

कौरव बहुत क्रोधित हुए. उन्होंने भीष्म, द्रोण, कर्ण, और कृपाचार्य आदि के साथ साम्ब का पीछा किया. संघर्ष हुआ. साम्ब अकेले थे. इसलिए कौरवों ने उन्हें बंदी बना लिया.

तब क्रोधित बलराम हस्तिनापुर पहुंचे

जब यह बात द्वारका पहुंची, तो बलराम बहुत क्रोधित हुए. वह अकेले हस्तिनापुर पहुंचे. धृतराष्ट्र और कौरवों से बोले, “यदि आप लोगों ने साम्ब को नहीं छोड़ा तो तो मैं हस्तिनापुर को गदा प्रहार से गंगा में डुबो दूंगा.” बलराम के प्रचंड रूप को देखकर कौरव डर गए.

तब दोनों का विधिवत विवाह हुआ

धृतराष्ट्र ने माफ़ी मांगी और कहा, “हमसे भूल हुई. साम्ब और लक्ष्मणा का विधिवत विवाह करवा देंगे.” फिर साम्ब के साथ लक्ष्मणा का विवाह कराया गया. ये विवाह महाभारत युद्ध से पहले हुआ था. इस विवाह के पीछे राजनीतिक महत्व भी था. हालांकि ये कहा जाता है इस विवाह की जानकारी कृष्ण को भी नहीं थी. इसकी जानकारी उन्हें विवाह के बाद ही हुई. साम्ब और लक्ष्मणा का एक पुत्र हुआ था, जिसका नाम उष्ण या प्रद्युम्न भी मिलता है.

बलराम चाहते थे कि इस विवाह से यादव और कौरव वंश के बीच एक तरह का समझौता या सांठगांठ हो सके. हालांकि ऐसा हुआ नहीं. महाभारत युद्ध में इसका कोई विशेष असर नहीं पड़ा. हालांकि ये जरूर हुआ कि दुर्योधन युद्ध से पहले कृष्ण से मदद मांगने पहुंचे थे और कृष्ण ने उन्हें अपनी सेना दे दी थी.

कृष्ण की युक्ति के कारण ही फिर भीम ने महाभारत युद्ध के दौरान तालाब में छिपे दुर्योधन की हत्या अपने गदा के प्रहार से की. (News18AI)

कृष्ण की वजह से ही दुर्योधन मारा भी गया

कृष्ण ने दुर्योधन का समधि होने के बाद भी महाभारत के युद्ध में पांडवों का साथ दिया. जब महाभारत के युद्ध में दुर्योधन जान बचाकर भागा और एक तालाब में छिप गया, तो उसे कैसे निकाला जाए, ये युक्ति भी उन्होंने पांडवों को बताई और गदा युद्ध में दुर्योधन की जांघ पर प्रहार करने की युक्ति भी उन्होंने ही भीम को बताई.

हालांकि ये भी कहना चाहिए बेशक कृष्ण समधि थे लेकिन कभी दुर्योधन ने भी उन्हें वो सम्मान नहीं दिया, जो देना चाहिए था. जब कृष्ण पांडवों के वनवास के बाद मध्यस्थ बनकर हस्तिनापुर के दरबार में पहुंचे थे, तब दुर्योधन ने तो उन्हें बंदी बनाने की योजना तक बना ली थी.

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