कश्मीर में पड़ रही रिकॉर्ड तोड़ गर्मी, क्यों आयी ये नौबत, क्या यह चिंताजनक?

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Last Updated:July 08, 2025, 18:50 IST

Kashmir's Extreme Weather: कश्मीर में लगातार तापमान बढ़ रहा है, लेकिन पिछले दिनों श्रीनगर और पहलगाम में रिकॉर्डतोड़ गर्मी पड़ी. इसने एक नई बहस को जन्म दिया है.

कश्मीर में पड़ रही रिकॉर्ड तोड़ गर्मी, क्यों आयी ये नौबत, क्या यह चिंताजनक?

झेलम नदी के जलस्तर में 30% की गिरावट से दैनिक जीवन और कृषि प्रभावित हुई है.

हाइलाइट्स

श्रीनगर में तापमान 37.4°C पहुंचा, पहलगाम में 31.1°Cग्लोबल वार्मिंग, कम बर्फबारी और अर्बन हीट आइलैंड कारणपर्यावरण और अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर

What Is Kashmir’s Extreme Weather Flip: कश्मीर घाटी में 5 जुलाई को सात दशकों में सबसे ज्यादा तापमान दर्ज किया गया. शनिवार को श्रीनगर में 37.4 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया गया. जो शहर का अब तक का तीसरा सबसे ज्यादा तापमान है. यह सिर्फ 1953 और 1946 के रिकॉर्ड से पीछे है. जबकि शनिवार को पहलगाम में 31.1 डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ यह अब तक का सबसे गर्म दिन रहा. घाटी में पिछले पांच दशकों में सबसे ज्यादा गर्म जून के बाद ये रिकॉर्ड तोड़ने वाले तापमान देखने को मिले हैं.  

करीब 50 सालों में सबसे गर्म जून (शेर-ए- कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नॉलाजी के अनुसार 1975 के बाद से शीर्ष 3 में से एक) के बाद अचानक बढ़ी गर्मी ने स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों दोनों को आश्चर्यचकित कर दिया है. अपनी हल्की गर्मियों और बर्फ से ढकी सर्दियों के लिए मशहूर कश्मीर की जलवायु तेजी से बदल रही है. भीषण गर्मी और असामान्य रूप से शुष्क मौसम के कारण दैनिक जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र पर समान रूप से असर पड़ रहा है. कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स के अनुसार इस क्षेत्र में कभी दुर्लभ माने जाने वाले एयर कंडीशनर और कूलर की मांग में 180 फीसदी की वृद्धि हुई है. तापमान में अचानक वृद्धि के पीछे क्या कारण है और कश्मीर के भविष्य के लिए इसका क्या मतलब हो सकता है?

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कैसी है कश्मीर की जलवायु?
कश्मीर घाटी में आम तौर पर चार अलग-अलग मौसमों के साथ समशीतोष्ण जलवायु होती है. वसंत, ग्रीष्म, शरद ऋतु और सर्दी. इनमें वसंत (मार्च से मई) और शरद ऋतु (सितंबर से नवंबर) आम तौर पर सुखद होते हैं. सर्दियों (दिसंबर से फरवरी) में तापमान शून्य से काफी नीचे चला जाता है. ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भारी बर्फबारी और मैदानी इलाकों में मध्यम बर्फबारी होती है. ग्रीष्मकाल (जून से अगस्त) में दिन का तापमान शहरी क्षेत्रों में 36 डिग्री सेल्सियस और गुलमर्ग और पहलगाम जैसे हरे-भरे पर्यटन स्थलों में लगभग 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है. नियमित वेस्टर्न डिस्टर्बेंस के कारण रुक-रुक कर बारिश होती है, जिससे मौसम ठंडा रहता है. जुलाई और अगस्त आम तौर पर साल के सबसे गर्म महीने होते हैं.

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क्या हुआ मौसम में बदलाव?
पिछले कुछ सालों में कश्मीर का मौसम लगातार अनिश्चित होता जा रहा है. घाटी में लंबे समय तक सूखा रहा है और तापमान में लगातार वृद्धि हुई है. इस साल, जून में करीब 50 साल में सबसे गर्म महीना दर्ज किया गया. जिसमें दिन का तापमान सामान्य से करीब तीन डिग्री अधिक रहा. शनिवार (5 जुलाई) को श्रीनगर में अधिकतम तापमान 37.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो पिछले सात दशकों में सबसे अधिक और शहर में अब तक का तीसरा सबसे अधिक तापमान है. 1953 में इसी दिन श्रीनगर में थोड़ा अधिक तापमान 37.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था. अब तक का सबसे अधिक तापमान 38.3 डिग्री सेल्सियस है, जो 10 जुलाई, 1946 को दर्ज किया गया था. इस बीच, पहलगाम में अब तक का सर्वाधिक तापमान 31.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. जिसने पिछले साल जुलाई में दर्ज 31.5 डिग्री के रिकार्ड को तोड़ दिया.

