भारत के महान परमाणु वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा की ज़िंदगी साइंस में डूबी हुई और सार्वजनिक रूप से चमकदार थी लेकिन उतनी ही रहस्यमय भी. निजी तौर पर उनके जीवन में भी एक लव स्टोरी थी. इसके बारे में कभी खुलकर नहीं आया. वह एक यूरोपीय महिला से प्यार करते थे. उससे बहुत गहराई से जुड़ाव महसूस करते थे. शायद वो उससे शादी करना चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
अगर भारत आज परमाणु बम संपन्न देश है और एटामिक एनर्जी का बखूबी विकास के कामों में इस्तेमाल कर रहा है, तो इसका श्रेय होमी भाभा को देना चाहिए. जिन्होंने भारत के परमाणु कार्यक्रम को शून्य से शिखर तक पहुंचाने के असंभव काम को तब अंजाम दिया, जब कोई इसके बारे में सोच भी नहीं सकता था.
भाभा निजी तौर पर संकोची भी थे. उनकी “लव स्टोरी” के बारे में कभी खुलकर कुछ सामने नहीं आया, लेकिन कुछ संकेतों, पत्रों और समकालीन लोगों के बयानों से अंदाज़ा लगाया गया है कि उनके जीवन में एक महिला ज़रूर थीं, जिनसे वे गहराई से जुड़ाव महसूस करते थे.
भाभा ने कभी शादी नहीं की. वह मुंबई के मालाबार हिल स्थित अपने आलीशान बंगले “मेहरांगीर” में अकेले रहते थे. उन्हें कला, संगीत और यूरोपीय संस्कृति से बहुत लगाव था. उनके घर में अक्सर कलाकारों, संगीतकारों और समाजसेवियों की महफ़िलें होती रहती थीं. वह यूरोपीय ओपेरा सुनते, पेंटिंग करते, और अक्सर कहते थे कि “विज्ञान और कला दोनों ही सृजन के मार्ग हैं.”
एक यूरोपीय महिला उनके जीवन में थीं
आर. गोविंदराजन और ल्यूक स्लोवेन जैसे जीवनीकार की पुस्तकों में यह संकेत मिलता है कि भाभा के जीवन में एक यूरोपीय महिला थीं. शायद वो पेरिस में उन्हें मिलीं या वो पेरिस में रहने वाली कलाकार या संगीतकार थीं, जिनसे भाभा 1930 के दशक में कैंब्रिज के दिनों या बाद में यूरोप की यात्राओं के दौरान मिले थे. उनके दोस्तों का कहना था कि भाभा एक ऐसे व्यक्ति थे जिनका रोमांटिक झुकाव था, लेकिन उन्होंने अपनी भावनाओं को कभी सार्वजनिक नहीं किया.
वह उनकी गहरी मित्र थीं
कुछ स्रोतों के अनुसार, वह महिला उनसे गहरी मित्र थीं. दोनों के बीच पत्राचार लंबे समय तक चलता रहा. उन्होंने उस रिश्ते को कभी सार्वजनिक नहीं किया और बाद में इसे सार्वजनिक नहीं किया गया, हालांकि उन्होंने उस महिला को कई पत्र लिखे, उसने उन्हें लिखे. इन पत्रों को हमेशा गुप्त ही रखा गया. इसकी वजह सामाजिक और धार्मिक भी हो सकती है या भाभा का देश का शीर्ष परमाणु वैज्ञानिक होना भी.
इस महिला की पहचान कभी स्पष्ट नहीं हुई. कोई प्रमाणित दस्तावेज़ या फोटो नहीं मिला. कई लोग मानते हैं कि भाभा ने उनसे विवाह न करने का निर्णय लिया क्योंकि वे भारत लौटकर विज्ञान को अपना जीवन देना चाहते थे. उनके कुछ पत्रों के जरिए उनके जीवन में “यूरोपीय महिला” के होने के अप्रत्यक्ष सबूत मिलते हैं, नाम नहीं, पर आत्मीयता की झलक ज़रूर दिखती है.
एम.एस. नरसिम्हन टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में जवाहरलाल नेहरू और होमी भाभा (बाएं) को पहला भारतीय डिजिटल कंप्यूटर दिखाते हुए
तुममें सुंदरता और बुद्धिमानी दोनों है
भाभा ने जिनेवा या पेरिस से 1937 में एक लिखा, जिसका शीर्षक था टू ए फ्रेंड इन यूरोप. पत्र पूरा उपलब्ध नहीं है, पर इंदिरा चौधरी ने अपनी किताब द टीआईएफआर स्टोरी में इसके कुछ अंश उद्धृत किए हैं.
