Events of 1 November 1947 in India-Pakistan War: एक दिन पहले यानी 30 अक्टूबर 1947 की रात कश्मीर घाटी में तनाव चरम पर था. पट्टन इलाके से खबरें थीं कि करीब 200 ट्रकों में सवार 1500 से 2000 पाकिस्तानी कबायली हमलावर श्रीनगर की ओर बढ़ रहे हैं. बारामूला और उरी में नरसंहार मचाने वाला यही गिरोह अब राजधानी की तरफ था. शाम 7 बजे भारतीय सेना का तीन ट्रकों का काफिला पट्टन के पास पुल पार कर रहा था, तभी झाड़ियों से गोलियों की बरसात शुरू हो गई. पहला ट्रक में सिविलियन ड्राइवर जख्मी हुआ.
वहीं, 5 कुमाऊं रेजिमेंट के जवानों को लेकर जा रहा दूसरा ट्रक बुरी तरह से निशाना बना. इस ट्रक में सवार भारतीय सेना के तीन जवान शहीद हो गए और एक घायल हुआ. तीसरा ट्रक किसी तरह बच निकला. बैकअप के लिए पहुंची 1 (पैरा) कुमाऊं की पेट्रोल पार्टी को सिर्फ जलते हुए ट्रक और जलते टायर मिले. वहीं, इस साजिश को अंजाम देने के लिए दुश्मन मौके से भाग चुका था. रात 8 बजे करीब 1000 कबायलियों ने पट्टन में भारतीय पोज़ीशन पर बड़ा हमला किया. भारतीय जवानों और दुश्मन के बीच की दूरी सिर्फ 55 मीटर रह गई थी.
लेकिन भारतीय जवानों की मशीन गन और हॉविट्ज़र तोपों की जबरदस्त फायरिंग के आगे दुश्मन टिक नहीं सका. दुश्मन अपने घायल साथियों को छोड़ बैटल फील्ड से भाग खड़ा हुआ. उसी दिन 161 ब्रिगेड का हेडक्वार्टर श्रीनगर पहुंचा और ब्रिगेडियर जे.सी. कटोच ने कमान संभाली. उस दिन 1 सिख, 1 (पैरा) कुमाऊं और 1 महार रेजिमेंट के कुल 394 जवानों को एयरलिफ्ट कर घाटी में उतारा गया, साथ ही दो 3.7 इंच हॉविट्ज़र तोपें भी पहुंचीं. 31 अक्टूबर की सुबह दुश्मन दो ग्रुप में बंटकर सुंबल और मगाम की ओर बढ़ा, पर भारतीय सेना पूरी सतर्क थी.
ब्रिगेडियर कटोच निरीक्षण के दौरान हल्की गोली से घायल हुए, पर मोर्चा संभाले रहे. उसी दिन एयरफोर्स ने भी ऑपरेशन तेज कर दिया. तीन टेम्पेस्ट फाइटर्स ने पट्टन और बारामूला के बीच दुश्मनों पर बमबारी की, जबकि चार स्पिटफायर और दो हार्वर्ड विमान श्रीनगर एयरफील्ड पर तैनात रहे. दिनभर में 485 जवान और 46,000 किलो सप्लाई हवाई रास्ते से पहुंचाई गई. रॉयल इंडियन एयरफोर्स और सिविल पायलटों की बहादुरी ने कश्मीर को बचाने की नींव रखी.
Operation Kashmir में यह भी पढ़ें: सेना के काफिले पर हुआ हमला, ट्रैप में फंसे भारतीय जवान, पलटवार से थर्राया पाकिस्तान… 1947 की पट्टन की लड़ाई में भारतीय सैनिकों ने पाकिस्तानी कबायली हमलावरों का डटकर मुकाबला किया. मीडियम मशीनगनों की फायरिंग से दुश्मन पीछे हटने के लिए मजबूर हो गया. वहीं श्रीनगर पर कब्जे की उसकी एक और कोशिश नाकाम हो गई.1 नवंबर 1947: जब आसमान से उतरी नई उम्मीद
ये वो दिन था जब जम्मू-कश्मीर का भविष्य आसमान में उड़ रहे जहाजों पर टिका हुआ था. सुबह श्रीनगर एयरफील्ड पर एक के बाद एक डकोटा विमान उतर रहे थे. हर विमान से भारतीय सैनिकों का जज्बा उतर रहा था. इस दिन 1 सिख रेजिमेंट के 184 जवानों और 81,038 किलो जरूरी सामान को एयरलिफ्ट करके श्रीनगर पहुंचाया गया. कर्नल हरबख्श सिंह उसी दिन श्रीनगर पहुंचे और उन्होंने 161 ब्रिगेड की कमान संभाली. एयरफील्ड पर उतरते ही उन्हें अहसास हो गया कि अब वक्त बहुत कम है और दुश्मन सिर पर है.