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क्या यह चिंताजनक है?
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक इंडिपेंडेंट मौसम पूर्वानुमानकर्ता फैजान आरिफ ने कहा कि चिंताजनक बात यह है कि इस साल घाटी में लगातार पारा ऊंचा बना हुआ है. आरिफ ने कहा, “हमारे यहां पहले भी तापमान अधिक रहा है, लेकिन वे छिटपुट घटनाएं थीं.” “इस साल तापमान लगातार सामान्य से ऊपर बना हुआ है. अधिकतम और न्यूनतम तापमान दोनों ही ऊंचे बने हुए हैं.” बढ़ती गर्मी पर्यटकों को आकर्षित करने में बाधा बन सकती है. जिससे पर्यटन उद्योग और स्थानीय अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा. कश्मीर में तापमान में वृद्धि एक गंभीर चिंता का विषय है जिसके दूरगामी परिणाम होंगे. यह न केवल पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है, बल्कि स्थानीय आबादी के जीवन और आजीविका के लिए भी खतरा है.

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तापमान में वृद्धि के कारण?
श्रीनगर स्थित भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के निदेशक मुख्तार अहमद ने तापमान वृद्धि के लिए कई कारकों को जिम्मेदार ठहराया. अहमद कहते हैं, “सबसे पहले, ग्लोबल वार्मिंग के कारण दुनिया भर में तापमान बढ़ रहा है. कश्मीर में पहले जब भी तापमान 35 डिग्री सेल्सियस को पार करता था, तो बारिश होती थी. जिससे राहत मिलती थी. लेकिन अब हम लंबे समय तक सूखे की स्थिति देख रहे हैं.” उन्होंने बताया कि इसका एक मुख्य कारण जल वाष्प की कम उपलब्धता है. अहमद ने कहा, “पहाड़ों में बहुत कम बर्फबारी हुई है, और जो भी बर्फ गिरती है वह मार्च तक पिघल जाती है. जिससे पहाड़ नंगे हो जाते हैं.” अहमद ने अर्बन हीट आइलैंड (यूएचआई) की भूमिका की ओर भी इशारा किया, जो गर्मी को बढ़ाते हैं.

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क्या हैं अर्बन हीट आइलैंड?
अर्बन हीट आइलैंड (UHI) एक महानगरीय या शहरी क्षेत्र है जो अपने आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में काफी गर्म होता है. यू्चआई का निर्माण तेजी से शहरीकरण, कंक्रीटीकरण, मैकडैमाइजेशन, कम जल निकायों और कम वनस्पति के कारण होता है. घाटी के शहरी इलाकों – खास तौर पर श्रीनगर – को इस तरह से बनाया गया है कि आस-पास के ग्रामीण इलाकों की तुलना में हरियाली के लिए बहुत कम जगह बचती है. शहरी सतहें ज्यादा गर्मी बनाए रखती हैं, जिससे तापमान बढ़ता है. वाहनों की आवाजाही और औद्योगिक गतिविधि से स्थिति और भी खराब हो जाती है.

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क्या होंगे इसके परिणाम?
वर्तमान में कश्मीर में तापमान में वृद्धि एक चिंताजनक प्रवृत्ति है और इसके कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं. पिछले कुछ दशकों से कश्मीर घाटी में औसत तापमान में लगातार वृद्धि देखी गई है. विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि वार्षिक औसत तापमान में वृद्धि दर वैश्विक औसत से अधिक हो सकती है. गर्मियां लंबी और अधिक गर्म होती जा रही हैं. लू (हीटवेव) की घटनाओं में वृद्धि हुई है जिससे न केवल मानव स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, बल्कि कृषि और पर्यावरण पर भी दबाव बढ़ता है. सर्दियों में भी तापमान में वृद्धि देखी गई है. जिसके परिणामस्वरूप कम बर्फबारी होती है और बर्फबारी का पैटर्न भी अनियमित हो गया है. यह स्कीइंग जैसे पर्यटन उद्योगों के लिए एक बड़ा खतरा है. 

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जल संसाधन भी खतरे में
हिमालयी क्षेत्र, जिसमें कश्मीर भी शामिल है, दुनिया के सबसे तेजी से पिघलने वाले ग्लेशियरों में से एक है. तापमान में वृद्धि इस प्रक्रिया को तेज कर रही है. उदाहरण के लिए, अमरनाथ गुफा के पास के ग्लेशियरों सहित कई ग्लेशियरों का आकार लगातार घट रहा है. कश्मीर की नदियां, झरने और झीलें मुख्य रूप से ग्लेशियरों और बर्फबारी के पिघलने वाले पानी से पोषित होती हैं. तापमान बढ़ने से ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे शुरुआत में तो पानी की मात्रा बढ़ेगी, लेकिन लंबे समय में यह जल स्रोतों के सूखने का कारण बन सकता है. इससे पीने के पानी, सिंचाई और पनबिजली उत्पादन पर गंभीर असर पड़ेगा. तापमान बढ़ने से पारंपरिक फसलों के लिए अनुकूल परिस्थितियां बदल रही हैं. सेब, केसर और अन्य विशिष्ट कश्मीरी उत्पादों की खेती पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. बढ़ती गर्मी के कारण फसलों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है, जिससे पहले से ही तनावग्रस्त जल संसाधनों पर और दबाव पड़ता है. कश्मीर में तापमान में वृद्धि एक गंभीर चिंता का विषय है जिसके दूरगामी परिणाम होंगे. 

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