Last Updated:September 04, 2025, 15:54 IST
यमुना इन दिनों उफन रही है. 1978 में दिल्ली में सबसे भयंकर बाढ़ आई थी. तब यमुना का जलस्तर सबसे उच्च स्तर पर चला गया था. उससे दिल्ली में काफी तबाही हुई थी

दिल्ली में बाढ़ की स्थिति है. यमुना का जलस्तर 207.48 मीटर पर रिकॉर्स्थिड किया गया. बाढ़ का पानी दिल्ली सचिवालय के आस-पास के इलाकों तक पहुंचा तो नोएडा के कई हिस्सों में घुस गया है. क्या आपको मालूम है कि दिल्ली में सबसे भयंकर बाढ़ कब आई थी. तब बाढ़ ने दिल्ली में बहुत तबाही मचाई थी. ये केवल दिल्ली ही नहीं बल्कि उत्तर भारत में हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब की सबसे बड़ी बाढ़ों में गिनी जाती है.
दिल्ली की सबसे भयंकर बाढ़ 1978 में आई थी. यही महीना था यानि सितंबर. काफी ज्यादा बारिश और हिमालय से पानी के तेज़ बहाव की वजह से दिल्ली में बाढ़ आ गई. हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी हुई तेज बारिश ने दिल्ली की हालत और खराब कर दी.
नदी के कैचमेंट एरिया से इतना पानी आया कि यमुना अपने रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई. तब हथिनीकुंड (तब ताजेवाला बैराज कहा जाता था) से भारी मात्रा में पानी छोड़ा गया, जिसने सीधे दिल्ली में बाढ़ आ गई.
द हिन्दू अखबार में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, उस बाढ़ के गवाह रहे लोग आज भी उसे याद करके डर जाते हैं. रातों रात नदी उफनता पानी घरों तक आ पहुंचा था. सभी अपनी जान को लेकर बहुत डरे हुए थे. यहां से निकलने की कोई ऐसी सुविधा नहीं थी. तो सैकड़ों लोगों ने अपनी छतों पर ही शरण ली थी. नये बने हुए बांध ने जरूर इस बाढ़ की विभीषिका को थोड़ा थामा था. तब लोगों ने थोड़ी-बहुत रोटी, आटा, पानी और दवाइयां इकट्ठा करके कई दिनों तक अपनी छत पर डेरा जमाए रखा.
सबसे उच्च स्तर पर पहुंचा था यमुना का जलस्तर
तब यमुना का जलस्तर मौजदा जलस्तर से हल्का सा ऊपर था, ये 207.49 मीटर हो गया था. हालांकि 2023 में भी पानी 208 मीटर के करीब गया, मगर 1978 की तरह तबाही नहीं हुई.
1978 में दिल्ली के बड़े हिस्से जलमग्न हो गए. खासकर निचले इलाके जैसे गेट नंबर-1 से लेकर कश्मीरी गेट, लोहे का पुल, आईटीओ, यमुना बाजार, गांधीनगर, यमुना पार वाला इलाका पानी में डूब गए. यमुना पार की बस्तियां पूरी तरह पानी में चली गईं. हजारों घर ढह गए, लाखों लोग बेघर हुए. प्रशासन को लाल किला, राजघाट और यमुना किनारे के इलाकों से लोगों को नावों और ट्रैक्टरों से निकालना पड़ा.
रेलें और बसें रुक गईं, राहत शिविर भर गए थे
तब दिल्ली में करीब 3 से 5 लाख लोग प्रभावित हुए. कई दिनों तक दिल्ली में रेल और सड़क यातायात बाधित रहा. सरकार ने लोगों को राहत शिविरों में रखा. उस दौर में दिल्ली की आबादी आज की तुलना में कम थी. लेकिन इस बाढ़ से पहली बार दिल्ली जैसे “मेट्रोपोलिटन शहर” में बड़ी अव्यवस्था और विस्थापन देखने को मिला.