“कई बार मैं हैरत में रह जाता हूं कि सुंदरता और बुद्धिमत्ता साथ साथ इतनी शांति से रह सकते हैं. तुम्हारे पास दोनों है. मैं लगातार हमेशा तुम्हें याद करता रहता हूं और जब ऐसा करता हूं तो बेचैन हो जाता हूं.”
ये वाक्य भाभा के गहरे भावनात्मक लगाव को दिखाता है. अपनी निजी डायरी में वह लगातार लिखते थे. उन्होंने जिनेवा में कुछ 1935 में लिखा. यह उनकी निजी डायरी का हिस्सा था. इसमें एक पंक्ति है,
“उसने आज रात सेलो बजाया और वो स्वर मेरे साथ बहुत देर तक रहे. उस संगीत में कुछ ऐसा था जो मैं कभी नहीं भूलूंगा.” इतिहासकारों का मानना है कि यह वही यूरोपीय महिला थीं – शायद कोई स्विस या फ्रेंच संगीतकार, जिनसे भाभा गहराई से जुड़ गए थे. सेलो वायलिन परिवार का ही एक म्युजिक इंस्ट्रूमेंट है.
उस हंसी के बिना भारत अलग सा लगता है
1941 में उन्होंने बांबे से यूरोप में अपनी दोस्त को पत्र लिखा, दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान भाभा भारत लौट आए थे. उनका ये पत्र राजा रमन्ना की किताब में आंशिक तौर पर उद्धृत है. “जिनेवा के नीले आसमान और वहां की शामों में घुलने वाली हंसी के बिना भारत अलग सा लगता है. बताओ, क्या तुम अब भी सेलो बजाती हो?” ये वाक्य साफतौर पर दिखाता है कि वह महिला जिनेवा में रहती थीं और संगीत से जुड़ी थीं. ये संबंध न केवल गहरा था बल्कि कई वर्षों तक जीवित रहा.
भाभा (सबसे दाएं) 1954 में सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में “ऑस्ट्रेलिया में परमाणु ऊर्जा” सेमीनार में. (विकी कामंस)
अपनी दोस्त की पेंटिंग बनाई
भाभा खुद एक प्रतिभाशाली पेंटर थे. उन्होंने 1940 के दशक में “ब्लू लेडी” नाम की एक पेंटिंग बनाई, जो अब TIFR में संरक्षित है. वह पेंटिंग एक यूरोपीय महिला के चेहरे जैसी लगती है – हल्की नीली आंखें, यूरोपीय नाक और अधखुले होंठों पर मुस्कान. TIFR के क्यूरेटर ने बाद में कहा, ये महिला की तस्वीर केवल कल्पना नहीं थी बल्कि वास्तविक थी.
शादी क्यों नहीं की
1960 के दशक में अपने एक पत्र में भाभा ने फिर अपने जीवन में आईं खास महिला का संकेत दिया. भाभा का अपने एक सहयोगी को लिखा ये पत्र गोपाल राज की जीवनी में उद्धृत है.
“एक समय था जब मैंने सोचा था कि मैं किसी के साथ जीवन साझा कर सकता हूं. पर जीवन की अपनी योजनाएं थीं. शायद मेरा सबसे सच्चा साथ विचारों के साथ रहा है.” उनकी ये स्वीकारोक्ति करीब स्पष्ट कर देती है कि कभी कोई थी, पर वह रिश्ता पूरा नहीं हो सका.
तो उन्होंने शादी क्यों नहीं की, इसको लेकर भी कई बातें कहीं जाती हैं. वह भारतीय परमाणु कार्यक्रम को खड़ा करने में इतने बिजी थे कि कि निजी जीवन को पीछे छोड़ दिया. ये भी संभव हो कि वह पारसी थे लिहाजा उनके परिवार ने किसी यूरोपीय महिला से विवाह को स्वीकार नहीं किया हो.
वह संगीत से जुड़ी थीं और भाभा के बहुत करीब
इतिहास हमें उस महिला का नाम नहीं बताता लेकिन इन पत्रों और पंक्तियों से साफ है कि वह महिला यूरोपीय शायद स्विस या फ्रेंच थीं,संगीत से जुड़ी थीं और भाभा की भावनात्मक दुनिया का केंद्र थीं.
उनके करीबी सहयोगी और मित्र विक्रम साराभाई ने एक बार कहा था, होमी का दिल तो कला के लिए था लेकिन उसे एक अनुशासित साइंटिस्ट ने ट्रैप कर लिया – वह हमेशा परफेक्शन से प्यार करते थे.
