कभी जिगरी यार थे इजरायल और ईरान, अरब देशों से लिया लोहा, फिर कैसे बिगड़ी बात

1 day ago

Israel Iran Relations: ईरान और इजरायल भले ही आज युद्ध के मैदान में एक-दूसरे के खून के प्यासे हो गए हों, लेकिन दोनों देशों के रिश्तों का इतिहास कुछ और रहा है. 1947 में जब ब्रिटिश कब्जे वाले फलस्तीन क्षेत्र से अलग इजरायल अस्तित्व में आया तो ईरान उन 13 देशों में था, जिसने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के विरोध में वोट दिया था.1948 में जब इजरायल की स्थापना हुई तो ईरान समेत ज्यादातर मुस्लिम देशों ने उसे मान्यता देने से इनकार किया. लेकिन शिया बहुल ईरान की अरब देशों से पुरानी खुन्नस थी. लिहाजा ईरान ने इजरायल को गुपचुप तरीके से मदद देनी शुरू की.

ईरान में जब पश्चिमी देशों के समर्थन वाली मोहम्मद रजा पहलेवी की सरकार आई तो दोनों की दोस्ती खुलकर सामने आई. कोल्ड वॉर के समय ईरान अमेरिका का खासमखास था. ईरान और अमेरिका की दोस्ती हुई तो इजरायल भी उसका अटूट हिस्सा हो गया. 

इजरायल ने 1950 और 1960 के दशक में पेरिफरी डॉक्ट्रिन का सहारा लिया और उसने मध्य पूर्व में गैर अरब मुल्कों से नजदीकी बढ़ाना शुरू की, जो अरब देशों की दादागीरी के खिलाफ थे. ईरान,इथियोपिया और तुर्की ऐसे ही देश थे, जो सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों की पूरे अरब में हुकूमत चलाने के खिलाफ थे. सोवियत संघ का अरब देशों के साथ पूरा सैन्य सहयोग था. इजरायली पीएम डेविड बेन गुरियन और तुर्की के पीएम अदनान मंदेरेस की सीक्रेट मुलाकात भी हुई. इससे ईरान-तुर्की और इजरायल की एक तिकड़ी मध्य पूर्व में तैयार हुई. इन देशों ने एक दूसरे के साथ व्यापार, खुफिया जानकारी साझा करने के साथ हथियार भी बेचे. इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद और ईरान की स्पाई एजेंसी  SAVAK ने भी साथ-साथ काम किया. इजरायल ने ईरान को सैन्य विशेषज्ञ भी मुहैया कराए. 

इजरायल पर 1967 के युद्ध में जब सात देशों ने मिलकर हमला बोला था, तब ईरान उसकी मदद को आगे आया. ईरान ने इजरायल को कच्चा तेल मुहैया कराया. इससे इजरायली सेना ने चक्रव्यूह तोड़ते हुए हमलावर अरब मुल्कों को हरा दिया. इजरायली सेना ने सिनाई प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया. 1975 में दोबारा इजरायली सेना मिस्र के सिनाई में घुसी तो भी ईरान ने तेल आपूर्ति में मदद की.बदले में इजरायल ने ईरान में कृषि और पुल-सड़क निर्माण में खूब मदद की. उसे मिसाइलों और अन्य हथियार बेचें. इराक में कुर्द विद्रोहियों को ईरान के समर्थन के पक्ष में भी इजरायल खड़ा नजर आया. ईरान में करीब 90 हजार यहूदियों को भी संरक्षण मिला. 

ईरान के शासक शाह को डर था कि इस्लामिक देशों के खिलाफ यहूदी देश इजरायल को मदद देना उन्हें भारी पड़ सकता है. 1979 में ऐसा ही हुआ और इस्लामिक क्रांति के जरिये ईरान में तख्तापलट हो गया. ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खमनेई ने इजरायल की मान्यता खत्म करने के साथ फलस्तीन का समर्थन किया और उसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया. उससे सारे कूटनीतिक रिश्ते तोड़ते हुए सभी इजरायली सैन्य कर्मियों को वापस भेज दिया. ईरान में इजरायली दूतावास को फलस्तीन  लिबरेशन आर्गेनाइजेशन को दे दिया. 

हमास और हिजबुल्ला को पाला-पोसा
ईरान और इजरायल के बीच सीधी सीमा न होने और दो हजार किलोमीटर की दूरी के कारण उसने दूसरा रास्ता चुना. ईरान ने आतंकी समूहों हिजबुल्ला और हमास को पाला-पोसा औऱ हथियार मुहैया कराए. लेबनान में सक्रिय हिजबुल्ला और फलस्तीन में हमास ने इजरायल पर ताबड़तोड़ आतंकी और आत्मघाती हमलों को अंजाम दिया. 

गालियां खाकर भी समर्थन दिया
ईरान में इस्लामिक क्रांति 1979 के बाद भी इजरायल ने उसकी मदद की. दरअसल, 1980 में ईरान-इराक युद्ध शुरू हो गया. इजरायल सद्दाम हुसैन के शासन वाले इराक को ज्यादा बड़ा खतरा समझता था. लिहाजा उसने गोपनीय ढंग से ईरान को मिसाइल-तोपों समेत बड़े हथियार दिए, उनकी ट्रेनिंग कराई और पैसा भी दिया. लेकिन इसका भंडाफोड़ होते ही अमेरिका भी चौंक गया.अमेरिकी हथियार भी इजरायल ने ईरान को दिए थे.

ईरान का परमाणु हथियार कार्यक्रम
दोनों देशों के बीच दुश्मनी का दौर 1990 में शुरू हुआ, जब ईरान ने पाकिस्तान की मदद से परमाणु हथियार कार्यक्रम शुरू किया. ईरान ने लेबनान में हिजबुल्ला, फलस्तीन में हमास और यमन में हुती विद्रोहियों को भी मुखौटा संगठनों की तरह इजरायल के खिलाफ इस्तेमाल करना शुरू किया. ईरान का इराक-लेबनान, सीरिया-यमन में दखल बढ़ा तो इजरायल ने अरब देशों से नजदीकी बढ़ाई. गाजा पट्टी से फलस्तीनियों को खदेड़े जाने, सितंबर 2024 में ईरान में हिजबुल्ला चीफ नसरल्लाह की हत्या के बाद युद्ध भड़का. ईरान ने इजरायल पर ड्रोन हमले किए. अमेरिका और ईरान की एटमी डील खटाई में अटकने के बाद इजरायल ने 12 जून को युद्ध का ऐलान कर दिया. 

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