चारों तरफ से कबायली हमलावरों का खतरा मंडरा रहा था. सुबह करीब 8 बजकर 30 मिनट पर 1 सिख की एक टुकड़ी पर अचानक हमला हुआ. हमलावर घात लगाकर बैठे थे. पहले कुछ ही सेकंड में हालात बिगड़ गए, लेकिन सिख जवानों ने झट से पलटवार किया. करीब चार घंटे चली इस भिड़ंत में पांच भारतीय जवान शहीद हुए और एक घायल हुआ, लेकिन उन्होंने 12 कबायली दुश्मनों को ढेर भी कर दिया, पांच को घायल किया और एक को जिंदा पकड़ लिया. इधर 1 (पैरा) कुमाऊं की दूसरी टुकड़ी का भी दुश्मन से आमना-सामना हुआ.
Operation Kashmir में यह भी पढ़ें: हजारों की तादाद में था दुश्मन, मोर्चा लिए थे 941 भारतीय जांबाज, एक चाल ने पलट दी पूरी बाजी… भारत पाकिस्तान युद्ध 1947 में 29 अक्टूबर को पाकिस्तानी कबायलियों और भारतीय सेना के बीच श्रीनगर पर कब्जे को लेकर भीषण युद्ध हुआ था.
श्रीनगर को पूरी तरह से लिया अपने कब्जे में…
उनकी पोज़िशन से करीब 500 मीटर उत्तर दिशा में दो कबायली दुश्मन मारे गए और एक स्थानीय कश्मीरी को पकड़ा गया, जो कबायलियों की मदद कर रहा था. दोपहर 1 बजे से 3 बजे के बीच दुश्मनों ने फिर जोरदार हमला किया. इस बार उनका निशाना था 1 सिख की मुख्य पोज़िशन. लेकिन भारतीय सैनिकों ने जबरदस्त डिफेंस किया. फायरिंग की गूंज से श्रीनगर घाटी कांप उठी. आखिरकार कबायली दुश्मन पीछे हट गया. इसके बाद, 1 (पैरा) कुमाऊं की गश्ती टीमों को गंदरबल और सुम्बल की तरफ रवाना किया गया, लेकिन वहां कोई बड़ा ग्रुप नहीं मिला.
शाम तक श्रीनगर और उसके आसपास की पोज़िशन मजबूत कर ली गई थी. 161 ब्रिगेड का हेडक्वार्टर और 4 कुमाऊं की एक कंपनी श्रीनगर के पास थी. 1 (पैरा) कुमाऊं को एयरफील्ड पर तैनात किया गया, जबकि एक कंपनी नरबल रोड जंक्शन पर डटी थी. 1/2 पंजाब रेजिमेंट भी उसी दिन एयरलिफ्ट होकर पहुंची और एयरफील्ड पर तैनात की गई. 1 सिख रेजिमेंट एयरफील्ड पर थी, जबकि उसकी एक कंपनी शलातेंग रोड जंक्शन और कुछ टुकड़ियां पट्टन के पूर्व की पहाड़ियों पर डटी थीं.
वहीं जम्मू सेक्टर में 50 पैरा ब्रिगेड का एडवांस हेडक्वार्टर, 1 महार रेजिमेंट की एक कंपनी और 3 (पैरा) राजपूत की एक कंपनी जम्मू में थी. 3 (पैरा) राजपूत की एक-एक कंपनी सांबा और माधोपुर में तैनात थी, जबकि बाकी यूनिट गुरदासपुर से जम्मू की ओर बढ़ रही थी.
OPERATION KASHMIR में यह भी पढ़ें: काश! श्रीनगर एयरपोर्ट पर… भारतीय सेना ने पलटी ऐसी बाजी, चारों खाने चित हुआ पाकिस्तान… 28 अक्टूबर 1947 को भारतीय सेना ने श्रीनगर की सुरक्षा मजबूत किया और एयरफोर्स ने बारामुला पर हवाई हमले शुरू किए. वहीं, दिल्ली में नेहरू-माउंटबैटन की अहम बैठक में युद्ध की अगली रणनीति तय हुई.
एक दिन जिसने कश्मीर की किस्मत बदल दी
1 नवंबर 1947 सिर्फ एक तारीख नहीं थी, बल्कि वह दिन था जब भारत ने अपने जज्बेख् प्लानिंग और एयरपावर से इतिहास लिख दिया. श्रीनगर एयरफील्ड पर सेना की मौजूदगी ने शहर को बचा लिया. अगर ये एयर ऑपरेशन वक्त पर न हुआ होता, तो श्रीनगर दुश्मन के कब्जे में जा सकता था. इस दिन ने साफ कर दिया कि जंग सिर्फ बंदूकों से नहीं, हौसले से जीती जाती है. 1 सिख, 1 (पैरा) कुमाऊं, 4 कुमाऊं, 1 महार और 1/2 पंजाब यूनिट्स ने मिलकर वो नींव रखी, जिसने पूरे जम्मू-कश्मीर को भारत से जोड़े रखा.
न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।

3 hours ago
