Brahmin Origin: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने रूस-यूक्रेन युद्ध से भारत पर लाभ उठाने का आरोप लगाया है. नवारो ने कहा कि भारत मास्को से तेल कम कीमत पर खरीदकर, उसे परिष्कृत करके यूरोप और अन्य जगहों पर खरीदारों को बेच रहा है. फॉक्स न्यूज़ को दिए एक इंटरव्यू में व्हाइट हाउस के सलाहकार नवारो ने नई दिल्ली को ‘क्रेमलिन के लिए एक लॉन्ड्रोमैट’ करार दिया और देश के अभिजात वर्ग पर भारतीय लोगों की कीमत पर मुनाफाखोरी करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, “कुछ ब्राह्मण अपने फायदे के लिए आम लोगों का नुकसान कर रहे हैं, और इसे बंद होना चाहिए.”
ट्रंप के व्यापार प्रमुख ने दावा किया कि यूक्रेन पर पूर्ण हमले से पहले भारत रूस से ज्यादा तेल नहीं खरीदता था, लेकिन अब वह ‘रूसी युद्ध मशीन’ को बढ़ावा दे रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय रिफाइनरियां रियायती दरों पर रूसी कच्चा तेल खरीद रही हैं, उसका प्रसंस्करण कर रही हैं और उसे प्रीमियम पर निर्यात कर रही हैं. उन्होंने कहा, “इससे यूक्रेन के लोग मारे जा रहे हैं…और करदाताओं के तौर पर हमें क्या करना होगा? हमें उन्हें और अधिक धन भेजना होगा.” पीटर नवारो की यह टिप्पणी ऐसे समय में आयी थी, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन के लिए चीन जा रहे थे. यह पिछले सात वर्षों में उनकी पहली चीन यात्रा थी.
नवारो के इस बयान के बाद से ब्राह्मण शब्द चर्चा में है. हालांकि नवारो के इस बयान का आशय संभवत: भारत के आभिजात्य वर्ग से है. लेकिन इसी बहाने ब्राह्मणों के बारे में और जानकारी हासिल करते हैं.
कैसे हुई ब्राह्मणों की उत्पत्ति
ब्राह्मण कैसे पैदा हुए? इसका पहली बार उल्लेख 1500–1000 ई.पू. ऋग्वैदिक युग में मिलता है. उसके अनुसार भारत में आर्यों के आगमन के बाद सबसे पुरानी धार्मिक-सामाजिक संरचना वैदिक यज्ञों पर आधारित थी. इनमें सभी लोगों के लिए अलग-अलग भूमिकाएं थीं. उस समय सामाजिक संरचना चार वर्गों में बंटी हुई थी. 1 यज्ञ कराने वाले (ऋत्विज), 2 राजा और योद्धा, 3 किसान और पशुपालक, 4 सेवक. धीरे-धीरे वर्ण व्यवस्था में बदलाव हुए. ज्ञानी और यज्ञ करने वालों को ब्राह्मण कहा जाने लगा. शासन और युद्ध करने वाले क्षत्रिय हो गए. कृषि और व्यापार करने वाले वैश्य की श्रेणी में आ गए. सेवा करने वाले शूद्र कहे जाने लगे.
और क्या हैं मान्यताएं
मनुष्य की उत्पत्ति के बारे में हिंदू धर्म में कई अलग-अलग मान्यताएं और कथाएं हैं. इनमें से एक बहुत ही प्रमुख मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी के मुख से ब्राह्मणों की उत्पत्ति हुई. इस मान्यता के पीछे की कहानी यह है कि जब ब्रह्मा जी ने इस ब्रह्मांड की रचना की तो उन्होंने मानव समाज को चार मुख्य वर्णों में बांटा.
ये चार वर्ण थे
ब्राह्मण: इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा जी के मुख से हुई. इन्हें ज्ञान, शिक्षा और धार्मिक कार्यों का प्रतीक माना जाता है.
क्षत्रिय: इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा जी की भुजाओं से हुई. इन्हें रक्षा और शासन का प्रतीक माना जाता है.
वैश्य: इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा जी की जांघों से हुई. इन्हें व्यापार और कृषि का प्रतीक माना जाता है.
शूद्र: इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा जी के पैरों से हुई. इन्हें सेवा और श्रम का प्रतीक माना जाता है.