1966 में जब उनकी विमान दुर्घटना में मृत्यु हुई, तो उनके निजी कागज़ात और पत्रों का एक बड़ा हिस्सा टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च और परिवार के पास था, जो उन्होंने कभी सार्वजनिक नहीं किया. कहा जाता है कि उनमें से कुछ में व्यक्तिगत पत्र भी थे, जिन्हें कभी जारी नहीं किया गया.
कहां हुई थी इस महिला से मुलाकात
कहा जा सकता है कि होमी भाभा की लव स्टोरी शायद भारतीय इतिहास की “सबसे शांत” लेकिन “सबसे गहरी” प्रेम कहानियों में एक थी. होमी भाभा 1927 में इंग्लैंड गए थे. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए. वहीं उन्होंने भौतिकी की ओर रुख किया. वह 1928–1939 तक यूरोप में रहे – कैम्ब्रिज, जिनेवा, ज़्यूरिख और पेरिस जैसे शहरों में. यह वही दौर था जब यूरोप कला, संगीत और बौद्धिक विमर्श का केंद्र था.
भाभा इस माहौल में पूरी तरह रम गए -वहां वह कॉन्सर्ट्स, आर्ट गैलरीज़ और बौद्धिक सर्किल्स में जाना पसंद करते थे. इन्हीं सालों में उनकी मुलाक़ात एक यूरोपीय महिला से हुई. कई जीवनीकार मानते हैं कि यही महिला उनके जीवन की “एकमात्र सच्ची मोहब्बत” थीं.
दोस्त ने बताया वह यूरोपीय महिला के करीब आए थे
भाभा के करीबी सहयोगी डॉ. एच. गोविंदराजन ने अपने संस्मरण में लिखा, “अपने कैंब्रिज के बरसों में होमी एक बेहद कल्चर्ड यूरोपीयन महिला के करीब आए. उन दोनों कला और संगीत से प्यार था. लेकिन होमी को मालूम था कि वह इंडिया और साइंस से ताल्लुक रखते हैं. उन्होंने अपनी दोस्ती की जगह भारत और साइंस को चुना.
“उनके एक अन्य मित्र और जिनेवा विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने 1950 के दशक में कहा था कि वह यूरोप की एक महिला से गहरे तक जुड़े हुए लेकिन उनका उद्देश्य उनकी व्यक्तिगत खुशी से कहीं ज्यादा बड़ा था.”
इन दोनों संकेतों से यही झलकता है कि भाभा का रिश्ता गंभीर था लेकिन उन्होंने भारत लौटने और अपना जीवन देश के परमाणु कार्यक्रम को समर्पित करने के लिए उन्होंने विवाह नहीं किया. हालांकि उनके घर मेहरांगीर में लगी पेंटिंग्स में अक्सर अकेली स्त्री आकृतियां दिखाई देती थीं. 1966 में जब भाभा की एयर इंडिया फ्लाइट 101 से जा रहे थे, तब फ्रांस के मोंट ब्लांक पर्वत पर उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें उनकी मृत्यु हो गई. तब उनकी उम्र केवल 56 साल थी. उनका जन्म 30 अक्टूबर 1909 में मुंबई में हुआ था.
…और जो रॉकेट बॉएज में दिखाया गया
सोनी लिव ओटीटी सीरीज़ रॉकेट बॉएज में भाभा के प्यार के तौर पर जिस “परवीन” नाम की महिला को दिखाया गया है, वह इसी यूरोपीय महिला से प्रेरित एक प्रतीकात्मक रूप है, जो भाभा के भीतर के रोमांटिक, संवेदनशील और अधूरे प्रेम का प्रतिनिधित्व करती है. दोनों के बीच गहरा स्नेह और आकर्षण दिखाया गया है, लेकिन कहानी में यह रिश्ता कभी विवाह तक नहीं पहुंचता. ये चरित्र किसी वास्तविक व्यक्ति पर आधारित माना जाता है, परंतु पूरी तरह से नहीं.
कई जीवनीकारों का मानना है कि यह किरदार उस यूरोपीय महिला या संगीत-प्रेमी महिला का प्रतीकात्मक रूप है, जिससे भाभा के वास्तविक जीवन में संबंध थे.
सोर्स
1. Bhabha and His Magnificent Obsessions (Raja Ramanna, 1997)
2. The TIFR Story (Indira Chowdhury, 2011)
3. Homi J. Bhabha: A Life (Gopal Raj & Srinivasan, 2010)
और कुछ अप्रकाशित पत्र जो TIFR के आर्काइव में संदर्भित हैं (पर सार्वजनिक नहीं)
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2 hours ago