फिर बाढ़ नियंत्रण पर काम शुरू हुआ
1978 की बाढ़ के बाद दिल्ली में बाढ़ नियंत्रण योजनाओं पर गंभीरता से काम शुरू हुआ. यमुना के किनारे तटबंधों को मज़बूत करने, बाढ़ चेतावनी सिस्टम और ड्रेनेज सुधारने की दिशा में योजनाएं बनीं. लोगों की स्मृति में यह बाढ़ आज भी सबसे बड़ी आपदा मानी जाती है. 1978 की बाढ़ ने दिल्ली को यह सबक दिया कि यमुना सिर्फ़ एक शांत नदी नहीं, बल्कि गुस्से में आने पर शहर को पंगु बना सकती है.
कितने दिनों तक दिल्ली में रही बाढ़
ये बाढ़ करीब 5-6 दिनों तक दिल्ली में बनी रही. बाढ़ का पूरा असर करीब 10–12 दिनों तक चला, क्योंकि राहत और पुनर्वास में लंबा समय लगा. उस दौर में पंपिंग सिस्टम और ड्रेनेज इतना विकसित नहीं था, इसलिए पानी जल्दी निकल नहीं पाया. कई इलाक़ों में 10 दिन बाद भी कीचड़ और गंदगी बनी रही. सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक़ 18 लोग मारे गए. करीब 3.5 लाख लोग प्रभावित हुए. हज़ारों घर उजड़ गए.
3–4 सितंबर 1978 – यमुना का जलस्तर तेजी से बढ़ना शुरू हुआ.
5 सितंबर – पानी ने खतरनाक स्तर (207 मीटर के करीब) छू लिया. चारों पुल (लोहे का पुल, वजीराबाद, ओखला, आईटीओ क्षेत्र का पुल) एहतियातन 48 घंटे के लिए बंद कर दिए गए.
6 सितंबर (रात तक) – यमुना का जलस्तर 207.47 मीटर पहुंच गया. यह सबसे ऊंचा स्तर था. उस दिन हालात “बहुत खतरनाक” घोषित किए गए.
7–8 सितंबर – बाढ़ का पानी दिल्ली के निचले इलाकों (कश्मीरी गेट, यमुना बाजार, राजघाट, शांति वन, विजय घाट, यमुना पार बस्तियां) में गहराई तक भरा रहा.
9 सितंबर से आगे – धीरे-धीरे जलस्तर गिरने लगा, लेकिन पानी उतरने और लोगों को राहत देने में कई दिन लगे.
नदी के खतरे के निशान के कितने स्तर
निगरानी स्तर – ये खतरे के निशान से नीचे का एक स्तर होता है. जब पानी इस स्तर को पार करता है, तो अधिकारी सतर्क हो जाते हैं. नदी के जलस्तर पर निगरानी बढ़ा देते हैं. ये एक शुरुआती चेतावनी की तरह है.
खतरे का निशान – ये वो स्तर है, जहां से स्थिति गंभीर होनी शुरू होती है. निगरानी बढ़ा दी जाती है. खतरे के निशान को पार करना एक अर्ली वार्निंग सिस्टम की तरह है. इसका मुख्य उद्देश्य प्रशासन और जनता को समय रहते सचेत करना और आपदा से निपटने के लिए तैयारी शुरू करना है ताकि जान-माल के नुकसान को कम से कम किया जा सके. “खतरे का निशान” वास्तव में एक चेतावनी का पहला स्तर है.
जब पानी इस रेखा को पार करता है, तो इसका मतलब है कि नदी अपने किनारों से ऊपर बहने लगेगी और आस-पास के निचले इलाकों में बाढ़ का पानी घुसने लगेगा.
अत्यंत खतरे का निशान – जब पानी इस स्तर को पार करता है, तो स्थिति बहुत गंभीर हो जाती है. बड़े पैमाने पर तबाही की आशंका रहती है. बचाव और राहत कार्य तेज कर दिए जाते हैं.
अभूतपूर्व स्तर (Unprecedented Level) – ये वो स्थिति है जब नदी का जलस्तर अब तक के Record किए गए “सबसे ऊँचे बाढ़ स्तर” से भी ऊपर चला जाता है. यह एक अप्रत्याशित और बेहद विनाशकारी स्थिति होती है.
Sanjay Srivastavaडिप्टी एडीटर
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...और पढ़ें
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...
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Location :
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
First Published :
September 04, 2025, 15:54 IST