यह विभाजन समाज में अलग-अलग कार्यों को व्यवस्थित करने के लिए किया गया था. यह सिद्धांत ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में भी मिलता है, जिसमें विराट पुरुष के अंगों से चारों वर्णों की उत्पत्ति का वर्णन किया गया है. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह विभाजन कर्म के आधार पर था, न कि जन्म के आधार पर. यानी, जो व्यक्ति ज्ञान और धर्म के क्षेत्र में काम करता था वह ब्राह्मण कहलाता था. यह व्यवस्था समय के साथ जन्म-आधारित हो गई, जिस वजह से इसमें कुछ जटिलताएं और बदलाव आए.
क्या थी ब्राह्मणों की भूमिका
वेदों का ज्ञान, यज्ञ-विधि और मंत्रों की परंपरा एक विशेष वर्ग के पास रही. इससे उनका धार्मिक और सामाजिक दर्जा ऊंचा हुआ. इसी कारण ब्राह्मण एक स्वतंत्र सामाजिक समूह के रूप में उभरे.
कैसे उपजातियों में बंटे ब्राह्मण?
समय के साथ ब्राह्मणों का कार्य और भौगोलिक विस्तार बढ़ता गया. इससे उपजातियां बनीं.
भौगोलिक आधार पर
उत्तर भारत में: कान्यकुब्ज, सारस्वत, मैथिल, गौड़ आदि
दक्षिण भारत में: अय्यर, अय्यंगार, नंबूदरी, देशस्थ, चितपावन आदि
पूर्व भारत में : राढ़ीय, वरेंद्र, उज्जैनी इत्यादि
व्यावसायिक आधार पर: व्यावसायिक आधार पर भी ब्राह्मणों में बंटवारा हो गया. कुछ यज्ञकर्मी रहे, कुछ मंदिरों से जुड़े, कुछ शिक्षक (आचार्य) बने, कुछ दरबारों में मंत्री या ज्योतिषी बन गए.
स्थानीय रीति-रिवाज: भाषा, खान-पान, विवाह परंपरा, यहां तक कि पूजा-पद्धति के फर्क से भी उपजातियां बनीं.
ब्राह्मण कैसे फैले: ब्राह्मणों को राजाओं का संरक्षण हासिल हुआ. अलग-अलग राज्यों ने यज्ञ औक पूजा के लिए पुरोहितों और विद्वानों को बसाया. जैसे काशी, मिथिला, उज्जैन, तंजावुर, कांचीपुरम, त्रिवेंद्रम ब्राह्मणों के मुख्य केंद्र बन गए.
ब्राह्मणों का माइग्रेशन: उत्तर भारत से ब्राह्मण दक्षिण में बसाए गए (चोल, पल्लव, विजयनगर काल में).
बंगाल और असम में गौड़ ब्राह्मणों को बसाया गया. नेपाल और कश्मीर में भी वे प्रमुख हुए.
विद्या और ज्ञान: विश्वविद्यालयों (नालंदा, तक्षशिला, कांची) को बनाने में भी ब्राह्मण विद्वानों ने योगदान दिया.
क्या दुनिया में ब्राह्मण जैसी कोई जाति है?
भारत में ब्राह्मण जन्म से तय जाति बन गए. जबकि दुनिया के अधिकतर समाजों में पुजारी होना पेशा रहा, वंशगत पहचान कम. ब्राह्मण भारत की सामाजिक संरचना का धार्मिक-वैदिक उत्पाद हैं. वे ज्ञान और यज्ञ परंपरा से पैदा हुए. समय के साथ सैकड़ों उपजातियों में बंटे. राजकीय संरक्षण और विद्या प्रसार से पूरे उपमहाद्वीप में फैले. दुनिया में भी कई पुजारी वर्ग रहे, लेकिन उन्हें भारत जैसा वंशगत, स्थायी और व्यापक सामाजिक दर्जा शायद ही कहीं मिला.
ठीक ब्राह्मण जैसा वर्ग तो दुनिया में कहीं नहीं रहा, लेकिन कई समाजों में पुजारी या धार्मिक ज्ञान रखने वाले समूह ऊंचे दर्जे पर रहे.
मिस्र: पुजारी वर्ग जो फ़राओ को ईश्वर और जनता के बीच का सेतु मानते थे.
यूनान और रोम: ओरैकल्स, पुजारियों और दार्शनिकों को समाज में ऊंचा दर्जा.
यहूदी समाज: लेवी और कोहेन पुजारी वर्ग.
जापान: शिंतो पुजारी और बौद्ध भिक्षु.
मध्यकालीन यूरोप: ईसाई चर्च का पादरी वर्ग जिसने शिक्षा, आस्था और राजनीति पर पकड़ रखी.
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