Last Updated:November 06, 2025, 17:42 IST
PIL on Air Pollution in Supreme court: दिल्ली समेत देशभर में बढ़ते प्रदूषण और जहरीली हवा के हालात पर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है. याचिकाकर्ता ल्यूक क्रिस्टोफर कॉउटिन्हो ने कोर्ट से मांग की है कि देश में नेशनल हेल्थ इमरजेंसी घोषित की जाए. उन्होंने कहा कि करोड़ों भारतीय रोज जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं और सरकारें प्रदूषण नियंत्रण में नाकाम रही हैं.
सुप्रीम कोर्ट में याचिका लेकर पहुंचा शख्स. दिल्ली की हवा में घुला जहर का मसला अब सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तक पहुंच गया है. राजधानी की धुंध कभी सर्दियों की पहचान हुआ करती थी लेकिन अब मौत की परछाईं बन चुकी है. इस दमघोंटू माहौल से त्रस्त होकर भारत के पर्यावरण विद ल्यूक क्रिस्टोफर कॉउटिन्हो सीधे सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है कि देश में अब नेशनल हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दीजिए क्योंकि भारत के लोग अब सांस नहीं ले पा रहे. याचिका में यह कहा गया कि सिर्फ दिल्ली में करीब 22 लाख स्कूली बच्चों को फेफड़ों में इतना नुकसान हो चुका है कि रिकवरी मुश्किल है. इसकी पुष्टि मेडिकल स्टडी से भी हुई है.
कॉउटिन्हो ने अपनी जनहित याचिका (PIL) में कहा है कि चाहे दिल्ली हो या लखनऊ मुंबई हो या कोलकाता, हर जगह हवा जहर बन चुकी है. उनकी अर्जी में लिखा है कि देश के 1.4 अरब नागरिक हर दिन धीरे-धीरे प्रदूषण के जहर में जीने को मजबूर हैं और सरकारें केवल बैठकों व घोषणाओं में व्यस्त हैं. उन्होंने यह भी कहा कि अगर यही हाल रहा तो आने वाली पीढ़ियां स्वच्छ भारत नहीं, बल्कि स्मॉग वाला भारत विरासत में पाएंगी.
याचिका में संविधान के अनुच्छेद 21 यानी जीवन और स्वास्थ्य के अधिकार का हवाला देते हुए कोर्ट से अपील की गई है कि प्रदूषण पर सख्त और ठोस कदम उठाए जाएं. उन्होंने बताया कि भारत में प्रदूषण के जो मानक बनाए गए हैं, वे पहले ही ढीले हैं और उसके बावजूद शहरों में वायु गुणवत्ता उनसे भी नीचे गिर चुकी है. दिल्ली में PM2.5 का स्तर 105 μg/m³, लखनऊ में 90 और कोलकाता में 33 दर्ज किया गया है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक सुरक्षित स्तर केवल 5 μg/m³ होना चाहिए. यानी भारतीय नागरिक WHO के मानक से 20 गुना ज़्यादा प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं.
कॉउटिन्हो ने इस पर भी सवाल उठाया कि सरकार की निगरानी व्यवस्था केवल शहरों तक सीमित क्यों है? गांवों में कोई वायु गुणवत्ता मापने की व्यवस्था नहीं है, जबकि ग्रामीण आबादी भी उतनी ही प्रभावित है. उन्होंने कहा कि यह संकट सिर्फ पर्यावरण का नहीं, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य का युद्ध है, जिसे अब अनदेखा नहीं किया जा सकता.
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...
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First Published :
November 06, 2025, 17:42 IST

2 hours ago
